गोपाचल परà¥à¤µà¤¤à¤ƒ यहां फूल, पतà¥à¤¤à¥€ व फल पर है सिरà¥à¤« पकà¥à¤·à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का अधिकार
à¤à¤•à¥‡ सिंह
फूल, पतà¥à¤¤à¥€ तोड़ना मना हैः ये चेतावनी हर आमऔर खास बगीचे में देखने को मिल जाती है। लेकिन à¤à¤¤à¤¿à¤¹à¤¾à¤¸à¤¿à¤• गà¥à¤µà¤¾à¤²à¤¿à¤¯à¤° दà¥à¤°à¥à¤— की तलहटी में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ गोपाचल परà¥à¤µà¤¤ का मामला इससे कà¥à¤› अलग है। यहां इस तरह की कोई चेतावनी देखने कोे नहीं मिलती लेकिन यहां पर फूल, पतà¥à¤¤à¥€ तो कà¥à¤¯à¤¾ फल तोड़ना à¤à¥€ पूरी तरह से मना है। कारण, यहां लगे फलों पर आदमी का नहीं, पकà¥à¤·à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का à¤à¤•à¤¾à¤§à¤¿à¤•à¤¾à¤° है और वे पूरी तरह उनके लिठसंरकà¥à¤·à¤¿à¤¤ हैं। सिरà¥à¤« पपीता को छोड़कर। पपीता à¤à¥€ इसलिठकि वह पकà¥à¤·à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को पसंद नहीं।
बारह हेकà¥à¤Ÿà¥‡à¤¯à¤° में फैला सिदà¥à¤§à¤•à¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° गोपाचल परà¥à¤µà¤¤ यूं तो जैन धरà¥à¤® के लोगों के लिठआसà¥à¤¥à¤¾ का केंदà¥à¤° है। यहां पारà¥à¤¶à¥à¤µà¤¨à¤¾à¤¥ à¤à¤—वान के दो मंदिर हैं और पतà¥à¤¥à¤°à¥‹à¤‚ से उकेरी गई 42 फीट ऊंची, 30 फीट चैड़ी पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾ सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ है। किला तलहटी की चटà¥à¤Ÿà¤¾à¤¨ पर जहां दूब रोपना à¤à¥€ मà¥à¤¶à¥à¤•à¤¿à¤² हो, वहां चारों तरफ हरियाली का होना ही à¤à¤• उपलबà¥à¤§à¤¿ है। à¤à¤—वान पारà¥à¤¶à¥à¤µà¤¨à¤¾à¤¥ की देशनासà¥à¤¥à¤²à¥€, à¤à¤—वान सà¥à¤ªà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤ ित केवली की निरà¥à¤µà¤¾à¤£à¤¸à¥à¤¥à¤²à¥€ के साथ 26 जिनालय à¤à¤µà¤‚ तà¥à¤°à¤¿à¤•à¤¾à¤² चैबीसी परà¥à¤µà¤¤ पर और दो जिनालय तलहटी में हैं, à¤à¤¸à¥‡ गोपाचल परà¥à¤µà¤¤ के दरà¥à¤¶à¤¨ अदà¥à¤µà¤¿à¤¤à¥€à¤¯ हैं। बताया जाता है कि गà¥à¤µà¤¾à¤²à¤¿à¤¯à¤° के इस à¤à¤¤à¤¿à¤¹à¤¾à¤¸à¤¿à¤• दà¥à¤°à¥à¤— पर गोपाचल परà¥à¤µà¤¤ और à¤à¤• पतà¥à¤¥à¤° की बावड़ी का à¤à¤¤à¤¿à¤¹à¤¾à¤¸à¤¿à¤• महतà¥à¤µ होने के साथ ही जैन धरà¥à¤®à¤¾à¤µà¤²à¤‚बियों के लिठये à¤à¤• अनूठा तीरà¥à¤¥ सà¥à¤¥à¤² है। यदà¥à¤¯à¤ªà¤¿ ये पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾à¤à¤‚ विशà¥à¤µ à¤à¤° में अनूठी हैं, फिर à¤à¥€ अब तक इस धरोहर पर न तो जैन समाज का ही विशेष धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ गया है और न ही सरकार ने इनके मूलà¥à¤¯ को समà¤à¤¾ है।
शà¥à¤°à¥€ दिगंबर जैन गोपाचल परà¥à¤µà¤¤ संरकà¥à¤·à¤• नà¥à¤¯à¤¾à¤¸ से जà¥à¥œà¥‡ अजीत वरैया यहां पर छोटे-बड़े सवा लाख पेड़-पौधे होने का दावा करते हैं। इनमें चार हजार बड़े पेड हैं,जिनमें 800-1000 फलदार हैं। फलदार पेड़ों में à¤à¥€ जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾à¤¤à¤° आम, अमरूद, अनार, सीताफल, शहतूत, आंवला और पपीता शामिल हैं। यहां फल, फूल और पतà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को सिरà¥à¤« पकà¥à¤·à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को तोड़ने और उपयोग करने की आजादी है, इसके अलावा यहां तैनात करà¥à¤®à¤šà¤¾à¤°à¥€ à¤à¥€ इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ हाथ नहीं लगाते हैं। यहां लगने वाले पपीते के फल का उपयोग ही यहां के करà¥à¤®à¤šà¤¾à¤°à¥€ कर सकते हैं कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि इसका उपयोग पकà¥à¤·à¥€ नहीं करते हैं। 1984 से पहले यहां पर à¤à¤¾à¥œà¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ और पतà¥à¤¥à¤°à¥‹à¤‚ के अलावा कà¥à¤› नहीं था, लोग नितà¥à¤¯ करà¥à¤® से निवृतà¥à¤¤ होने के लिठआते थे। धीरे-धीरे यहां पर पौधे लगाठगà¤, उनकी रखवाली की गई तो वह पेड़ों में परिवरà¥à¤¤à¤¿à¤¤ हो गà¤à¥¤ यहां पर लोगों को सà¥à¤¬à¤¹-शाम घूमने के लिठआने की सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾ थी, लेकिन उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने यहां लगाठगठपेड-पौधों को नà¥à¤•à¤¸à¤¾à¤¨ पहà¥à¤‚चाना शà¥à¤°à¥‚ किया तो उन पर पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¬à¤‚ध लगा दिया गया। अब शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤²à¥à¤“ं को यहां आने दिया जाता है। पौधरोपण और वाटर हारà¥à¤µà¥‡à¤¸à¥à¤Ÿà¤¿à¤‚ग का काम जारी है।
लोक मत की मानें तो 22 वें तीरà¥à¤¥à¤‚कर à¤à¤—वान नेमिनाथ के शासनकाल में जैन शà¥à¤°à¤¾à¤µà¤•à¥‹à¤‚ ने गोपाचल परà¥à¤µà¤¤ पर à¤à¤—वान पारà¥à¤¶à¥à¤µà¤¨à¤¾à¤¥, केवली à¤à¤—वान और 24 तीरà¥à¤¥à¤‚करो की 9 इंच से लेकर 57 फà¥à¤Ÿ तक की पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾à¤à¤‚ बनाई गई थी। कहा जाता है ये पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾à¤à¤‚ मधà¥à¤¯ परà¥à¤µà¤¤ को तराशकर बनाई गई हैं तथा इनका निरà¥à¤®à¤¾à¤£ तोमरवंसी राजा वीरमदेव, डूंगरसिंह व कीरà¥à¤¤à¤¿ सिंह के काल में हà¥à¤† था। यहां जैन धरà¥à¤®à¤¾à¤µà¤²à¤‚बियों के तीरà¥à¤¥à¤‚करों की à¤à¤• से बà¥à¤•à¤° à¤à¤• पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾à¤à¤‚ देखने को मिलती हैं। यहां 26 गà¥à¤«à¤¾à¤à¤‚ हैं, सà¤à¥€ में à¤à¤—वान पारà¥à¤¶à¥à¤µà¤¨à¤¾à¤¥ और तीरà¥à¤¥à¤•à¤°à¥‹à¤‚ की खड़ी और बैठने की मà¥à¤¦à¥à¤°à¤¾ में पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾à¤à¤‚ हैं। कहा ये à¤à¥€ जाता है कि 1528 में मà¥à¤¸à¥à¤²à¤¿à¤® आकà¥à¤°à¤¾à¤‚ता बाबर यहां आया था। जिसने इन à¤à¤¤à¤¿à¤¹à¤¾à¤¸à¤¿à¤• जैन पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾à¤“ं को खंडित करने का आदेश दिया था। मगर पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾ खंडित करते समय उसके सैनिकों की आंखों की रोशनी चली गई। जब बाबर को यह बात पता चली तो उसने सà¥à¤µà¤¯à¤‚ गोपाचल परà¥à¤µà¤¤ पर आकर इन पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾à¤“ं को तोड़ना का पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ किया, मगर उसके सैनिकों की बाबर की ही तरह उसकी à¤à¥€ आंखों की रोशनी चली गई। जिसके बाद उसने पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤œà¥à¤žà¤¾ ली कि वे à¤à¤µà¤¿à¤·à¥à¤¯ में किसी à¤à¥€ जैन पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾à¤“ं नहीं तोड़ेगा। कहा जाता पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤œà¥à¤žà¤¾ लेते ही बाबर और उसके सैनिकों की आंखों की रोशनी लौट आई। किले के उरवाई गेट और गोपाचल परà¥à¤µà¤¤ पर जैन तीरà¥à¤¥à¤‚करों की ये अपà¥à¤°à¤¿à¤¤à¤® पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾à¤à¤‚ हैं।
गोपाचल परà¥à¤µà¤¤ सृषà¥à¤Ÿà¤¿ को अहिंसा तथा हिंदू धरà¥à¤® में आई बलिपà¥à¤°à¤¥à¤¾ को खतà¥à¤® करने का सनà¥à¤¦à¥‡à¤¶ देता है। यहां सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ मूरà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ समाज को कई तरह के संदेश देने की कोशिश की गई है। गोपाचल परà¥à¤µà¤¤ का मà¥à¤–à¥à¤¯ आकरà¥à¤·à¤£ à¤à¤—वान पारà¥à¤¶à¥à¤µà¤¨à¤¾à¤¥ की पदà¥à¤®à¤¾à¤¸à¤¨ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾ है। किंवदंती है कि डूंगर सिंह ने जिस शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾ à¤à¤µà¤‚ à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ से जैन मत का पोषण किया था, उसके विपरीत शेरशाह शूरी ने परà¥à¤µà¤¤ की इन मूरà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को तोड़कर खंडित किया। उसने à¤à¤• बार सà¥à¤µà¤¯à¤‚ पारà¥à¤¶à¥à¤µà¤¨à¤¾à¤¥ की पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾ को खंडित करने के लिठतलवार उठाया था, लेकिन उसकी à¤à¥à¤œà¤¾à¤“ं में शकà¥à¤¤à¤¿ नहीं बची थी। इस चमतà¥à¤•à¤¾à¤° से à¤à¤¯à¤à¥€à¤¤ होकर वह à¤à¤¾à¤— खड़ा हà¥à¤† था। मà¥à¤—ल समà¥à¤°à¤¾à¤Ÿ बाबर ने 1527 ई में गà¥à¤µà¤¾à¤²à¤¿à¤¯à¤° पर विजय पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ की। बाबर ने जैन पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾à¤“ं को नषà¥à¤Ÿ करने का आदेश दिया, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि उनके संसà¥à¤®à¤°à¤£ में उनका उलà¥à¤²à¥‡à¤– है। उरवाही गेट और à¤à¤• पतà¥à¤¤à¤¾à¤˜à¤¾à¤Ÿ बावड़ी में मूरà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के सिर कà¥à¤·à¤¤à¤¿à¤—à¥à¤°à¤¸à¥à¤¤ हो गà¤à¥¤ उरवाही दà¥à¤µà¤¾à¤° की मूरà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की मरमà¥à¤®à¤¤ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ जैनों दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ बाद में की गई थी। दकà¥à¤·à¤¿à¤£-पशà¥à¤šà¤¿à¤® समूह और उतà¥à¤¤à¤° पशà¥à¤šà¤¿à¤® समूह की मूरà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ बच गईं कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि वे सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ तक पहà¥à¤‚चने के लिठअगोचर और कठिन थे। और मà¥à¤—लों ने मà¥à¤¹à¤®à¥à¤®à¤¦ शाह तक नियंतà¥à¤°à¤£ रखा। मराठा कबीले सिंधिया , ने 1731 में नियंतà¥à¤°à¤£ कर लिया। उससे कà¥à¤› ही समय पहले, जैन मंदिर, गà¥à¤µà¤¾à¤²à¤¿à¤¯à¤° शहर में जैन मंदिर, जैन सà¥à¤µà¤°à¥à¤£ मंदिर सहित 1704 ईसà¥à¤µà¥€ में फिर से जैन मंदिरों का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ किया गया था।
गोपाचल के लिये पà¥à¤°à¥‡à¤® के वशीà¤à¥‚त होकर अनेक नामों à¤à¤µà¤‚ विशेषणों का पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— किया जाता रहा। मिहिरकà¥à¤² के राजà¥à¤¯ के पनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¹à¤µà¥‡à¤‚ वरà¥à¤· (सनॠ५२ॠई.) में यहां के गॠको गोपà¤à¥‚धर, दशवी शताबà¥à¤¦à¥€ में गà¥à¤°à¥à¤œà¤° पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¹à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ के शिलालेख में गोपादà¥à¤°à¤¿ तथा गोपगिरि, रतà¥à¤¨à¤ªà¤¾à¤² कचà¥à¤›à¤ªà¤˜à¤¾à¤¤ के लगà¤à¤— १११५ ई. के शिलालेख में गोपकà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤°, विकà¥à¤°à¤® संवतॠ११५० के शिलालेख में गोपादà¥à¤°à¤¿ तथा अनेक शिलालेखों में गोपाचल, गोपशैल तथा गोपरà¥à¤µà¤¤à¥¤ वि. सं. ११६१ के शिलालेख में गोपालकेरि, गà¥à¤µà¤¾à¤²à¤¿à¤¯à¤° खेड़ा कहा गया है। इस नाम माला की विशेषता यह है कि इसके सà¤à¥€ मनकों में गोपाचल गॠको केनà¥à¤¦à¥à¤° माना गया था। à¤à¤Ÿà¥à¤Ÿà¤¾à¤°à¤• सà¥à¤°à¥‡à¤¨à¥à¤¦à¥à¤°à¤°à¥à¤•à¥€à¤¿à¤¤ ने संवतॠ१à¥à¥ªà¥¦ में रचित रविवà¥à¤°à¤¤ कथा में गà¥à¤µà¤¾à¤²à¤¿à¤¯à¤° को गॠगोपाचल लिखा हैः‘गॠगोपाचल नगर à¤à¤²à¥‹ शà¥à¤ थानों।’
‘गà¥à¤µà¤¾à¤²à¤¿à¤¯à¤° दà¥à¤°à¥à¤— के दरà¥à¤¶à¤¨ करते ही मानव मन के लोक वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° जनà¥à¤¯ बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤® रूप à¤à¤µà¤‚ साथ ही शाशà¥à¤µà¤¤à¥ जीवन के मौलिक आधारों का आà¤à¤¾à¤¸ मिलता है। दूर से देखते ही यह दà¥à¤°à¥à¤¦à¤¾à¤¨à¥à¤¤ सैनिक की निःशंक वृतà¥à¤¤à¤¿ को सà¥à¤¦à¥ƒà¥à¤¤à¤¾ से निवाहे खड़ा दीखता है और जब उसके पास जाओ तो सतà¥à¤¯ का शाशà¥à¤µà¤¤ सौषà¥à¤ व, शिव का आननà¥à¤¦, मृतà¥à¤¯à¥ और निरà¥à¤µà¤¾à¤£ सनà¥à¤¦à¥‡à¤¶ का सदाबहार सौनà¥à¤¦à¤°à¥à¤¯ उसकी कलाकृतियों में बिखरा हà¥à¤† मिलता है। हिंसक आतताइयों ने उसकी इस शाशà¥à¤µà¤¤à¥ निधि को लूटकृखसोट के नाशक पà¥à¤°à¤¹à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ मिटाना चाहा, पर वह मिटा न सके। वह आज à¤à¥€ जीतीकृजागती है, और मानव को सचà¥à¤šà¥‡ जीवन का सनà¥à¤¦à¥‡à¤¶ सà¥à¤¨à¤¾ रही है। गà¥à¤µà¤¾à¤²à¤¿à¤¯à¤° दà¥à¤°à¥à¤— का यह तो महतà¥à¤µ है कि वह मानव को लोक वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° के पà¥à¤°à¤ªà¤‚चों से अंधे न होकर न फà¤à¤¸à¤¨à¥‡ के लिये सावधान करता है। और अंहिसा की अमोध शकà¥à¤¤à¤¿ का पाठपà¥à¤¾à¤¤à¤¾ है। १५वीं शताबà¥à¤¦à¥€ में तोमर राजाओं के राजà¥à¤¯à¤•à¤¾à¤² में जैनियों का जोर बà¥à¤¾ और उस समय पूरी पहाड़ी को जैन तीरà¥à¤¥ बना दिया गया। यदà¥à¤¯à¤ªà¤¿ यह तीरà¥à¤¥ कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° तो पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ था, परनà¥à¤¤à¥ इस काल में इसकी महिमा अधिक बà¥à¥€à¥¤ सारी पहाड़ी पर ऊपरकृनीचे, बाहरकृà¤à¥€à¤¤à¤° चारों ओर गà¥à¤«à¤¾ मनà¥à¤¦à¤¿à¤° खोद दिये गये ओर उनमें विशाल रà¥à¤®à¥‚ितयों का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ कराया। गà¥à¤«à¤¾ मनà¥à¤¦à¤¿à¤°, रà¥à¤®à¥‚ितयों की संखà¥à¤¯à¤¾ और विसà¥à¤¤à¤¾à¤° में सरà¥à¤µà¤¾à¤§à¤¿à¤• है। यह सब ३३ वरà¥à¤· की देन है। रà¥à¤®à¥‚ितयाठकलापूरà¥à¤£, सà¥à¤˜à¥œ à¤à¤µà¤‚ सौमà¥à¤¯ हैं। अतà¥à¤¯à¤¨à¥à¤¤ कà¥à¤¶à¤² अनà¥à¤à¤µà¥€ शिलà¥à¤ªà¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ ििरà¥à¤¨à¤®à¤¤ हà¥à¤ˆ हैं। रà¥à¤®à¥‚ितयों का सौषà¥à¤ व, अंग विनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ और à¤à¤¾à¤µà¤¾à¤à¤¿à¤µà¥à¤¯à¤‚जन सà¤à¥€ कलाकारों की निपà¥à¤£à¤¤à¤¾ की मूक साकà¥à¤·à¥€ हैं।
मातृचेट (५२५ ई.) ने अपने शिलालेख में गोपाचल के विषय में लिखा हैः ‘नाना धातॠविचितà¥à¤°à¥‡ गोपाहय नामà¥à¤¨à¤¿ à¤à¥‚धरे रमà¥à¤¯à¥‡’ (अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ गोपाचल का à¤à¥‚धर जिन पर विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ धातà¥à¤à¤‚ मिलती हैं)। गोपाचल पर उपलबà¥à¤§ यह पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨à¤¤à¤® शिलालेख हैं। वि. सं. १०११ के हांग के शिलालेख में गोपाचल को ‘विसà¥à¤®à¥ˆà¤• निलय’’ लिखा है। इन सब à¤à¥Œà¤¤à¤¿à¤• आकरà¥à¤·à¤£à¥‹à¤‚ के अतिरिकà¥à¤¤ गोपाचलगॠके इतिहास में अनेक रोमांचकारी घटनायें à¤à¥€ गà¥à¤®à¥à¤«à¤¿à¤¤ हो गई। इनà¥à¤¹à¥€à¤‚ कारणों से गोपाचल के विषय में हिनà¥à¤¦à¥€ तथा फारसी के इतिहासकारों ने अनà¥à¤¯ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ के अपेकà¥à¤·à¤¾ अधिक गà¥à¤°à¤‚थ लिखें।कोई नहीं जानता कि गोपाचल दà¥à¤°à¥à¤— कब बना।
देश और दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ से जैन धरà¥à¤®à¤¾à¤µà¤²à¤‚बी à¤à¤—वान से पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ करने यहां आते हैं तो वहीं रविवार को यहां शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤²à¥à¤“ं की अधिक à¤à¥€à¥œ देखने को मिलती है, हालांकि पिछले कà¥à¤› समय से चल रहे लॉकडाउन के कारण यहां काफी कम संखà¥à¤¯à¤¾ में ही सैलानी आते हैं। इसकी सà¥à¤‚दरता को देखकर जैन धरà¥à¤®à¤¾à¤µà¤²à¤‚बियों के अलावा परà¥à¤¯à¤Ÿà¤• दांतों तले उंगली दबा लेते हैं। कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि à¤à¤¸à¥€ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾à¤à¤‚ आज के दौर में बनाना बेहद मà¥à¤¶à¥à¤•à¤¿à¤² है। बता दें आज à¤à¥€ यह विशà¥à¤µ की सबसे विशाल 42 फà¥à¤Ÿ ऊंची पदà¥à¤®à¤¾à¤¸à¤¨ पारसनाथ की मूरà¥à¤¤à¤¿ अपने अतिशय से पूरà¥à¤£ है à¤à¤µà¤‚ जैन समाज के परम शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾ का केंदà¥à¤° है। इसके निरà¥à¤®à¤¾à¤£ काल का कोई पà¥à¤°à¤¾à¤®à¤¾à¤£à¤¿à¤• साकà¥à¤·à¥à¤¯ नहीं है। कामता पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ जैन के शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ मेंकृ‘गà¥à¤µà¤¾à¤²à¤¿à¤¯à¤° दà¥à¤°à¥à¤— आज का नहीं, कल का नहीं, वह तो मानव की अतीत वृतà¥à¤¤à¤¿ का कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° होने के नाते उतना ही पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¤¾ है जितना कि आकाश और काल। हाठकाल चकà¥à¤° की फिरन से, इतिहास ने उसके नाना रूप देखें हैं।

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