Specialist's Corner
प्रशान्त कुमार वर्तमान में उत्तराखण्ड वन विभाग में वरिष्ठ परियोजना सहयोगी (वन्यजीव) के पद पर कार्यरत हैं तथा पिछले सात वर्षों से वन्यजीव अपराध नियंत्रण एवं संरक्षण में प्रभावी शोध एवं विश्लेषण कार्य कर रहे है। इन्होंने लगभग पन्द्रह हजार से अधिक वन कर्मियों को वन्यजीव फॉरेंसिक एवं वन्यजीव संरक्षण विषय में प्रशिक्षित किया है तथा पांच सौ से अधिक प्रशिक्षण कार्यशालाओं का आयोजन भी किया है। प्रशान्त कुमार, फॉरेंसिक विज्ञान में बीएससी तथा एमएससी है एवं वाइल्डलाइफ फॉरेंसिक्स में फील्ड के अनुभवी हैं।
उत्तराखंड का तराई जंगल विशाल है, इतना विस्तृत कि उसकी हर दिशा में पेड़ों की कतारें मानो अनंत में खोती जाती हों। यह जंगल शांत भी है, पर वही शांति जब अचानक टूटती है, तो जीवन की कठोरता सामने आ जाती है। तराई की यह धरती जितनी सुन्दर दिखाई देती है, उतनी ही अस्थिर भी है, और इस अस्थिरता को यहाँ रहने वाला हर वन्यजीव अपने हिस्से का अनुभव करता है। जंगल किसी के लिए स्थायी घर नहीं होता, यह हर रोज एक नई परीक्षा की जगह बन सकता है। कभी किसी जानवर को भोजन की तलाश में कई किलोमीटर भटकना पड़ता है, तो कभी किसी और शिकारी से संघर्ष जीवन-मृत्यु का सवाल बन जाता है। सूखे या बारिश के समय पानी की कमी और ठंड में आसरा ढूँढना कई जीवों के लिए संघर्षमय होता है। बीमारी, चोट, प्राकृतिक आपदा, जंगल के नियम कठोर हैं और इन्हें झेलने के लिए हर जीव को तैयार रहना पड़ता है। इसी अनिश्चित और चुनौतीपूर्ण माहौल में कुछ समय पहले तीन छोटे बाघ शावक भटकते मिले थे। यह उस क्षेत्र के वन्यजीवों के लिए भी अनोखी घटना थी, क्योंकि एक साथ तीन शावकों का माँ से अलग हो जाना कई संभावनाओं की ओर इशारा करता है, कहीं माँ किसी दुर्घटना का शिकार हुई हो, कहीं किसी संघर्ष में घायल होकर लौट न पाई हो, या फिर शावक डर के कारण बिखर गए हों।
आखिर क्यों बिछड़ जाते है बाघ/तेंदुआ शावक ?
जंगल में बाघ और तेंदुआ अपने बच्चों की पूरी सुरक्षा का प्रयास करते हैं, लेकिन प्राकृतिक परिस्थितियाँ इतनी कठोर होती हैं कि कई बार शावक अपनी माँ से बिछड़ जाते हैं। इसके पीछे कई स्पष्ट और वैज्ञानिक कारण हैंः
1. माँ की मृत्यु या घायल होना-यह सबसे आम कारणों में से एक है। शिकारियों के जाल में फँसना, सड़क दुर्घटना, अन्य शिकारी जानवरों से संघर्ष, बीमारी या उम्र, इनमें से किसी भी कारण से बाघिन या तेंदुआ माँ जीवित न रहे, तो शावक अपने आप बिछड़ जाते हैं और कुछ ही दिनों में अत्यधिक कमजोरी की स्थिति में पहुँच जाते हैं।
2. शिकार के दौरान दूरी बढ़ जाना-बाघिन/तेंदुआ शिकार करते समय शावकों को सुरक्षित जगह पर छोड़ती है। कभी कभी लम्बी दूरी तक पीछा करने, दिशा बदलने, अचानक जोखिम आने के कारण वह शावकों से बहुत दूर चली जाती है और उन्हें वापस ढूँढ नहीं पाती। शावकों का छोटा आकार और सीमित चलने की क्षमता उन्हें माँ तक लौटने नहीं देती।
3. नर बाघों का खतरा- बाघों में नर बाघ कभी कभी दूसरे नर के शावकों को मार देते हैं ताकि मादा फिर से प्रजनन के लिए तैयार हो जाए। इस खतरे से बचने के लिए मादा शावकों को बार बार जगह बदलती है। इस प्रक्रिया में कभी कभी शावक पीछे रह जाते हैं और बिछड़ जाते हैं।
4. शावकों का डरकर छिप जाना-तेंदुए और बाघ के शावक हल्की से हल्की आवाज पर झाड़ियों में छिप जाते हैं। कभी इंसानी आवाज, वाहन, किसी दूसरे जानवर की मौजूदगी, उन्हें इतना डरा देती है कि वे अलग-अलग दिशाओं में भाग जाते हैं। बाद में माँ लौटती है पर सभी शावक एक साथ नहीं मिल पाते।
5. भोजन की कमी या अत्यधिक दबाव में स्थान परिवर्तन-जब भोजन आसानी से नहीं मिलता या किसी क्षेत्र में दबाव बढ़ जाता है (बारिश, बाढ़, आग या मानवीय गतिविधि), तो मादा तेजी से क्षेत्र बदलती है। शावक छोटे और कमजोर होने के कारण लंबी दूरी तय नहीं कर पाते और बिछड़ जाते हैं।
6. इंसानी दखल-खेतों में आवाज, ग्रामीणों की भीड़, वाहनों का शोर, कैमरा फ्लैश या मोबाइल टॉर्च ये सब शावकों को भ्रमित कर देते हैं। कई बार माँ दूरी से देख रही होती है, लेकिन इंसानी दबाव बढ़ने से वह पास नहीं आ पाती इससे शावक अकेले रह जाते हैं।
7. प्राकृतिक चयन (नेचुरल सर्वाइवल प्रेशर)-वन्यजीव वैज्ञानिक इसे “नेचुरल डिस्पर्सल फेल्योर” भी कहते हैं। हर लिटर के सभी शावक जीवित नहीं रहते। कुछ शारीरिक रूप से कमजोर होते हैं, कुछ धीमे, कुछ बीमार और जंगल की परिस्थितियों में यह कमजोर शावक दूसरों से पीछे रह जाते हैं और अलग हो जाते हैं।
साल 2023 में तराई पश्चिमी वन प्रभाग के बन्नाखेड़ा रेंज में तीन बाघ शावक भटकते हुए वनकर्मियों को मिले। शावक बेहद कमजोर और कई दिनों से बिना खाये-पिए लग रहे थे। वन कर्मियों ने शावकों को नजदीक ही पौधरोपड़ हेतु बनाई गयी अस्थाई झोपड़ी में ले आये और इसकी सूचना तत्काल वनाधिकारिओ को दी। इस सूचना पर तुरंत संज्ञान लेते हुए पशुचिकित्सक टीम सहित मौके पर पहुँच गए और स्थिति का जायजा लिया। शावक कमजोर और भूखे प्यासे थे, पशुचिकित्सक ने तुरंत चिकित्स्कीय जाँच कर कुछ दवाएं दी और पीनेे का पानी दिया। कुछ देर में दूध का इंतजाम किया गया परन्तु शावकों ने दूध नहीं पिया। पुनः उन्हें बोनलेस चिकन दिया गया उसे वे बड़े चाव से खाये। कुछ देर में वे दौड़ने लगे और गुर्राने लगे। अब बात आयी उन्हें उनकी माँ से मिलाने की, जो एक सामान्य प्रक्रिया है। किन्ही कारणवश जंगल में बिछड़े हुए शावकों को उनकी माँ से बेहतर कोई नहीं पाल सकता। शावकों को छेदवाले डिब्बे में रखकर जंगल के समीप बाघ के पंजो के निशान देखकर पास ही रख दिया गया जिससे माँ बच्चो को ले जा सके। वन कर्मी थोड़ी दूर से पूरी रात निगरानी करते रहे परन्तु माँ नहीं आयी। शावकों की माँ से मिलने की आस अधूरी रह गयी। चूँकि शावक बेहद कमजोर थे और काफी दिन से भूखे प्यासे थे इसलिए विभाग और अधिक जोखिम नहीं लेना चाहता था। फलस्वरूप शावकों को रानीबाघ रेस्क्यू सेंटर ले जाया गया।
रेस्क्यू सेंटर बना नया घर
रानीबाग आने के बाद रेस्क्यू सेंटर शावकों का नया घर बना। तीनों शावकों की जिम्मेदारी सौंपी गई जू-कीपर विक्की लाल शाह को। उनका काम सिर्फ भोजन, सफाई और सुरक्षा देना नहीं था बल्कि तीन खोए हुए, भयभीत, और बेहद संवेदनशील जीवों में जिंदगी की उम्मीद जगाना था। धीरे-धीरे दोनों शावक विक्की की उपस्थिति को पहचानने लगे। उन्हें समझ आने लगा कि यह मनुष्य कोई खतरा नहीं, बल्कि उनका संरक्षक है-एक ऐसा चेहरा, जिसकी आवाज सुनकर वे खुद को सुरक्षित महसूस करते थे। समय बीतता गया, और तीनों शावक एक-दूसरे से ऐसे चिपक कर रहते जैसे लगभग एक ही जान हों। थोड़े बड़े होने पर उनके अंदर ताकत भरनी शुरू हो गयी। कभी कभी खेलते समय वो आपस में लड़ भी जाते थे। थोड़े दिन और बीतने के बाद तीनों में से एक शावक की मौत हो गयी। पोस्ट-मॉर्टम में जख्मी होना और घाव की वजह सामने आयी। शायद सबसे कमजोर शावक को बाकि दोनों शावक ने जख्मी कर दिया हो। अब बचे दो शावक, जिनकी देखभाल और चिंताजनक हो गयी। उन्हें गहन निगरानी में रखा गया और कुछ समय बाद अलग कर दिया गया। बड़े होने के साथ-साथ उनके अंदर बदलाव शुरू होने लगे, और स्पष्ट रूप से नर के रूप में पहचाने जाने लगे। रेस्क्यू सेंटर में कर्मचारियों ने देखा कि दोनों शावक हमेशा साथ रहते हैं। खाना, खेल, आराम हर चीज दोनों साथ करते थे। इसी निरंतर संगति को देखकर विक्की ने मजाक में कहा कि वे “जय और वीरू” की जोड़ी जैसे लगते हैं। नाम सुनते ही बाकी कर्मचारी भी सहमत हो गए। यह नाम उन पर बिल्कुल फिट बैठता था-दो साथी, दो सहारा देने वाली शक्तियाँ, और दो जीव जो अपने संघर्ष में एक-दूसरे के सहारे टिके हुए थे। जंगल ने उन्हें खो दिया था, पर इंसानों ने उन्हें एक नया जीवन दे दिया। वे अभी भी छोटे थे, अभी बहुत कुछ सीखना बाकी था, पर इतना तय हो चुका था कि जय और वीरू अब अकेले नहीं थे। अब वे बड़े बाघ बन चुके हैं, चैड़े कंधे, तेज दाँत, पर उनके अंदर जंगल वाले बाघ की दहाड़ नहीं । विक्की की आवाज सुनते ही दोनों बच्चों जैसे हो जाते हैं। विक्की कहते है “बैठो” दोनों एक साथ बैठ जाते। “उठो” दोनों उठ खड़े होते। दुनिया के लिए वे विशाल बाघ हैं, पर विक्की के लिए आज भी वो बच्चे हैं। उनका संघर्ष खत्म नहीं हुआ था, लेकिन उनकी यात्रा का सबसे कठिन हिस्सा पीछे छूट चुका था। आगे का जीवन रेस्क्यू सेंटर या चिड़ियाघर ही बनाने वाला था। ([email protected])
Expert Columns
Tree TakeDec 12, 2025 06:39 PM
जंगल में माँ से बिछड़े दो बाघ आखिर कैसे बन गए जय-वीरू
तीनों शावकों की जिम्मेदारी सौंपी गई जू-कीपर विक्की लाल शाह को। उनका काम सिर्फ भोजन, सफाई और सुरक्षा देना नहीं था बल्कि तीन खोए हुए, भयभीत, और बेहद संवेदनशील जीवों में जिंदगी की उम्मीद जगाना था। धीरे-धीरे दोनों शावक विक्की की उपस्थिति को पहचानने लगे...
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