Specialist's Corner
प्रशान्त कुमार वर्तमान में उत्तराखण्ड वन विभाग में वरिष्ठ परियोजना सहयोगी ;वन्यजीवद्ध के पद पर कार्यरत हैं तथा पिछले सात वर्षों से वन्यजीव अपराध नियंत्रण एवं संरक्षण में प्रभावी शोध एवं विश्लेषण कार्य कर रहे है। इन्होंने लगभग पन्द्रह हजार से अधिक वन कर्मियों को वन्यजीव फॉरेंसिक एवं वन्यजीव संरक्षण विषय में प्रशिक्षित किया है तथा पांच सौ से अधिक प्रशिक्षण कार्यशालाओं का आयोजन भी किया है। प्रशान्त कुमार, फॉरेंसिक विज्ञान में बीएससी तथा एमएससी है एवं वाइल्डलाइफ फॉरेंसिक्स में फील्ड के अनुभवी हैं
वन्य प्राणियों के प्रति दया और करुणा भारतीय संस्कृति और मानवता की गहरी जड़ों से जुड़ी हुई हैं। बचपन से ही हमें सिखाया जाता है कि किसी भी जीव को पीड़ा न पहुँचाना सबसे बड़ा धर्म है। यही कारण है कि जब हम किसी घायल पक्षी को फड़फड़ाते देखते हैं, भूखे बंदर को सड़क किनारे बैठे पाते हैं, या जंगल में एक मासूम हिरण को घास चरते देखते हैं, तो हमारे भीतर का करुणामय मन उन्हें मदद करने के लिए प्रेरित करता है।
लेकिन क्या आपने कभी इस करुणा के दूसरे पहलू पर विचार किया है?
क्या हर बार हमारी मदद वास्तव में उनकी जरूरत होती है?
क्या हम जो ‘मदद’ समझते हैं, वह कहीं उनके जीवन के प्राकृतिक संतुलन को बिगाड़ तो नहीं रही?
बीते कुछ वर्षों में वन्यजीव वैज्ञानिकों और संरक्षणकर्ताओं ने यह स्पष्ट किया है कि मनुष्यों द्वारा जानवरों को बार-बार भोजन देना, उन्हें पालतू बनाने का प्रयास करना, या उनके प्राकृतिक आवास में बेवजह दखल देना, इन सभी कार्रवाइयों का उनके स्वाभाविक व्यवहार पर गहरा और अक्सर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यह हस्तक्षेप न केवल उनके प्राकृतिक शिकार और भोजन खोजने की प्रवृत्तियों को कमजोर करता है, बल्कि उन्हें मनुष्यों के प्रति इतना निर्भर बना देता है कि वे अपने अस्तित्व के लिए खुद पर भरोसा करना ही छोड़ देते हैं। उदाहरण के तौर पर, शहरों के आसपास रहने वाले बंदर, जो कभी जंगलों में रहते थे और फल-फूल से अपना पेट भरते थे, अब इंसानों के हाथों से बिस्किट और चिप्स की अपेक्षा करने लगे हैं। कुछ तो इतने निर्भीक हो गए हैं कि राह चलते लोगों के हाथ से खाना छीन लेते हैं या घरों में घुस जाते हैं। यह व्यवहार न केवल उनके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, बल्कि इंसानों के लिए भी खतरे का कारण बन रहा है। इसी तरह, जब पर्यटक हाथियों को केला या गन्ना खिलाते हैं, तो वे बार-बार बस्तियों के करीब आने लगते हैं। नतीजन, हाथियों की रेल पटरियों पर दुर्घटनाओं में मौत, या खेतों में घुसकर फसलों को नुकसान पहुँचाना आम बात होती जा रही है। एक तरफ इंसान दया के नाम पर यह सब करता है, और दूसरी तरफ जब यही जानवर “समस्या” बन जाते हैं, तो उन्हें भगाने, घायल करने या मारने तक की नौबत आ जाती है। इस प्रकार, अनजाने में की गई हमारी ‘‘दयालुता‘‘ ही वन्य प्राणियों के लिए संकट का कारण बनती है, न केवल उनके लिए, बल्कि पूरे पारिस्थितिकी तंत्र (इकोसिस्टम) के लिए भी। आज आवश्यकता इस बात की है कि हम अपने संवेदनशील हृदय के साथ सजग मस्तिष्क का भी प्रयोग करें। हर मदद जरूरी नहीं कि लाभकारी ही हो। कई बार ‘कम करना’ ही सबसे बड़ी मदद होती है, विशेषकर जब बात जंगलों और उनके स्वाभाविक निवासियों की हो।
पालतू बनाने की प्रवृत्ति और उसका दुष्प्रभाव
कुछ लोग पक्षियों, कछुओं, या छोटे स्तनधारियों को ‘पालतू‘ बनाने के लिए पकड़ लेते हैं। वे यह नहीं समझते कि वन्य जीवों का स्थान जंगल है, पिंजरा नहीं। इनके जीवन के लिए स्वतंत्रता और जैविक विविधता आवश्यक है। कई बार इन्हें पालतू बनाने की कोशिश में जानवर मानसिक तनाव, कुपोषण और मृत्यु का शिकार हो जाते हैं।
मानव हस्तक्षेप से व्यवहार में बदलाव
वन्यजीव वैज्ञानिकों के अनुसार, मनुष्यों के लगातार हस्तक्षेप से जानवरों की सामाजिक संरचना, शिकारी प्रवृत्तियाँ, प्रवास पथ और प्रजनन व्यवहार तक प्रभावित हो रहे हैं। कुछ जानवर आक्रामक हो गए हैं, तो कुछ अत्यधिक डरपोक। यह असंतुलन उनके अस्तित्व के लिए खतरा बनता जा रहा है।
मानव पर निर्भरताः स्वाभाविक व्यवहार में बदलाव
जानवर खुद भोजन खोजना छोड़ देते हैं। कई प्रजातियों की शिकारी प्रवृत्ति समाप्त हो रही है, जिससे खाद्य श्रृंखला (विवक बींपद) में असंतुलन उत्पन्न हो रहा है। मनुष्यों के प्रति अत्यधिक भरोसे के कारण वे शिकारियों और तस्करों का आसान निशाना बन जाते हैं।
क्या कहता है कानून?
वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के अनुसारः
कसी भी संरक्षित प्रजाति को नुकसान पहुँचाना, पकड़ना या पालतू बनाना अपराध है।
वन्य जीवों को भोजन देना या उनके व्यवहार को बदलने वाला कार्य भी दंडनीय हो सकता है।
समाधान क्या है?
सबसे पहले, जन-जागरूकता जरूरी है कि दया दिखाना और सही मदद करना दोनों में फर्क होता है।
जंगलों में यात्रा करते समय वन्य प्राणियों को भोजन न दें।
घायल या असहाय जानवर मिलने पर तुरंत वन विभाग या विशेषज्ञों को सूचित करें, स्वयं उपचार करने की कोशिश न करें।
पालतू जानवर के तौर पर वन्य जीवों को अपनाने से बचें। यह न सिर्फ अनैतिक है, बल्कि कई बार अवैध भी होता है।
अपने घर के आसपास, दीवार और चबूतरों पर पक्षियों को भोजन न दें, उन्हें इसकी आदत लग जाती है।
Leave a comment