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यमुना संरक्षण के लिए आगरा, मथुरा और वृंदावन में गाद और मलबे की सफाई जरूरी

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यमुना संरक्षण के लिए आगरा, मथुरा और वृंदावन में गाद और मलबे की सफाई जरूरी

आधिकारिक रिपोर्टें बता रही हैं कि आगरा से मथुरा तक यमुना की प्रवाह क्षमता 30 से 35 प्रतिशत तक घट चुकी है। सैटेलाइट इमेजरी से साफ दिख रहा है कि पुलों और घाटों के नीचे गाद का मोटा जमाव हो गया है, जिसकी वजह से नदी का नैसर्गिक बहाव रुक-सा गया है...

यमुना संरक्षण के लिए आगरा, मथुरा और वृंदावन में गाद और मलबे की सफाई जरूरी

Thinking Point
बृज खंडेलवाल 
आगरा के बृज खंडेलवाल जाने-माने पत्रकार और पर्यावरणविद हैं 
यमुना नदी करोड़ों लोगों की जिंदगी की धड़कन, हमारी सभ्यता की पालना और धार्मिक-सांस्कृतिक आत्मा आज संकट में है। आगरा, मथुरा और वृंदावन जैसे ऐतिहासिक और आध्यात्मिक नगरों में हालिया बाढ़ ने अपना कहर बरपाया और पीछे छोड़ गई है बेहिसाब गाद, मलबा और गंदगी। यह खतरनाक जमाव अब नदी की सांसें रोक रहा है और हमारी धरोहर, रोजगार, स्वास्थ्य और पहचान सब खतरे में डाल रहा है।  ताज कॉरिडोर पर ढेरों गाद  जमा है।
आधिकारिक रिपोर्टें बता रही हैं कि आगरा से मथुरा तक यमुना की प्रवाह क्षमता 30 से 35 प्रतिशत तक घट चुकी है। सैटेलाइट इमेजरी से साफ दिख रहा है कि पुलों और घाटों के नीचे गाद का मोटा जमाव हो गया है, जिसकी वजह से नदी का नैसर्गिक बहाव रुक-सा गया है। परिणाम यह है कि पानी नालों और सीवरों में उल्टा घुसने लगता है और निचले इलाकों में जलभराव आम हो चला है। हाल के सर्वे बताते हैं कि हर साल औसतन 2 से 3 सेंटीमीटर नई गाद नदी तल पर जम रही है। विशेषज्ञ चेतावनी दे चुके हैं कि अगर यह सिल्टिंग कंट्रोल नहीं हुई तो तटबंधों पर दबाव बढ़ेगा, कटान तेज होगा और भविष्य की बाढ़ें और तबाही लेकर आएँगी।  
मथुरा और वृंदावन इस बार की बाढ़ से सबसे ज्यादा प्रभावित हुए। 50 से ज्यादा गाँव पूरी तरह डूब गए, हजारों लोग बेघर हो गए और खेती-बाड़ी चैपट हो गई।  धार्मिक स्थानों पर सैकड़ों श्रद्धालु फँस गए थे। वृंदावन के घाट कीचड़ और मलबे से पट गए। केशी घाट, जो श्रद्धालुओं और सैलानियों का अहम ठिकाना है, गाद से घिरा पड़ा है। वहाँ स्थानीय पुजारी कहते हैं कि हमारे पवित्र घाट अब गंदगी से भरे तालाब जैसे लगते हैं। यात्री आकर निराश होकर लौट जाते हैं। धार्मिक आयोजनों  पर लाखों लोग यमुना स्नान करने आते हैं, लेकिन घाटों की इस दुर्दशा से धार्मिक आस्था को गहरी चोट पहुँची है।  
आगरा और मथुरा-वृंदावन का पर्यटन उद्योग हर साल हजारों करोड़ रुपये की अर्थव्यवस्था को सहारा देता है। लेकिन गाद और गंदगी से भरी नदी और ठहरे पानी का बदबूदार माहौल सैलानियों को निराश कर रहा है। नाविक जो रोजी-रोटी के लिए पर्यटकों पर निर्भर हैं, उनकी कमाई पर असर पड़ा है। एक नाविक का बयान इस हालात को बेनक़ाब करता है कि पहले रोज पाँच-छह सवारी मिल जाती थी, अब लोग नाव में बैठने से डरते हैं। नदी में बदबू और कीचड़ का सैलाब है।  
ठहरे हुए पानी और उल्टे बहाव वाले नालों की वजह से मच्छरों की तादाद ज्यादा बढ़ गई है। मथुरा और वृंदावन में कई हिस्सों से डेंगू और मलेरिया के मामले मिलने शुरू हो चुके हैं। पीने के पानी की टंकियों में कॉलिफॉर्म बैक्टीरिया पाए जाने की पुष्टि हुई है। बाढ़ के पानी में नहाने से त्वचा और पेट की बीमारियाँ तेजी से फैल रही हैं। यह सिर्फ पर्यावरण या नदी का संकट नहीं है, बल्कि सीधा-सीधा जनस्वास्थ्य आपदा है।  
यमुना एक्शन प्लान और गंगा सफाई योजनाओं पर हजारों करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं लेकिन स्थिति जस की तस है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल बार-बार आदेश दे चुका है कि नदियों के नैसर्गिक रास्तों पर निर्माण और अतिक्रमण रोकना अनिवार्य है। बावजूद इसके मथुरा और आगरा के बाढ़ मैदानों में अवैध कॉलोनियाँ और दुकानें खड़ी होती जा रही हैं। यह गवर्नेंस का सीधा फेल्योर है। विभाग आपस में तालमेल नहीं बैठा पाते और सफाई तथा ड्रेजिंग का काम अधूरा रह जाता है।  
अब सवाल यह है कि फिर रास्ता क्या है। केंद्रीय जल आयोग और सिंचाई विभाग को अगले पंद्रह दिनों में गाद जमा होने की पूरी स्थिति का सर्वे करना चाहिए। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल से अनुमति लेकर चुनिंदा जगहों पर सावधानी के साथ 30 से 45 दिन के भीतर इको-फ्रेंडली ड्रेजिंग की जानी चाहिए। साथ ही घाटों और नदी किनारे जमा प्लास्टिक और मलबे की तुरंत सफाई शुरू होनी चाहिए। लंबे समय के लिए अपस्ट्रीम वेस्ट ट्रीटमेंट, सीवर कंट्रोल और रेत जमाव पर रोक की स्थायी योजना बनाई जानी जरूरी है। इस काम की पारदर्शी निगरानी के लिए स्थानीय विश्वविद्यालयों, एएसआई, पर्यावरण संस्थाओं और सामाजिक प्रतिनिधियों की संयुक्त कमेटी बनाई जानी चाहिए।  
यह स्थिति ऐसे सवाल खड़े करती है जिन्हें टालना अब नामुमकिन है। यमुना सिर्फ एक नदी नहीं है। यह हमारी सभ्यता का आईना है, हमारी रोजमर्रा की जिंदगी का सहारा है और हमारी सांस्कृतिक विरासत की आत्मा है। आज यह घुट रही है और हमसे मदद की पुकार कर रही है। अगर अब भी कदम नहीं उठाए गए तो हालात और बिगड़ेंगे। बाढ़ें आएँगी, धरोहरें ढहेंगी और लोग बेघर होंगे।  
समय कम है। यह फैसला अभी करना होगा कि हम यमुना को मरने देंगे या उसे नया जीवन देंगे।
 

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