Specialist's Corner
प्रशान्त कुमार वर्तमान में उत्तराखण्ड वन विभाग में वरिष्ठ परियोजना सहयोगी ;वन्यजीवद्ध के पद पर कार्यरत हैं तथा पिछले सात वर्षों से वन्यजीव अपराध नियंत्रण एवं संरक्षण में प्रभावी शोध एवं विश्लेषण कार्य कर रहे है। इन्होंने लगभग पन्द्रह हजार से अधिक वन कर्मियों को वन्यजीव फॉरेंसिक एवं वन्यजीव संरक्षण विषय में प्रशिक्षित किया है तथा पांच सौ से अधिक प्रशिक्षण कार्यशालाओं का आयोजन भी किया है। प्रशान्त कुमार, फॉरेंसिक विज्ञान में बीएससी तथा एमएससी है एवं वाइल्डलाइफ फॉरेंसिक्स में फील्ड के अनुभवी हैं ।
साँप एक रहस्यमयी जीव है जिसे प्राचीन काल से ही भय और आकर्षण का प्रतीक माना गया है। भारत में साँपों की लगभग 300-350 प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जिनमें से कुछ ही विषैली होती हैं। आम जनजीवन से लेकर जंगलो में साँपों की भूमिका विविध और महत्वपूर्ण है। प्रत्येक वर्ष साँप काटने पर सर्वाधिक मृत्यु के मामले सामने आये है, जबकि सच्चाई यह है कि काटने वाले साँप गैर जहरीले होने पर भी डर के कारण मृत्यु हुई है। कई बार ऐसे भी मामले देखने को मिले है जिसमें व्यक्ति को पता नहीं चल पाता कि साँप जहरीला था या नहीं, जिससे उपचार में लापरवाही, झाड़फूंक और अन्धविश्वास में समय गँवाना आदि शामिल हो सकता है। साँप हमारे लिए जरुरी है परन्तु खतरनाक भी, ऐसे में कुछ सावधानियाँ बरतकर, उनके व्यवहार और पहचान के बारे सटीक जानकारी से बचाव सम्भव हैं। आइये इन मूक वन्यजीवों के जीवन और पर्यावरण में महत्व के बारे में विस्तार से जानते हैं-
साँपों का व्यवहार
साँप मूलतः शर्मीले और रक्षात्मक जीव होते हैं। वे इंसानों से टकराव नहीं चाहते, लेकिन जब उन्हें खतरा महसूस होता है तब वे काट सकते हैं। कुछ साँप भोजन के लिए मनुष्य के रहन-सहन में रहना चाहते हैं परन्तु सभी नहीं। भारत में चार साँप-कोबरा, करैत, रसेल वाइपर और सॉ स्केल्ड वाइपर जहरीले साँपो में बिग फोर के नाम से विख्यात हैं तथा अक्सर ग्रामीण इलाकों में देखे जाते हैं। साँपों का व्यवहार मुख्यतः इन कारकों पर निर्भर करता हैः
प्रजाति का प्रकारः कुछ प्रजातियाँ अधिक आक्रामक होती हैं (जैसे कोबरा या रसेल वाइपर), जबकि कुछ अपेक्षाकृत शान्त रहती हैं (जैसे रैट स्नेक, सैंड बोआ) ।
मौसमः साँप गर्मियों और मानसून में अधिक सक्रिय होते हैं। यह उनके प्रजनन काल का भी समय होता है।
स्थानः जंगल, खेत, झाड़ियों, पुराने घरों या पानी के स्रोतों के निकट साँपों का रहना आम है।
साँप की पहचान
प्रत्येक साँप का व्यवहार और शारीरिक बनावट एक दूसरे से भिन्न होती हैं कई बार साँप एक दूसरे से समानता प्रदर्शित करते हैं जैसे उनके शरीर पर धब्बे, आकार व रंग यही कारण है की उनको मारा भी जाता हैं। साँपों को देखकर उनके विषैले या गैर विषैले होने का अंदाजा लगाना आम व्यक्ति के लिए सरल नहीं हैं। इसके लिए गहन अध्ययन और अनुभव की आवश्यकता होती है।
साँपों की पहचान कई तरीकों से की जाती है-
अ) यदि आपने स्पष्टतया साँप को देखा है-
कोबरा- अत्यधिक विषैला, सामान्य रूप से काला या भूरा रंग, सदैव फन, फन के ऊपर गोल या खुर का निशान, आक्रामक, फूंकने की आवाज निकालना, धीरे चलना, स्पर्श करने पर खड़े होना तथा इशारे की तरफ मुड़ना, लम्बाई में लगभग 4 फुट से 5 फुट तक हो सकती है (किंग कोबरा की लम्बाई 12-16 फुट तक हो सकती है)।
करैत-अत्यधिक विषैला, रात्रिचर, शरीर पर सफेद धारियाँ जो मुँह को छोड़कर शुरू होती है और पूँछ के अंत तक जाती हैं, शरीर पतला और जीभ गुलाबी, लम्बाई लगभग 3.5 फुट से 4.5 फुट तक हो सकते हैं(बैंडेड करैत के शरीर पर काली-पीली धारी होती हैं और इनका आकार सामान्य करैत से बड़ा होता है)।
रसेल वाइपर- यह अत्यधिक आक्रामक और विषैला होता हैं, इसके शरीर पर छल्ले या जंजीर जैसी आकृति होती हैं, अक्सर खेत खलिहान में दिख जाता हैं, इसकी लम्बाई लगभग 4 से 5.5 फुट तक हो सकती हैं, इसके सिर का आकार त्रिकोणीय होता हैं तथा आँखे बड़ी होती हैं, स्पर्श करने पर आक्रामक हो जाता हैं तथा अंग्रेजी के ष्ैष् अक्षर के आकार में आ जाता है।
सॉ स्केल्ड वाइपर- अत्यधिक विषैला, भूरा रंग, शरीर पर आरी की आकृति, मुँह त्रिकोणीय, लम्बाई लगभग 1.5-2 फुट, चेतावनी के रूप में अपने शरीर के स्केल्स को आपस में रगड़ कर ध्वनि उत्त्पन्न करना, आमतौर पर शुष्क व रेगिस्तानी भूमि पर पाया जाता है।
धामन या रैट स्नेक- गैर जहरीला, रंग काला-भूरा तथा हल्का पीला, लम्बाई में लगभग 6 से 8 फुट तक अत्यधिक शर्मीला और चमकदार त्वचा, भागने में तेज, अक्सर चूहे खाने वाला।
इंडियन वुल्फ स्नेक(भेड़िया साँप)- गैर जहरीला, भूरा रंग, सफेद हलके पीले रंग की धारियाँ, दिखने में करैत जैसा, लम्बाई लगभग 2-2.5 फुट तक, शरीर पतला जिससे दरारों और छेद में घुस जाता हैं, शान्त स्वभाव, रात में अधिक सक्रिय रहता है।
उपरोक्त सभी साँप अधिक मात्रा में देखने को मिलते है तथा आम जनजीवन में प्रायः घटना का सबब बनते है। इसके अतिरिक्त और भी साँप है परन्तु कम देखने को मिलते है।
ब) यदि साँप ने काट लिया है तो-
दाँतों के निशान (फैंग मार्क्स)ः
ऽ विषैले साँपों के दो प्रमुख दाँत होते हैं जो गहरे और स्पष्ट निशान छोड़ते हैं।
ऽ गैर-विषैले साँपों के कई छोटे दाँत होते हैं जिनके निशान उथले और एक कतार में होते हैं।
लक्षणः
ऽ विषैले साँप के काटने पर तुरंत लक्षण दिखते हैं जैसे तेज दर्द, सूजन, चक्कर आना, सांस लेने में दिक्कत, उल्टी, ब्लड प्रेशर गिरना, रक्त बहना तथा पैरालिसिस आदि।
ऽ विषहीन साँप के काटने पर हल्की जलन या खुजली हो सकती है, लेकिन गंभीर प्रभाव नहीं होता।
साँप के काटने की स्थिति में वैज्ञानिक और त्वरित कदम
भारत में प्रत्येक वर्ष साँप के काटने से मृत्यु दर में लगातार इजाफा हो रहा है। वन विभाग तथा गैर सरकारी संगठनों के प्रयासों से जनमानस तक साँपों के बारे में जानकारियाँ दी जा रही है जिससे लोग भ्रमित न हो और तत्काल चिकित्सक के पास जाएं। साँप कोई भी काटे, घबराने और समय व्यर्थ करने से बचें, यह घातक हो सकता है। अस्पताल में स्नेक एंटी वेनम उपलब्ध होता है, आप चाहे तो खरीदकर अपने घर में भी रख सकते है और अस्पताल जाकर लगवा सकते है (अपने आप एंटी वेनम न लगायें, यह घातक हो सकता है)। यहाँ पर वैज्ञानिक रूप से मान्य और चिकित्सकों द्वारा अनुशंसित कदम बताए गए हैंः
क्या करेंः
शांत रहेंः घबराहट से शरीर में विष तेजी से फैलता है। पीड़ित को शांत रखें।
अंग को स्थिर करेंः जिस अंग पर काटा गया है, उसे हिलने न दें और हृदय की सतह से नीचे रखें।
तुरंत अस्पताल ले जाएँः साँप काटने की स्थिति में समय सबसे महत्वपूर्ण है। बिना देर किए निकटतम स्वास्थ्य केंद्र पहुँचना चाहिए।
डॉक्टर को घाव दिखाएँः घाव का आकार, दाँत के निशान, लक्षण सब डॉक्टर के लिए अहम जानकारी होते हैं।
क्या न करेंः
खून चूसना नहीं चाहिएः यह तकनीक फिल्मी है, व्यावहारिक नहीं। इससे संक्रमण फैल सकता है।
घाव को काटना नहीं चाहिएः इससे मांसपेशियों और नसों को नुकसान हो सकता है।
टॉर्निके (कसकर पट्टी बाँधना) नहीं करेंः यह रक्त प्रवाह रोकता है और विष अंग विशेष में जम सकता है, जिससे गैंगरीन या अंग-छेदन की नौबत आ सकती है।
झाड़-फूंक, देसी इलाज से बचें।
फॉरेंसिक मामलों में साँप की भूमिका
कई आपराधिक मामलों में साँपों का उपयोग दुर्भावनापूर्ण उद्देश्यों के लिए किया गया हैः
हत्या में उपयोगः
कुछ मामलों में जानबूझकर साँपों का प्रयोग हत्या के लिए किया गया है। ऐसे मामलों में फॉरेंसिक टीम को विष, काटने के निशान, पोस्ट-मॉर्टेम फाइंडिंग्स के आधार पर साँप की प्रजाति की पहचान करनी होती है।
साँप की त्वचा या अवशेषों की पहचानः
कई बार अवैध व्यापार या अपराध स्थल पर साँप की त्वचा, हड्डियाँ या मरे हुए साँप मिलते हैं। फॉरेंसिक विशेषज्ञ उनकी पहचान कर सकते हैं और अपराध से जोड़ सकते हैं।
वन्यजीव अपराधः
साँपों की दुर्लभ प्रजातियाँ जैसे इंडियन कोबरा, रेटिक्युलेटेड पायथन आदि सभी भारतीय सर्प वन्यजीव संरक्षण कानूनों के तहत संरक्षित हैं। इनकी तस्करी या हत्या पर कानूनी कार्रवाई होती है। साँप विष(स्नेक वेनम) को अवैध तरीके से निकालना तथा खरीदना-बेचना गैर कानूनी है। साँपों को परेशान करना, साँपों को अपने पास रखना तथा खेल दिखाना, रेस्क्यू करके प्रदर्शन करना इत्यादि वन्यजीव अपराध की श्रेणी में आता है।
महत्व
साँप, एक भयावह प्रतीत होने वाला जीव, वास्तव में एक महत्वपूर्ण पारिस्थितिक घटक है। इनका अध्ययन अत्यंत उपयोगी है विशेषकर साँप के काटने के मामलों में। आज आधुनिक तकनीकों के माध्यम से साँप की प्रजाति की पहचान, विष की जाँच, और अपराध से जुड़े साक्ष्यों की पुष्टि की जा सकती है।
साँप काटने की स्थिति में समय पर और वैज्ञानिक तरीकों से उपचार ही जीवन रक्षक सिद्ध होता है। अंधविश्वास या अप्रमाणित उपाय न केवल नुकसानदायक होते हैं बल्कि मृत्यु का कारण भी बन सकते हैं। घर में खिड़कियों और दरवाजो में जाली लगवाए तथा आसपास सफाई रखें जिससे साँप को छिपने की जगह न मिल सके। हमें साँपों के प्रति डर नहीं, समझ विकसित करनी चाहिए और उनके साथ सह-अस्तित्व की दिशा में काम करना चाहिए।
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