Thinking Point
अभिषेक दुबे
पर्यावरण एवं पशु अधिकार कार्यकर्ता, नेचर क्लब फाउंडेशन, गोण्डा (उप्र)
भारत सरकार द्वारा केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के माध्यम से एकल-उपयोग प्लास्टिक पर देशव्यापी प्रतिबंध लगाने के बावजूद छोटे शहरों में इसकी बिक्री बढ़ने की घटनाएं सामने आई हैं। मैं वर्ष 2010 से उत्तर प्रदेश के गोण्डा और आसपास के जिलों में पर्यावरण के विषय में जनजागरुकता हेतु अभियान चलाता रहा हूं जिसमें प्रमुख रूप से सिंगल यूज प्लास्टिक का इस्तेमाल न करने और उसके जगह सूखे पत्ते के पत्तल, दोने का प्रयोग, कपडे के झोले का प्रयोग आदि हेतु लोगों व युवाओं में जागरूक करता रहा हूं। लेकिन जुलाई 2022 में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के द्वारा 19 प्रकार के सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने से पहले छोटे शहरों, जहां नगर निगम नहीं है बल्कि नगर पालिका या नगर पंचायत है, में थर्माकोल (पॉलीस्टाइरीन) के प्लेटों के साथ सूखे पत्ते के पत्तल भी मिल जाते थे और दोनों का मूल्य भी लगभग एकसमान होता था। ऐसे में हम यदि किसी को जागरूक कर थर्माकोल के बजाय प्राकृतिक तौर पर सड़ सकने वाले सूखे पत्ते के पत्तल का उपयोग करने का निवेदन करते तो लोग आसानी से मान जाते थे क्योंकि बाजार में विकल्प मौजूद थे। लेकिन 2022 में सिंगल यूज प्लास्टिक पर बैन की घोषणा के बाद सूखे पत्ते वाले पत्तल(थाल) छोटे शहरों के बाजार से पूरी तरह गायब हो गए और उसकी जगह थर्माकोल आदि के प्लेटों ने लेकर पूरा बाजार कब्जा कर लिया और अब लोगों को मजबूरी में भी थर्माकोल के प्लेट खरीदने पड़ते चूंकि अन्य मोटे बायोडिग्रेडेबल प्लेट अत्यंत महंगे पड़ते हैं। कभी कभी कुछ अभियान चलाए जाने पर 1-2 दिन की कड़ाई के बाद सबकुछ फिर पूर्व की भांति ही हो जाता है। छोटे शहरों या कस्बों में नगर निकाय कभी-कभी सिर्फ खानापूर्ति के लिए थोड़ा बहुत जुर्माना इकट्ठा करती है परंतु किसी को सिंगल यूज प्लास्टिक की गंभीर समस्या पर ईमानदारी से कार्यवाही करने की कोई परवाह नहीं है। तो यह समस्या न केवल पर्यावरणीय नियमों की प्रभावशीलता पर सवाल उठाती है, बल्कि यह दर्शाती है कि छोटे शहरों में इस प्रतिबंध को लागू करने में कई चुनौतियाँ हैं।
छोटे शहरों में प्लास्टिक की बिक्री बढ़ने के कारण
1. कानून का प्रभावी क्रियान्वयन न होना - महानगरों में प्रशासनिक निगरानी और जुर्माने की व्यवस्था कड़ी होती है, जिससे वहाँ प्रतिबंध अधिक प्रभावी रहा। लेकिन छोटे शहरों में प्रशासनिक संसाधनों की कमी, लापरवाही, भ्रष्टाचार और स्थानीय राजनीति के कारण यह प्रतिबंध पूरी तरह से लागू नहीं हो पाया।
2. प्लास्टिक के स्टॉक की निकासी - बड़े शहरों में बड़े व्यापारियों ने प्रतिबंध की घोषणा के बाद स्टॉक खत्म करने और व्यापार जारी रखने के लिए भारी मात्रा में प्लास्टिक उत्पादों को छोटे शहरों, कस्बों में पहुंचा दिया और वहीं अपना बाजार खड़ा कर लिया। इस वजह से छोटे शहरों व कस्बों में इसकी बिक्री में वृद्धि हुई।
3. सस्ती और सुलभ विकल्पों की कमी - कागज, कपड़े या जूट से बने बैग प्लास्टिक की तुलना में महंगे हैं और छोटे शहरों में इनका उत्पादन और आपूर्ति सीमित है। इससे छोटे शहरों, कस्बों और गांवों में लोग सस्ते प्लास्टिक का इस्तेमाल जारी रख रहे हैं।
4. अवैध उत्पादन और तस्करी - कुछ उद्योगपति और व्यापारी प्रतिबंध के बावजूद चोरी-छिपे प्लास्टिक का उत्पादन और बिक्री कर रहे हैं। कमजोर निगरानी के कारण यह काला बाजार फल-फूल रहा है।
5. जन जागरूकता की कमी - ग्रामीण और छोटे शहरी क्षेत्रों में लोगों को अभी भी प्लास्टिक प्रदूषण और इसके दुष्प्रभावों की पूरी जानकारी और समझ नहीं है। प्रतिबंध के बारे में जागरूकता की कमी के कारण वे इसे हल्के में ले रहे हैं।
6. ई-कॉमर्स और भोजन की पैकिंग - सिंगल यूज प्लास्टिक का आज सबसे ज्यादा प्रयोग करने वालों में ई कॉमर्स के बाजार और बढ़ती भोजन की पैकिंग जिम्मेदार हैं। इनपर भी कड़ाई से रोक लगाने की जरूरत है।
संभावित समाधान
1. प्रभावी कानून प्रवर्तन - सरकार को छोटे शहरों में निगरानी मजबूत करनी होगी। स्थानीय प्रशासन को सख्ती से प्रतिबंध लागू करना चाहिए, दुकानदारों पर जुर्माने और सजा के प्रावधान सख्ती से लागू करने होंगे। छोटे शहरों, कस्बों में सिंगल यूज प्लास्टिक के आपूर्ति पर कड़ाई से लगाम लगाया जाए और इनके अवैध भंडारण, परिवहन को ईमानदारी से पकड़ने के लिए स्पेशल टास्क फोर्स की मदद लिया जाए।
2. विकल्पों को किफायती और सुलभ बनाना - कागज, कपड़े, और बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक से बने उत्पादों को अधिक मात्रा में उत्पादन करने की जरूरत है। सरकार को इनका उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रोत्साहन देना चाहिए, ताकि ये सस्ते और आसानी से उपलब्ध हो सकें।
3. जन जागरूकता अभियान - लोगों को प्लास्टिक प्रदूषण के नुकसान और प्रतिबंध के महत्व के बारे में शिक्षित करने के लिए स्कूलों, पंचायतों और स्थानीय निकायों के माध्यम से जागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिए। ऐसे अभियान सिर्फ एक औपचारिकता न बनें इसलिए इसको क्रियान्वित करने के लिए आसपास के समर्पित पर्यावरण कार्यकर्ताओं की मदद लिया जाए।
4. व्यापारियों और कंपनियों को प्रोत्साहन - छोटे व्यापारियों को सिंगल यूज प्लास्टिक के बजाय पर्यावरण-अनुकूल उत्पादों को अपनाने के लिए प्रेरित करना होगा। सरकार द्वारा उन्हें आर्थिक सहायता या सब्सिडी दी जा सकती है। पहले से मौजूद योजनाएं जैसे मुद्रा योजना आदि से लोन दिलाने और उनके उत्पादों को बेंचने के लिए बाजार के निर्माण के लिए सिंगल यूज प्लास्टिक के निर्माण, आपूर्ति व विक्रय के विरुद्ध कड़ी कार्यवाही किया जाए।
5. स्थानीय स्तर पर उत्पादन इकाइयों की स्थापना - कपड़े और कागज के बैग, पत्तों से बनी प्लेटें और अन्य इको-फ्रेंडली उत्पादों के निर्माण के लिए छोटे शहरों में स्थानीय स्तर पर उत्पादन इकाइयाँ स्थापित की जानी चाहिए। इससे रोजगार भी बढ़ेगा और प्लास्टिक के विकल्प आसानी से उपलब्ध होंगे। साथ ही उन इलाकों में जहां आज भी पारंपरिक ढंग से महुआ, पलाश आदि के पत्तों से पत्तल हाथों से बनाए जाते हैं, वहां उन्हें प्रोत्साहन देना और उन इलाकों में थर्माकोल या अन्य पालीथीन की पतली परत वाले थाली भी बिल्कुल न पहुंचने देना बहुत आवश्यक है।
सिंगल यूज प्लास्टिक आज दुनिया की प्रमुख पर्यावरणीय समस्याओं में से एक है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार भारत में अभी प्लास्टिक का कुल उत्पादन 2.41 करोड़ टन है जिसका सिर्फ 8% ही रीसाइकिल होता है और वर्ष 2030 तक यह उत्पादन बढ़कर 7.05 करोड़ टन हो जाने के अनुमान है। वर्ष 2023 में कुल प्लास्टिक कचरा करीब 94.6 लाख टन रहा है जिसका करीब 43% सिंगल यूज प्लास्टिक ही रहा है। एक अनुमान के अनुसार भारत की रीसाइक्लिंग क्षमता वर्ष 2035 तक बढ़कर 11% तक पहुंच सकती है लेकिन फिर भी अधिकांश सिंगल यूज प्लास्टिक इसी तरह नदियों, तालाबों, समुद्र, मिट्टी, भोजन और हमारे शरीर में माइक्रो प्लास्टिक बनकर पहुंचता रहेगा और हमारे शरीर में कैंसर, न्यूरो समस्याएं पैदा करता रहेगा। वर्ष 2022 में इसपर प्रतिबंध लगाना एक सकारात्मक कदम रहा है, लेकिन छोटे शहरों में इसकी प्रभावी क्रियान्वयन के लिए ठोस रणनीति की जरूरत है। ईमानदारी पूर्वक कानूनी सख्ती, सस्ते विकल्पों की उपलब्धता और जन जागरूकता बढ़ाकर ही इस समस्या का स्थायी समाधान निकाला जा सकता है। अभी तक सिंगल यूज प्लास्टिक को लेकर जैसा नाटकीय क्रम रहा है उसे देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि केंद्र व राज्य सरकारें सिंगल यूज प्लास्टिक की समस्या को लेकर गंभीर नहीं हैं अथवा प्लास्टिक के उद्योग के सामने नतमस्तक हैं। अतः केंद्र व राज्य सरकारों को लोगों, पर्यावरण के स्वास्थ्य को प्राथमिकता देकर इस मुद्दे पर ईमानदारी से कार्यवाही कराने की जरूरत है।
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