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सृजन, विज्ञान और संगीत का संगमः प्रो शिव पूजन सिंह की लौकी

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सृजन, विज्ञान और संगीत का संगमः प्रो शिव पूजन सिंह की लौकी

जब ‘नरेंद्र शिवानी’ पूरी तरह सूख जाती है, तो इसका बाहरी खोल बहुत मजबूत और खोखला हो जाता है। मैंने इसे तराशकर एक वाद्य यंत्र बनाया, जिसकी ध्वनि बिल्कुल शंख जैसी थी...

सृजन, विज्ञान और संगीत का संगमः प्रो शिव पूजन सिंह की लौकी

Selfless Souls
एक इंटरव्यू प्रोफेसर शिव पूजन सिंह के साथ। साक्षात्कारकतार्ः हरेन्द्र नारायण सिंह
प्रश्नः कुछ समय पूर्व मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की एक तस्वीर वायरल हुई थी, जिसमें वे एक विशाल लौकी के साथ दिख रहे थे। क्या आप हमें इसके बारे में कुछ बता सकते हैं?
जी हां, वह लौकी हमारी विकसित की गई किस्म ‘नरेंद्र शिवानी‘ थी। यह एक विशेष प्रजाति है जो 6 से 7 फीट तक लंबी हो सकती है। इस लौकी को केवल खाने के लिए नहीं, बल्कि सजावट, कंटेनर और यहां तक कि संगीत वाद्य यंत्र बनाने के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
प्रश्नः आपने लौकी को इस स्तर तक पहुंचाया। इस प्रेरणा की शुरुआत कहां से हुई?
मेरा जन्म 5 जून 1953 को आजमगढ़ जिले के गाँव गौरा बेनी में हुआ था। मेरे पिता शिक्षक थे, लेकिन घर में कृषि परंपरा रही। बचपन से ही खेतों से लगाव था, जो आगे चलकर मेरी शोध यात्रा की नींव बना।
प्रश्नः आपने अपनी शिक्षा कहाँ से प्राप्त की?
स्कूली पढ़ाई गाँव में ही हुई। फिर 1972 में सिबली कॉलेज, आजमगढ़ से जीव विज्ञान में स्नातक किया। इसके बाद जी. बी. पंत कृषि विश्वविद्यालय से आनुवंशिकी और पादप प्रजनन में 1975 में एमएससी और 1980 में पीएचडी की उपाधियाँ प्राप्त कीं।
प्रश्नः आप लौकी जैसी साधारण समझी जाने वाली सब्जी पर कैसे केंद्रित हुए?
जब मैंने 1982 में एन.डी.यू.ए.टी., फैजाबाद (अब अयोध्या) में सब्जी अभिजनक के रूप में काम शुरू किया, तो मुझे टमाटर और बैंगन में रुचि थी। लेकिन मुझे कद्दूवर्गीय फसलों पर कार्यभार सौंपा गया। इनमें लौकी, कद्दू, परवल जैसी सब्जियाँ थीं, जिन्हें तब बहुत महत्त्व नहीं दिया जाता था। मैंने इसे एक चुनौती की तरह लिया और इन फसलों की गरिमा बढ़ाने का संकल्प किया।
प्रश्नः ‘नरेंद्र शिवानी’ का विकास कैसे हुआ?
2001 में एक किसान के खेत में मैंने असामान्य रूप से लंबी लौकी देखी। उसमें मुझे संभावनाएं दिखीं। गहन शोध और चयन के बाद 2007 में ‘नरेंद्र शिवानी’ को उत्पादन के लिए जारी किया गया। यह किस्म 7 फीट से अधिक लंबी हो सकती है। एक किसान ने इसे 7 फीट तक उगाया भी है।
प्रश्नः आपने यह कहा कि लौकी संगीत भी बना सकती है, यह कैसे संभव है?
जब ‘नरेंद्र शिवानी’ पूरी तरह सूख जाती है, तो इसका बाहरी खोल बहुत मजबूत और खोखला हो जाता है। मैंने इसे तराशकर एक वाद्य यंत्र बनाया, जिसकी ध्वनि बिल्कुल शंख जैसी थी। यह प्रयोगशाला की नहीं, कल्पना और अनुभव की उपज थी। इससे फेफड़ों का व्यायाम होता है और यह किसानों के लिए एक वैकल्पिक आय का साधन भी बन सकता है।
प्रश्नः सोशल मीडिया पर यह दावा किया जा रहा है कि लौकी की लंबाई बढ़ाने के लिए ऑक्सीटोसिन का प्रयोग किया जाता है। क्या इसमें कोई सच्चाई है?
बिल्कुल नहीं। यह एक पूर्णतः झूठा और भ्रामक दावा है। मैंने अपने किसी भी शोध या विकास में ऑक्सीटोसिन का प्रयोग कभी नहीं किया। ‘नरेंद्र शिवानी’ शुद्ध पारंपरिक प्रजनन विधियों और वैज्ञानिक चयन के आधार पर विकसित की गई किस्म है। सोशल मीडिया पर इस तरह की अफवाहें फैलाना वैज्ञानिकों और किसानों दोनों के परिश्रम का अपमान है।
प्रश्नः इस विषय पर अन्य विशेषज्ञों की क्या राय है?
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान में सब्जी विज्ञान विभाग के प्रमुख डॉ. प्रीतम कालिया का भी यही मानना है। उनके अनुसार, ‘‘मीडिया में ऑक्सिटोसिन को लेकर खबरें आ रही थीं। इस पर ये चर्चा भी होती रही है कि सब्जियों में ऑक्सिटोसिन का इस्तेमाल होने से कोई प्रभाव पड़ता है। कई विश्वविद्यालयों में इस पर शोध किया गया है। अनुसंधान में पाया गया है कि किसी भी दवा से रातों-रात सब्जियों के आकार में बढ़ोतरी नहीं हो सकती।‘‘ डॉ. कालिया के मुताबिक, गोबर की खाद , ऑर्गनिक उर्वरक और समय≤ पर पानी देने से उपज अच्छी होती है और इनसे शरीर पर कोई दुष्प्रभाव भी नहीं होता।
प्रश्नः ‘नरेंद्र शिवानी’ की उत्पादन क्षमता कितनी है और इसमें मचान विधि का क्या योगदान है?
सामान्यतः यह किस्म 700-800 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन देती है, लेकिन यदि मचान विधि अपनाई जाए और अच्छी देखभाल हो, तो यह 1000 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पहुँच सकती है।
प्रश्नः मचान विधि क्या होती है ?
मचान विधि एक वैज्ञानिक और कुशल तकनीक है, जिसमें लौकी जैसे बेलदार पौधों को जमीन पर फैलने देने के बजाय एक ऊँचे जाल या ढाँचे पर चढ़ाया जाता है। यह मचान आमतौर पर बांस, लोहे की पाइप या लकड़ी के खंभों से बनाया जाता है, जिसकी ऊँचाई लगभग 10 फीट होती है। इन खंभों को लगभग 1.5 फीट जमीन में गाड़ दिया जाता तब लगभग 8 फीट पर बेलें फैलकर ऊपर चढ़ती हैं।
प्रश्नः आपके अन्य शोध कार्यों के बारे में भी बताएं।
अब तक मैंने लौकी की 10, कद्दू की 4, परवल की 3 और करेला की 1 किस्में विकसित की हैं। मेरी एक पुस्तक ‘उत्तर प्रदेश में कद्दू वर्ग की जैव विविधता, प्रजनन और उत्पादन’ भी प्रकाशित हो चुकी है, जिसमें इन फसलों से जुड़ी वैज्ञानिक जानकारी विस्तार से दी गई है।
प्रश्नः क्या आपने लौकी से संबंधित कोई स्थायी प्रदर्शनी या संग्रहालय भी स्थापित किया है?
जी हाँ, हमने गोमती नगर, लखनऊ में ‘‘लौकी मंदिर‘‘ के नाम से लौकी का एक संग्रहालय स्थापित किया है। यह भारत का संभवतः पहला ऐसा संग्रहालय है जो पूरी तरह लौकी को समर्पित है। इसमें लौकी की विभिन्न किस्मों, उनके उपयोगों, औषधीय गुणों और सांस्कृतिक महत्व को दर्शाया गया है। यहाँ लोग न केवल लौकी को देखते हैं बल्कि उसकी वैज्ञानिक यात्रा और लोक परंपराओं में उसकी भूमिका को भी समझते हैं।
प्रश्नः अगर कोई किसान, छात्र या शोधार्थी आपसे संपर्क करना चाहे तो कैसे करें?
वे मुझसे इस नंबर पर सीधे संपर्क कर सकते हैंः 7985244878. मैं बीज, जानकारी और मार्गदर्शन देने के लिए सदैव तैयार हूं।
प्रश्नः अंत में, आप अपनी इस यात्रा को कैसे परिभाषित करेंगे?
यह यात्रा केवल लौकी की नहीं, बल्कि भारतीय कृषि की आत्मा से जुड़ी उस प्रेरणा की कहानी है, जिसमें एक किसान का बेटा विज्ञान की शक्ति से साधारण को असाधारण बना देता है। ‘नरेंद्र शिवानी‘ केवल एक सब्जी नहीं है,यह एक दृष्टिकोण है, एक सोच है, कि अगर हम अपने परंपरागत ज्ञान को वैज्ञानिक सोच के साथ जोड़ दें, तो असंभव भी संभव हो जाता है। मेरी यह यात्रा यह भी सिखाती है कि अनुसंधान केवल प्रयोगशाला में नहीं, खेतों और किसानों के जीवन में भी होता है। जब विज्ञान, परंपरा और कल्पना साथ चलते हैं, तब लौकी भी संगीत बना सकती है,और यही भारतीय कृषि की सबसे बड़ी शक्ति है ,कल्पना और करुणा के साथ नवाचार।

 

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