A First-Of-Its-Kind Magazine On Environment Which Is For Nature, Of Nature, By Us (RNI No.: UPBIL/2016/66220)

Support Us
   
Magazine Subcription

Ramesh Goyal

TreeTake is a monthly bilingual colour magazine on environment that is fully committed to serving Mother Nature with well researched, interactive and engaging articles and lots of interesting info.

Ramesh Goyal

Ramesh Goyal

Ramesh Goyal

बढ़ता तापमान पिघलते हिमखंड
रमेष गोयल
लेखक पर्यावरण एवं जल संरक्षण को समर्पित कार्यकर्ता, पर्यावरण प्रेरणा के राष्ट्रीय अध्यक्ष तथा जल स्टार व अनेक पुरुस्कारों से सम्मानित हैं
गत कुछ दषकों में वैष्विक तापमान निरन्तर बढ़ रहा है। बढ़ते प्रदूशण के कारण तापमान प्रभावित हो रहा है। जिसके कारण तीव्रता से जलवायू परिवर्तन हो रहा है। जुलाई 2016 गत वर्शों में सर्वाधिक गर्म मास रहा वहीं वर्श 2016 सर्वाधिक गर्म वर्ष और यह स्थिति केवल भारत की नहीं बल्कि विष्व के लगभग सभी देष इससे प्रभावित व परेषान हैं। वर्श 2017 के आरम्भ में जनवरी में बहुत कम सर्दी रही और फरवरी में अप्रैल जैसा मौसम। 18 अप्रैल को 40 से 46 तक का तापमान बहुत चिंतनीय है। 18 अप्रैल 2017 को दौसा में 46 डिग्री तापमान भविशय के खतरे का स्पश्ट संकेत है। कहीं अति वर्षा, कहीं बर्फीला तुफान, कहीं कोई और प्राकृतिक आपदा यह सब जलवायू परिवर्तन का ही प्रभाव है। तापमान के निरन्तर बढ़ने के कारण हो रहे जलवायू परिवर्तन से वर्षा प्रभावित हो रही है और समयानुसार व सामान्य वर्षा की बजाय असामयिक व असामान्य (अति या कम) वर्शा हो रही है। अति वर्शा से बाढ़ आती है और विनाश का कारण बनती है वहीं कम वर्षा से पानी की कमी होती है जो अन्यथा और दैनिक परेशानी का कारण बनती है। जल की आपूर्ति के लिए भूजल दोहन किया जाता है और इसी कारण देश भर में 50 प्रतिषत से अधिक भूजल ब्लाक डार्क जोन (खतरनाक स्थिति) में चले गए हैं और यह संख्या निरन्तर बढ़ती जा रही है।
तापमान को नियन्त्रण में रखने और गर्मी के मौसम में नदियों में जल आपूर्ति के लिए पहाड़ों पर हिमखंड (गलेशियर) का बहुत महत्व रहा है। बर्फ से ढ़के बहुत बड़े पर्वतीय भाग को हिमखंड (ग्लेशियर) कहते हैं और सर्दी में पहाड़ों पर जमने वाली बर्फ इसका विस्तार करती है। विश्व के भूूभाग का 150 लाख वर्ग कि.मी. लगभग 10 प्रतिशत क्षेत्र हिमखंड हैं। एक समय था जब 32 प्रतिशत भू क्षेत्र व 30 प्रतिशत समुद्री क्षेत्र हिमखंड (ग्लेशियर) था और उसे बर्फ युग कहा जाता था। कुल हिमखंड का एन्टार्कि्टक (दक्षीणी ध्रुव) में 84.5 प्रतिशत व ग्रीनलैंड में 12ः हिमखंड है। भारत में सबसे बड़े ग्लेशियर सियाचिन के अलावा गंगोत्री, पिंडारी, जेमु, मिलम, नमीक, काफनी, दरांग-र्दगं, हरी पर्वत, शीम्मे, रोहतांग, ब्यास कुंड, चन्द्रा, सोनापानी, ढाका, भागा, पार्बती, शीरवाली, चीता काठा, कांगतो, नन्दा देवी श्रंखला, पंचचुली, जैका आदि अनेक हिमखंड हैं। जम्मु कशमीर, अरुणाचल, सिक्किम, उतराखंड व हिमाचल में गर्मियों में सुहावने मौसम का श्रेय इन हिमखंडों को मिलता रहा है। 1995 व 1996 में अमरनाथ यात्रा के समय में स्वयं अनेक हिमखंड देखे थे और स्थानीय लोगों को उन पर ऐसे ही चलते देखा जैसे सड़क पर चलते हों। बढ़ते तापमान का प्रभाव मैदानी क्षेत्रों पर नहीं पर्वतीय क्षेत्रों पर भी स्पष्ट है और हिमखंडों की श्रंखला व क्षेत्र निरन्तर घटता जा रहा है जो एक और चिन्ता का विशाय है।
 à¤ªà¤¹à¤¾à¤¡à¥‹à¤‚ पर जहां अप्रैल में सामान्यतः 4-ं6 डिग्री तक तापमान रहता है वह गौमुख क्षेत्र में गत सप्ताह 14 डिग्री तक हो चुका है। चारों ओर बर्फ हीं बर्फ दिखने वाले पहाड़ी क्षेत्रों में भी कहीं .कहीं बर्फ दिखती है। मौसम विज्ञान केन्द्र देहरादून के निदेषक विक्रम सिंह अनुसार इस बार अप्रैल में सामान्य से 4 से 7 डिग्री तापमान अधिक है। हिमखंडों के ऐसे पिघलने से पानी की कमी और बढ़ेगी क्योकि आवष्यकता से पूर्व व अधिक मात्रा में पानी नदियों के माध्यम से समुद्र में चला जायेगा जिससे तापमान नियन्त्रण भी प्रभावित होगा। आवष्यकता है पृथ्वी दिवस पर हर व्यक्ति जल-ंउर्जा तथा प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करने का संकल्प करे तथा हर वर्श कम से कम एक वृक्ष ंअवष्य लगाये।

March-April 2017
रमेश गोयल
लेखक पर्यावरण एवं जल संरक्षण को समर्पित कार्यकर्ता तथा जल स्टार व अनेक पुरुस्कारों से सम्मानित है
22 मार्च ‘‘विश्व जल दिवस’’ है। हर दिन का अपना एक विशेष महत्व होता है ओर उस दिन हम अपने जीवन के उस पक्ष को मजबूत करने हेतु कार्य करते हैं। वास्तव में जल के सर्वाधिक विस्तृत भंडार समुद्र का पानी जीवनोपयोगी नहीं है। उसे पीने योग्य बनाना आसान नहीं है। धरातल पर 71 प्रतिशत पानी होते हुए भी वास्तव में कुल उपलब्ध पानी का लगभग एक प्रतिशत पानी ही जीवन रक्षक है इसलिए पानी का महत्व और बढ़ जाता है। पानी के बिना मनुष्य ही नहीं वनस्पति, जीव जन्तु कोई भी जीवित नहीं रह सकेगा। पानी की महत्ता वास्तव में उस समय पता चलती है जब हमें बहुत प्यास लगी हो और पीने का पानी आस पास उपलब्ध न हो। तब हम दो घूंट पानी के लिए ही छटपटाने लगते हैं और ऐसा लगता है कि यदि तुरन्त पानी न मिला तो हमारे प्राण संकट में पड़ जायेंगे। आधुनिकीकरण की ओर अग्रसर सभ्यता व बढती जनसंख्या के कारण जंगल कम होते जा रहे हैं। मशीनीकरण से प्रदूषण व तापमान बढ़ रहा है। जलवायू परिर्वतन के कारण वर्षा कम हो रही है जिससे नदियों में जल घटता जा रहा है। फिर भी नदियों में कूड़ा-कर्कट, गन्दगी व जहरीला कचरा डाला जा रहा है। जल आपूर्ति के लिए नलकूपों द्वारा अधिक भूजल दोहन के कारण भू-जल स्तर गिरता जा रहा है। देश के 5723 जल ब्लाक में अधिकांश तेजी से डार्क जोन में होते जा रहे हैं और सन् 2025 तक 60 प्रतिशत से अधिक ब्लाक डार्क जोन में चले जाने का खतरा है। पूरे विश्व में घोर पेय जल संकट उत्पन्न रहा है और प्राणी का जीवन खतरे में पड़ रहा है।
पृथ्वी, जो चारों ओर पानी से घिरी है, वही अब पानी के अभाव से त्रस्त होती जा रही है। अब तक वैज्ञानिकों ने जिन ग्रहों की खोज की है, वहां पानी नहीं है। विश्व के सबसे धनी खाड़ी के देश आजकल अपने यहां दुनिया की सबसे सस्ती व सर्वाधिक महत्वपूर्ण वस्तु पानी के लिए संघर्ष कर रहे हैं। यहां तेल तो हर जगह है लेकिन पानी की कीमतें जिस तेजी से बढ़ रही हैं उसका कोइ्र अनुमान भी नहीं लगा सकता। इन देशों के आस पास समुद्र तो है लेकिन उसका पानी न तो पिया जा सकता है और न ही उससे खेती हो सकती है। ने आधुनिक तकनीक अपनाई है जो केवल 20 प्रतिशत पानी खेतीबाड़ी के लिए उपयोग करता है। किस फसल को कितना पानी देना चाहिए उसकी  बूंदों तक का हिसाब रखा जाता है। दुनिया के अन्य देश जहां पानी की कमी है, वे इस तकनीक को इस्त्रायल से प्राप्त करते हैं। भारत ने भी इस मामले में इस्त्रायल को अपना आदर्श बनाया है। दजला और फुरात नदी पर तुर्की ने तीन, सिरिया और इराक ने दो बांध बनाकर अपनी समस्या हल की है लेकिन इनमें किसी प्रकार का आपसी विवाद खाड़ी के देशों को पानी के लिए महायुद्व की ओर धकेल देगा। जापान के क्योटो शहर में सम्पन्न विश्व जल फोरम की बैठक में जल समस्या के हल हेतु लगभग 100 संकल्प पारित किए गये जिसमें 182 देशों के लगभग 24000 प्रतिनिधियों ने भाग लिया था।
सन् 2025 तक हमारी जल खपत 1530 अरब घन मीटर हो जाएगी परन्तु वर्षा के बिना हमारे पास कोई दूसरी जल सम्पदा नहीं है इसलिए वर्षा की एक एक बूंद को बचाना और धरती में रिचार्ज करना ही सबसे जरूरी कार्य हो जाता है। वर्ष 2005 में अलीगढ़ में प्रकाशित समाचार अनुसार एक सप्ताह में पानी के अभाव में हजारों पक्षी मर गए थे। न्यायमूर्ति शम्भूनाथ श्रीवास्तव ने इसका संज्ञान लेते हुए सरकार से जानकारी ली तब यह तथ्य सामने आया कि उत्तर प्रदेश में 1952 में 392000 हैक्टेयर भूमि में तालाब थे जिनमें से अब अधिकांश भवन, कल कारखाने या खेती में प्रयुक्त हो चूके हैं। कृषि में पानी की खपत बहुत अधिक होती है। खारे व क्षारीय पानी के कारण उपजाऊ भूमि भी बंजर बन जाती है। खेती के लिए कम पानी से अधिक सिंचाई ही एक मात्र हल है और इसके लिए सूक्ष्म सिचाई प्रणाली व फव्वारा पद्धति बहुत कारगर सिद्व हुई है। पानी की बर्बादी न करते हुए, वर्षा जल संग्रहण, वाटर हारवैस्टिंग व रिर्चाजर के द्वारा पानी की कमी को कुछ कम किया जा सकता है। अधिक पानी की खपत वाली फसलों धान व गन्ना की खेती कम की जाये तथा तिलहन व दलहन की ओर अधिक ध्यान दिया जाये तो पानी भी बचेगा और देश को भी लाभ होगा।
     पीने के पानी का यह संकट दिन प्रतिदिन गहराता जा रहा है। छोटे स्थानों की अपेक्षा महानगरों में बहुत विकट परिस्थितियां हैं। दिल्ली को प्रतिदिन 1950 मिलियन गैलन पानी चाहिए किन्तु दिल्ली जल बोर्ड 850 मिलियन गैलन पानी ही उपलब्ध करा पाता है। दिल्ली में  6000 लीटर पानी निशुल्क दिया जाता था जिसे प्रथम जनवरी 2010 से शुन्य कर दिया गया तथा पानी दर पहले से 3 गुणा कर दी गई और 31 जनवरी तक पानी मीटर लगवाने अनिवार्य कर  दिए गए। पाईप लगाकर कार धोने पर जुर्माने का प्रावधान भी किया गया है। मुम्बई में अक्तूबर-नवम्बर 2009 में पानी सप्लाई में 30 प्रतिशत कटौती की गई थी जो समय समय पर बढ़ाई भी जाती है। हरियाणा सरकार ने भी गत दिनों शहरी व गा्रमीण जल नीति अधीन सभी कनैक्शन धारकों के लिए मीटर अनिवार्य कर दिए हैं।भले ही  ‘आप’ सरकार ने दिल्ली में 20 हजार लीटर पानी मुफ्त देने की घोषणा की हो परन्तु यह व्यावहारिक नहीं है और जल बर्बादी को बढ़ावा मिलगा जिससे पानी की कमी और बढ़ेगी। एक अनुमान अनुसार अगले 20 वर्षों में देश में जल की मांग 50 प्रतिशत बढ़ जायेगी जबकि 1947 में देश में मीठे जल की उपलब्धता 6000 घनमीटर थी जो 2000 में घटकर मात्र 2300 घनमीटर रह गई और 2025 तक 16000 घन मीटर हो जाने का अनुमान है। भारत में वर्षा जल का मात्र 15 प्रतिशत जल ही उपयोग होता है, शेष समुद्र में चला जाता है।
स्वच्छ जल की अनुपलब्धता कई क्षेत्रों में तनाव उत्पन कर रही है। उतरी अफ्रीका और पश्चिमी एशिया में स्थिति गम्भीर हो चुकी है। संसार की लगभग दो तिहाई आबादी उन देशों में रह रही है जहां पानी की बहुत कमी है। गली मोहल्लों के सार्वजनिक नलों पर पानी के लिए झगडे़ सामान्य बात है परन्तु यह सब यहीं तक सीमित नहीं है बल्कि हरियाणा-पंजाब का भाखड़ा-ब्यास जल बंटवारे के लिए जल विवाद, दिल्ली-हरियाणा का यमुना जल विवाद, कर्नाटक-तामिलनाडू का कावेरी जल विवाद वर्षों पुराना है। भारत पाक सम्बन्धों में आतंकवाद जैसे विषयों के अतिरिक्त जल बंटवारा भी एक विवादित विषय है और पाक योजना आयोग के अनुसार रावी जल बंटवारा सही नहीं किया तो भारत पाक के बीच युद्व हो सकता है। युद्व की यह बात भी नई नहीं है क्योंकि जल-वैज्ञानिकों की चेतावनीपूर्ण भविष्यवाणी अनुसार यदि तीसरा विश्वयुद्ध हुआ तो वह पानी के नाम पर होगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन के वर्ष 2004 के एक सर्वेक्षण के अनुसार पूरी दुनिया के एक अरब से अधिक लोगों को पीने का साफ पानी नहीं मिलता है और यह संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है । 2031 तक वर्तमान से चार गुणा अघिक पानी की आवश्यकता होगी।  बहुत से लोग यह नहीं जानते कि वे अनजाने में बहुत पानी बरबाद करते हैं। विख्यात जल विशेषज्ञ प्रो0 असित बिस्वास के अनुसार ‘बीते दो सौ वर्षांे के मुकाबले आने वाले 20 वर्षांे में जल प्रबन्धन की आवश्यकता अधिक होगी। 
जल बहुत रोगों में दवा का काम भी करता है। ठंडे ओर गर्म जल में अलग अलग औषधिय गुण हैं।  गर्म पानी का लाभ वात रोगों जैसे जोड़ों का दर्द, घुटने का दर्द, गठिया, कंधे की जकड़न में होता है। पानी का कोई विकल्प नहीं। प्यास लगने पर पानी ही पीएं कोल्ड ड्रिंक्स आदि नहीं । अगर हम पानी की बचत नहीं करेंगे तो ‘बिन पानी सब सून‘ अनुसार एक दिन ऐसा आएगा कि पानी के बिना हम तड़फने लगेंगे। पानी के महत्व को न समझ पाने और इसके अनियमित व अधिक दोहन एवं प्रदूषण के चलते ही आज सभी देशों को पानी के संकट का सामना करना पड़ रहा है। यदि सब लोग मिलकर यह संकल्प कर लें कि हम पानी को बरबाद नहीं होने देंगे तो वहां कभी भी पानी की कमी नहीं होगीे अन्यथा आने वाली पीढ़ी की क्या दशा होगी, हमें सोचना होगा। पानी की बर्बादी के प्रति जागरूकता के लिए ही संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2013 को अन्तर्राष्ट्रीय जल संरक्षण वर्ष घोषित किया था और हर वर्ष 22 मार्च को ‘‘विश्व जल दिवस’’ के प्रतीक रूप में याद किया जाता है। 

Leave a comment