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मदार के सफेद फूल

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मदार के सफेद फूल

मदार के औषधीय गुणों की पुष्टि कई वैज्ञानिक अध्ययन भी करते हैं...

मदार के सफेद फूल

TidBit
अकवन को हिंदी में मदार कहते हैं और इसे एक जहरीले पौधे के रूप में जाना जाता है। मदार का पौधा किसी जगह पर उगाया नहीं जाता है। यह पौधा अपने आप ही कहीं पर भी उग जाता है हालांकि यह पौधा अपने आप में औषधीय गुणों से लबरेज है। मदार का वैज्ञानिक नाम कैलोत्रोपिस गिगंटी है। यह आमतौर पर पूरे भारत में पाया जाता है। भारत में इसकी दो प्रजातियां पाई जाती हैं-श्वेतार्क और रक्तार्क। श्वेतार्क के फूल सफेद होते हैं जबकि रक्तार्क के फूल गुलाबी आभा लिए होते हैं। इसे अंग्रेजी में क्राउन फ्लावर के नाम से जाना जाता है, क्योंकि इसके फूल में मुकुट-ताज के समान आकृति होती है। इसके पौधे लंबी झाड़ियों की श्रेणी में आते हैं और 4 मीटर तक लम्बे होते हैं। इसके पत्ते मांसल और मखमली होते हैं। मदार का फल देखने में आम के जैसे लगता है, लेकिन इसके अंदर रुई होती है, जिसका इस्तेमाल तकिये या गद्दे भरने में किया जाता है। इसमें फूल दिसंबर-जनवरी महीने में आते हैं और अप्रैल-मई तक लगते रहते हैं। मदार मुख्य रूप से भारत में पाया जाता है, लेकिन दक्षिण पूर्व एशिया और अफ्रीका में भी यह बहुतायत में पाया जाता है। थाईलैंड में मदार के फूलों का उपयोग विभिन्न अवसरों पर सजावट के लिए किया जाता है। इसे राजसी गौरव का प्रतीक माना जाता है और मान्यता है कि उनकी इष्ट देवी हवाई की रानी लिलीउओकलानी को मदार का पुष्पहार पहनना पसंद है। कंबोडिया में अंतिम संस्कार के आयोजन के दौरान घर की आंतरिक सजावट के साथ ही कलश या ताबूत पर चढ़ाने और अंत्येष्टि में इसका उपयोग किया जाता है। हिंदुओं के धर्म ग्रंथ शिव पुराण के अनुसार मदार के फूल भगवान शिव को बहुत पसंद है इसलिए शांति, समृद्धि और समाज में स्थिरता के लिए भगवान शिव को इसकी माला चढ़ाई जाती है। मदार का फूल नौ ज्योतिषीय पेड़ों में से भी एक है। स्कन्द पुराण के अनुसार भगवान गणेश की पूजा में मदार के पत्ते का इस्तेमाल करना चाहिए। स्मृतिसार ग्रंथ के अनुसार मदार की टहनियों का इस्तेमाल दातुन के रूप में करने से दांतों की कई बीमारियां दूर हो जाती हैं। भारतीय महाकाव्य महाभारत के आदि पर्व के पुष्य अध्याय में भी मदार की चर्चा मिलती है। इसके अनुसार ऋषि अयोद-दौम्य के शिष्य उपमन्यु की आंखों की रोशनी मदार के पत्ते खा लेने के कारण चली गई थी। मदार की छाल का इस्तेमाल प्राचीन काल में धनुष की प्रत्यंचा बनाने में किया जाता था। लचीला होने के कारण इसका उपयोग रस्सी, चटाई, मछली पकड़ने की जाल आदि बनाने के लिए भी किया जाता है। वैसे तो मदार को एक जहरीला पौधा माना जाता है, और कुछ हद तक यह सही भी है, लेकिन यह कई रोगों के उपचार में भी कारगर है। मदार देश का एक प्रसिद्ध औषधीय पौधा है। इसके पौधे के विभिन्न हिस्से कई तरह के रोगों के उपचार में कारगर साबित हुए हैं। इनमें दर्द सहित मधुमेह के रोगियों में रक्त शर्करा के स्तर को कम करने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है। मदार के औषधीय गुणों की पुष्टि कई वैज्ञानिक अध्ययन भी करते हैं। वर्ष 2005 में टोक्सिकॉन नामक जर्नल में प्रकाशित एक शोध के अनुसार मदार का दूध बहते हुए खून को नियंत्रित करने में उपयोगी है। मदार का कच्चा दूध कई प्रकार के प्रोटीन से लबरेज हैं, जो प्रकृति में बुनियादी रूप में मौजूद होते हैं। वर्ष 2012 में एडवांसेस इन नैचरल एंड अप्लाइड साइंसेज नामक जर्नल में प्रकाशित एक शोध दर्शाता है कि मदार के पत्ते जोड़ों के दर्द और मधुमेह के उपचार में कारगर हैं। वहीं वर्ष 1998 में कनेडियन सोसायटी फॉर फार्मास्युटिकल साइंसेज में प्रकाशित शोध ने इस बात की पुष्टि की है कि मदार का रस दस्त रोकने में भी उपयोगी है। इन सब के अलावा मदार के पौधे के विभिन्न हिस्सों को सौ से भी अधिक बीमारियों के उपचार में कारगर माना गया है। बिच्छू के डंक मार देने की स्थिति में भी मदार का दूध डंक वाली जगह पर लगाने से आराम मिलता है। हालांकि मदार का दूध आंखों के संपर्क में आ जाए तो यह मनुष्य को अंधा भी बना सकता है। इसलिए मदार का औषधीय तौर पर इस्तेमाल सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिए।
सदाबहार की पत्तियां खाने के नुकसान
सदाबहार की फूल और पत्तियां औषधीय गुणों से भरपूर मानी जाती हैं। इसकी पत्तियां कई तरह से आपके स्वास्थ्य के लिए बेहतर होती हैं। यह दस्त, माउथ अल्सर, दांतों में दर्द, वजाइनल ब्लीडिंग और गले में खराब जैसी परेशानियों को दूर कर सकता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि सदाबहार की पत्तियों का अधिक मात्रा में सेवन करने से स्वास्थ्य को कई नुकसान भी हो सकते हैं। इससे मतली-उल्टी की शिकायत हो सकती है। दरअसल, इसका स्वाद काफी कसैला होता है। ऐसे में अगर आप अधिक मात्रा में इसका सेवन करते हैं तो आपका स्वाद बिगड़ सकता है जिससे उल्टी और मतली की शिकायत हो सकती है। सदाबहार की पत्तियों का अधिक मात्रा में सेवन करने से पेट दर्द की परेशानी हो सकती है। इसमें फाइबर होता है। शरीर में फाइबर की अधिकता पेट दर्द का कारक बन सकती है। लिवर और किडनी डैमेज हो सकता है. इसलिए सीमित मात्रा में इसकी पत्तियों का सेवन करें।
सांप के जहर को चुटकियों में बेअसर कर दे सर्पगंधा 
कई बार सांप के काटने से लोगों के शरीर में जहर फैल जाता है। जिसे सही समय पर न निकाले जाने से व्यक्ति की मौत भी हो सकती है। इस समस्या से बचने के लिए सर्पगंधा के पौधे का उपयोग कारगर साबित हो सकता है। ये न सिर्फ शरीर से जहर बाहर निकालने बल्कि दूसरी बीमारियों से छुटकारा दिलाने में भी कारगर है। अगर किसी को सांप ने काट लिया हो तो पीड़ित को सर्पगंधा की जड़ों के पाउडर को काली मिर्च के पाउडर को पानी के साथ मिलाकर पीना चाहिए। इससे जहर का असर खत्म हो जाएगा। जिस किसी को लगतार दो-तीन दिनों से बुखार आ रहा हो और दवाई लेने पर भी ज्यादा असर नहीं हो रहा है तो सर्पगंधा के पाउडर के 500 मिग्रा को दिन में 3 बार नारियल के पानी के साथ पिलाएं। इससे जल्द ही बुखार कम हो जाएगा। सर्पगंधा में एंटी-एंग्जायटी गुण होते है। यह बहुत सारे मेंटल डिसऑर्डर जैसे- नींद ना आना, ज्यादा गुस्सा आना आदि समस्याओं को कम करेगा। सर्पगंधा ब्लड प्रेशर को कम करने के लिए उपयोगी होता है। यह न्यूरोट्रांसमीटर होता है जो नर्वस सिस्टम को दुरुस्त रखने का काम करता है। सर्पगंधा में हिप्नोटिक गुण होते हैं जो कि गहरी नींद दिलाने में मददगार होते हैं। इसे अजवाइन और मिश्री के साथ मिलाकर लेने से लाभ होगा। जिन लोगों को काम की वजह से तनाव रहता है, उनके लिए भी सर्पगंधा उपयोगी होता है। अगर इसे हल्के गुनगुने पानी के साथ लिया जाए तो दिमाग शांत होता है। ये हाइपरटेंशन को कम करने और दिल की धड़कनों को सामान्य बनाए रखने में मदद करता है। इससे दिल पर अतिरिक्त जोर नहीं पड़ता है। सर्पगंधा की जड़ों को पीसकर लेने से हार्ट अटैक से बचाव होता है। ये बैड कोलेस्ट्रॉल को दूर करके दिल के पास जमी अतिरिक्त चर्बी को हटाता है। जिन महिलाओं को पीरियड्स की अनियमिता की शिकायत रहती है उन्हें सर्पगंधा की जड़ के चूर्ण का इस्तेमाल करना चाहिए। ऐसा करने से समस्या दूर होगी। अगर आप सर्पगंधा के पत्तों को पीसकर इसको जोड़ों की जगह बांधें। तो गठिया रोग से छुटकारा मिलेगा। इसमें मौजूद एंटी हीलिंग प्रॉपर्टीज दर्द को दूर करने में मदद करता है।
चंपा फूल के फायदे व नुकसान 
प्राचीनकाल से ही इन फूलों का उपयोग सामान्य से लेकर गंभीर बीमारियों के इलाज में किया जा रहा है। चंपा के फूल कई बीमारियों को दूर करने में रामबाण हो सकते हैं। इन फूलों में एल्कलॉइट, टैनिन, ग्लाइकोसाइड, कार्बोहाइड्रेट, अमीनो एसिड, फ्लेवोनोइड और स्टेरोल पाया जाता है। इसके अलावा, चंपा के फूलों में एंटीऑक्सीडेंट, एंटीमाइक्रोबियल, एंटीबैक्टीरियल और एंटीइंफ्लेमेटरी गुण भी होते है।. ये सभी तत्व मिलकर स्वास्थ्य समस्याओं का इलाज करने में मदद कर सकते हैं। चंपा के सूखे हुए फूलों में एल्केन हाइड्रोकार्बन, बीटा सिटोस्टेरॉल और क्वीरसेटिन भी होता है। चंपा के फूल विष के प्रभाव को भी रोकने में सहायक हो सकते हैं। इन फूलों में एंटीडोट होता है, जो सांप और बिच्छू के जहर को शरीर में फैलने से रोक सकता है। डॉक्टर की सलाह पर इन फूलों का इस्तेमाल किया जा सकता है। चंपा के फूल सेहत के लिए तभी तक फायदेमंद होते हैं जब तक इनका उपयोग सीमित मात्रा में किया जाता है। अगर अधिक मात्रा में इन फूलों को लिया जाता है, तो इससे सेहत को नकुसान भी पहुंच सकता है। फिलहाल, इसके नुकसान को लेकर कम शोध उपलब्ध हैं। आयुर्वेद में चंपा के फूलों के अर्क का उपयोग किया जा सकता हैं। लेकिन कोई भी दवा कितनी भी सुरक्षित क्या न हो, उसे हमेशा डॉक्टर की राय पर ही लेना चाहिए।
 

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