Specialist's Corner
प्रशान्त कुमार वर्तमान में उत्तराखण्ड वन विभाग में वरिष्ठ परियोजना सहयोगी ;वन्यजीवद्ध के पद पर कार्यरत हैं तथा पिछले सात वर्षों से वन्यजीव अपराध नियंत्रण एवं संरक्षण में प्रभावी शोध एवं विश्लेषण कार्य कर रहे है। इन्होंने लगभग पन्द्रह हजार से अधिक वन कर्मियों को वन्यजीव फॉरेंसिक एवं वन्यजीव संरक्षण विषय में प्रशिक्षित किया है तथा पांच सौ से अधिक प्रशिक्षण कार्यशालाओं का आयोजन भी किया है। प्रशान्त कुमार, फॉरेंसिक विज्ञान में बीएससी तथा एमएससी है एवं वाइल्डलाइफ फॉरेंसिक्स में फील्ड के अनुभवी हैं ।
भारत की पारंपरिक और आधुनिक कलाकृतियों की शोभा बढ़ाने वाले ब्रश-विशेष रूप से वे जो महीन रेखाएं खींचते हैं और अद्भुत रंग भरते हैं, अक्सर एक दर्दनाक सच्चाई छिपाए होते हैं। बहुत कम लोग जानते हैं कि इन उच्च गुणवत्ता वाले ब्रशों को बनाने के लिए हर साल हजारों नेवले मारे जाते हैं। यह सिर्फ एक पर्यावरणीय या पशु अधिकारों का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह हमारी नैतिकता और उपभोक्ता चेतना का भी प्रश्न है। क्या आपने कभी सोचा है कि महीन कूची से बनी वह सुंदर कलाकृति, जिसे आप सराहते हैं, उसके पीछे किसी मासूम प्राणी की जान भी गई हो सकती है? भारत में ब्रश बनाने के लिए नेवले के बालों का उपयोग एक लंबे समय से होता आया है-विशेषकर उन उच्च गुणवत्ता वाले पेंट ब्रशों के लिए, जिन्हें पेशेवर कलाकार और सुलेखक पसंद करते हैं। लेकिन यह कला और क्राफ्ट की दुनिया का एक स्याह पक्ष है, जो वन्यजीवों के शोषण और अवैध तस्करी की गाथा कहता है।
नेवले और उनके बालः क्यों हैं मूल्यवान ?
नेवले के बालों की विशेष बनावट, कठोरता और लचीलापन उन्हें उच्च गुणवत्ता वाले ब्रश के लिए आदर्श बनाती है। विशेष रूप से, यह बाल पेंट को समान रूप से पकड़ते और फैलाते हैं, जिससे कलाकारों को बारीक डिटेल्स में काम करने में आसानी होती है। विशेष रूप से मिनिएचर पेंटिंग, वाटरकलर आर्ट, और मुगल-स्टाइल पेंटिंग में इन ब्रशों की माँग अधिक है। यही वजह है कि देश-विदेश में इसकी भारी मांग है।
ब्रश निर्माताओं का कहना है कि “कोई भी सिंथेटिक विकल्प इस प्राकृतिक बाल की बराबरी नहीं कर सकता”-यही मानसिकता नेवले के बालों को एक मूल्यवान ‘कच्चा माल’ बना देती है। लेकिन इस मांग की पूर्ति के लिए नेवले का शिकार किया जाता है, न कि काट कर बाल लिए जाते हैं।
तस्करी का जालः कैसे चलता है यह धंधा?
नेवले के बालों की तस्करी सुनने में भले ही मामूली लगे, लेकिन इसके पीछे एक संगठित और खतरनाक नेटवर्क काम करता है। यह एक काला कारोबार है जो जंगल से बाजार तक फैला होता है। शिकारी गाँवों या जंगल के पास रहने वाले स्थानीय लोग जिन्हें पैसे की लालच होती है वे नेवले का चोरी-छिपे शिकार करते हैं। नेवले को फंदों, जालों या जहर से मारा जाता है। कई बार जीवित पकड़कर मारकर उसके बाल निकाले जाते हैं-यह बेहद क्रूर प्रक्रिया होती है, जिसमे कई बार बाल निकालने के बाद उनके मांस को खाया भी जाता है। भारत में पाए जाने वाले छह प्रजाति के नेवले में से इंडियन ग्रे मंगूज सबसे ज्यादा इस तस्करी का शिकार बनते हैं। मरे हुए नेवले से बाल निकाले जाते हैं और उन्हें साफ किया जाता है। बालों को सूखा कर, छांटकर और बाँधकर छोटे बंडलों में पैक किया जाता है ताकि पहचान में न आए। तस्करों के पास इस काम के लिए स्थानीय प्रोसेसर होते हैं जो यह काम गुपचुप तरीके से करते हैं। बालों को कपड़ों, झाड़ू, ब्रश या कच्चे माल की शक्ल में छिपाकर एक राज्य से दूसरे राज्य या देश तक भी भेजा जाता है। कई बार इन्हें रेलवे पार्सल, बसों या ट्रकों के जरिए भेजा जाता है, और अक्सर नकली दस्तावेजों का इस्तेमाल किया जाता है। कुछ स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय ब्रश निर्माता कंपनियाँ इन बालों को खरीदती हैं। इनमें से कुछ को पता होता है कि बाल अवैध स्रोत से आए हैं, और कुछ जानबूझकर अनदेखा करते हैं क्योंकि बाल की गुणवत्ता बेहतर होती है। बाजार में एक अच्छा ब्रश ₹100 से ₹5000 तक बिक सकता है। बालों का मूल्य किलो के हिसाब से तय होता है, और एक किलो बाल के लिए 300-400 नेवले मारे जाते हैं। यह कारोबार लाखों रुपए का है, और यह मुनाफा तस्करी को बढ़ावा देता है।
नेवले भारत के वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची-1 के अंतर्गत संरक्षित जीव है। इसका शिकार करना, पकड़ना या इसके किसी भी अंग की बिक्री अवैध है। बावजूद इसके, कुछ गिरोह इन जानवरों को मारकर उनके बाल निकालते हैं और फिर उन्हें छिपाकर पेंट ब्रश उद्योग को सप्लाई करते हैं।
आखिर क्यों नहीं बंद हो रहा यह धंधा ?
आमतौर पर यह उतना प्रचलित वन्यजीव तस्करी का मामला नहीं है। यह इतना छिपा हुआ अवैध धंधा है की इसमें पूर्ति करने वाला कभी पकड़ा नहीं जाता है, सिर्फ ब्रश बनाने वाले और बेचने वाले ही पकड़े जाते है। पूर्ति करने वाला गांव का या किसी समुदाय का व्यक्ति होता है जो किसी अन्य प्रकार के धंधे में भी लगा रहता है। पिछले 5-6 सालों में भारत में कई बार इस प्रकार की तस्करी का भण्डाफोड़ किया गया जिसमे बड़ी मात्रा में नेवले के बाल, बने हुए ब्रश, असली ब्रशों से मिलते-जुलते नकली(सिंथेटिक) ब्रश बरामद किये गए और साथ में कई व्यक्तिओं को गिरफ्तार भी किया गया परन्तु अभी भी यह अवैध तस्करी पूर्ण रूप से समाप्त नहीं हुई है।
क्या समाधान हो सकता है ?
नेवला किसानों का मित्र है, वह चूहों और जहरीले सांपों को मारकर फसलों की रक्षा करता है। नेवले की संख्या में गिरावट से प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र असंतुलित होता है। यह तस्करी वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत दंडनीय अपराध है। हमें अपने आसपास के क्षेत्रों की निगरानी करके यह पता लगाने की आवश्यकता है कि कहीं नेवले का शिकार तो नहीं किया जा रहा या उसके बालों से बने ब्रशों कि बिक्री तो नहीं की जा रही है। निम्न कदमों को उठाकर हम इस जानवर को बचाने में योगदान दे सकते हैं-
1. जागरूकता फैलाना-आम लोगों, कलाकारों और छात्रों को यह जानकारी दी जाए कि नेवले के बालों से बने ब्रश खरीदना अपराध को समर्थन देना है।
2. वैकल्पिक उत्पादों का उपयोग-कृत्रिम या प्लांट-बेस्ड ब्रश विकल्पों को बढ़ावा देना चाहिए।
3. कानून का सख्त पालन-तस्करों को कड़ी सजा देकर इस धंधे पर अंकुश लगाया जा सकता है।
4. शिक्षा प्रणाली में शामिल करना-पर्यावरण शिक्षा के अंतर्गत इस मुद्दे को स्कूलों में पढ़ाया जाए।
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