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वन उत्पादन एवं ग्रामीण विकास

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वन उत्पादन एवं ग्रामीण विकास

वन उत्पाद अपना बहुआयामी हिस्सा ग्रामीण विकास में दर्शाता है । इसमें तेन्दुपत्ता, पलाश के फूल एवं पत्तिया गोंद औषधिय वनस्पति तुलसी, हल्दी, धृत्तीकुमारी, शहद, महुआफूल, बेर, बेल, कैथा, लाख, बांस, सबई खुसखुसीत आदि वन उपज शामिल है...

वन उत्पादन एवं ग्रामीण विकास

Specialist's Corner
डॉ योगेश यादवराव सुमठाणे, सहायक प्राध्यापक तथा वैज्ञानिक, College of Forestry] Banda] Banda University of Agriculture and Technology] Banda
भारत के लगभग ६०: लोकसंख्या कृषि एवं वानिकी आधारित है। वानिकी मे मुख्यतः कृषिवानिकी के मदद से किसान के जीवन में विशेष रूप से आर्थिक उन्नती लाने का काम पिछले कई सालों से हो रहा है ।
भारत एक ऐसा राष्ट्र है जो विविधतांओ से भरा पड़ा है । इस विविधता में जैव-विविधता, लोगों के भाषाओं में विविधता, उनके कार्यशैली, में विविधता अताः इन विविधताओं साथ-साथ भारत के कृषि पद्धति में भी अनेको आयाम देखने को मिलते है। इस विशाल देश का वनाच्छादित्य और वृक्ष आवरण 24.62ः हैं। भौगोलिक क्षेत्र का कुल आवरण 7,13,789 वर्ग कि.मी. है, जो कि भौगोलिक क्षेत्र का 21.71ः है । इसमें वृक्षों का आवरण देश के भौगोलिक क्षेत्र का 2.91ः है, यह उपर्युक्त तथ्य भारतीय वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के द्वारा दिया गया है । वन उत्पाद अपना बहुआयामी हिस्सा ग्रामीण विकास में दर्शाता है । 
इसमें तेन्दुपत्ता, पलाश के फूल एवं पत्तिया गोंद औषधिय वनस्पति तुलसी, हल्दी, धृत्तीकुमारी, शहद, महुआफूल, बेर, बेल, कैथा, लाख, बांस, सबई खुसखुसीत आदि वन उपज शामिल है । गाँव तथा ग्रामीणों का जीवन प्रत्यक्षरूप से जो वनवाशी समुदाय और उन्ही के समकक्ष अपनी जीविका आर्थिक विकास इन्हीं वन उत्पादनों के द्वारा करते आ रहे है । भारत एक वैदिक परम्परा को पिछले कई सालों से समाज में रूझाने की कोशिश करते आ रहा है, इसी परम्परा को आगे बढाते हुये, देश में आज भी नई तकनीकों के साथ वन उत्पादनों से ग्रामीणों के जीवन में नयी सोच के साथ विकास के मुख्यधारा में हम सभी वैज्ञानिक दृष्टिकोन को साथ लेते हुऐ देश के विकास में बहुमूल्य हिसेदारी निभा रहे है । बहुत से ग्रामीण क्षेत्र आज भी नई तकनीकों से  और उसके उपयोग से वंचित है । देश में बहुत सारी सरकारी तथा गैर सरकारी संस्थाये इन मुद्दो पैर सालों से काम करते आ रहे है ।
भारतीय सांख्यकीय विभाग द्वारा जो आकड़े वन उत्पादन एवं उसके उपयोग के सम्बन्ध में बार-बार  अनेको  माध्यमों से लोग के सामने तथा ग्रामीणों के सामने जिस में मुख्यतः किसान परिवार शमिल है । उनके उद्धान के लिए विश्वविद्यालय तथा समकक्ष संस्थाये अविरत कार्य में जुड़े हुये है ।
विश्वविद्यालय तथा उससे समकक्ष संस्थाये प्रौद्योगिकी को किसानों एवं ग्रामीणों में पहुचाने का एक विशाल लक्ष्य सामने रखकर कार्य कर रहे है । इसी कार्य का ही फल है, जो कि  भारत के किसान वन उत्पादन को एक मुख्य धारा में लाने में सक्षम हुए । आज भी हमारे बहुत सारे किसान भाई तथा बहनें इस मुख्य धारा में शामिल नहीं हुये हैं, और आने वाले समय में देश के युवा वर्गों से जो आपेक्षाये बढ़ रही है, उसमें वनो पर और वन उत्पादनों पर जो दबाव और बढ़ती हुयी आपेक्षाये, वन एवं वन उत्पादन आधारित लघु उद्योगों की माला बढ़ रही है । उससे उभारने के लिए हमें एक दिशा निर्धारित करनी होगी । भारत के मूल निवासी के रूप में जो वन परिक्षेत्र में बसे हुये लोग है, और जो कृषि तथा कृषि आधारित व्यवसायों पर अपना निर्वाहन कर रहे है, उनको वन उत्पादनों को बढ़ाने की तथा वनों को बचाने की भूमिका निभानी होगी ।
वन उत्पादन विकाशील और विकसित दोनों अर्थव्यवस्थांओ मे उपयोग की अपरिहार्य वस्तुये है । वन, वानिकी, वन उत्पादन ग्रामीणों को तथा समकक्ष लोगों को रोजगार प्रदान करती है । कृषिवानिकी उन भूमिमों पर कब्जा करती है जो कृषि उद्योगों के लिए कम क्षमता वाली है । वन उत्पादन अपनी अर्न्तनिहित क्षमताओं के कारण भविष्य में भी हमारे अर्थव्यवस्था के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती रहेगी । अतः वन क्षेत्र से निकले हुये वन उत्पादनों को प्रभावी योजना के लिए उपयोग एवं व्यवहार को जानना आवश्यक होगा।
ग्रामीणों के एकत्रित आय की खपत के स्तर के बीच मानात्मक सम्बन्ध का अनुमान योजना कार्यो के लिए बहुत उपयोगी होगा । वन उत्पादनों की स्पष्ट खपत और वास्तविक आय की किमतों पर राष्ट्रीय आय के बिच सम्बन्ध को निर्धारिक करने का प्रयास करता है, इसमें मुख्यतः वे:
१. सम्बन्ध के प्रकृति और उसके परिणाम का निर्धारण
२. वन उत्पादनों के खपत में वृद्धि दर का अनुमान
३. नवीतम तकनिकी तथा उसकों धरातल पर पहुंचाने की कोशिश करनी होगी 
    अनेक किसान उद्धान योजनाओं को भारत में दिन-पर-दिन बढ़ावा मिल रहा है, इसी अम्रतुल्य आशा को जीवित रखते हुये हम सब भारतीय वन वानिकी एवं वन उत्पादन का उपयोग करने के साथ दृ साथ उसकों भविष्य में संरक्षित करने का भी दायुत्व उठाते हैं । इसी उपक्रम को देश के विभिन्न राज्यों तथा लोगों के बीच रूझाने का महत्त्वपूर्ण कार्य आने वाले समय में हम सब को साथ मिलकर करना होगा।
 

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