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भारतीय डाक टिकटों में जल संरक्षण का महत्व

TreeTake is a monthly bilingual colour magazine on environment that is fully committed to serving Mother Nature with well researched, interactive and engaging articles and lots of interesting info.

भारतीय डाक टिकटों में जल संरक्षण का महत्व

आज हम धरती की कोख से जल का अत्यधिक दोहन कर रहे है परन्तु वर्षा जल का संग्रहण नहीं करते है जिसके परिणामस्वरूप तमाम जलस्रोतों से होकर यह अमूल्य जल अंततः सागरों में जाकर यूँ ही बर्बाद हो जाता है...

भारतीय डाक टिकटों में जल संरक्षण का महत्व

Thinking Point

राहुल रोहिताश्व,स्वतंत्र विज्ञान एवम वन्य जीव लेखक, लहेरी टोलाएभागलपुर, बिहार
ज्योति गुप्ता, प्रखंड शिक्षक, मध्य विद्यालय, भागलपुरए बिहार
विजय वर्धन’, वरिष्ठ साहित्यकार एवम फिलाटेलिस्ट, भागलपुरए बिहार

अम्बर से जब अमृत बरसे 
बूँद दृ बूँद को क्यूँ फिर तरसे  
हमारा ग्रह वास्तव में एक अनोखा ग्रह है। अनोखा इस मामले में कि संपूर्ण ब्रह्ममांड में अभी तक जितने भी ग्रहों की खोज हुई है उन सभी में सिर्फ पृथ्वी पर ही जल विद्यमान है जिसके परिणामस्वरुप यहाँ जीवन संभव हो सका है। ्  जल ना सिर्फ हमारे जीने के लिए एक जरुरी तत्त्व है वरन हमारी संस्कृति तथा विकास में भी काफी सहायक रहा है। वस्तुतः सृष्टि की सुरुआत से लेकर अब तक इसकी महत्ता हर जगहों पर परिलक्षित होती रही है।् परन्तु यदि हम वर्तमान परिदृश्यों पर नजर डाले तो  हम पाते है कि जिस अमृतरूपी जल ने इस ग्रह पर जीवन को सींचा है आज उसी ग्रह के बाशिंदे शुद्ध जल की कमी के कारण दिन ब दिन तड़पने के लिए मजबूर हैं।
हमारी प्रकृति वाकई में बहुत उदार है। मानवता की परवरिश तथा भलाई के लिए वह सदा से अपना सर्वश्व समर्पण के लिए तैयार रहती है।् इतिहास गवाह है कि प्राचीन काल से लोग बैंकों में  जमा धन पर मिलने वाली ब्याज की तरह जल का संतुलित इस्तेमाल करते थे  तथा बारिश की बूंदों को वर्ष भर  धरती की कोख में पहुंचाते रहते थे। परन्तु आज बड़े ही खेद की बात है की हमारे आधुनिक युग में अब यह प्राकृतिक नियम खत्म सा हो गया प्रतीत होता है। आज हम धरती की कोख से जल का अत्यधिक दोहन कर रहे है परन्तु वर्षा जल का संग्रहण नहीं करते है जिसके परिणामस्वरूप तमाम जलस्रोतों से होकर यह अमूल्य जल अंततः सागरों में जाकर यूँ ही बर्बाद हो जाता है।्  ऐसी परिस्थति में जल संयोजन की कला आज हम लोगों के लिए बड़ा ही गंभीर मुद्दा बन गया है।् परन्तु दूसरी तरफ बड़े ही हर्ष की बात है की जल की महत्ता के मद्देनजर भारतीय डाक विभाग ने समय समय पर  डाक टिकट, विशेष आवरण, प्रथम दिवस आवरण इत्यादि निकाल कर भारतीय जनमानस में जल संरक्षण जैसे ज्वलंत मुद्दों को उठाकर बड़ा ही पुनीत कार्य किया है जिसकी जितनी भी प्रशंसा की जाय वह कम होगी।
भारतीय डाक टिकट में जल 
जल के महत्व को दर्शाने हेतु सन 1990 में भारतीय डाक विभाग ने बम्बई यवर्तमान मुंबई से स्वच्छ जल ;ैंमि ॅंजमतद्ध के थीम पर एक प्रथम दिवस आवरण ;थ्पतेज क्ंल ब्वअमतद्ध जारी किया था जिसमे गाँव के मुंडेर पर महिलाओं को हैंडपंप से पानी भरते हुए दर्शाया गया था। सन 1991 में फिलाटेलिक सोसाइटी ऑफ राजस्थान ;च्ीपसंजमसपब ैवबपमजल वि त्ंरेंजींदद्ध तथा राजस्थान सरकार द्वारा  जयपुर से  एन्विपेक्स 91;म्छटप्च्म्ग्. 91द्ध के अवसर पर एक विशेष आवरण जारी किया था जिसमे जल के विभिन्न स्वरूपों को दर्शाया गया था तथा साथ ही साथ  एक सन्देश भी दिया गया था जो इस प्रकार थाः च्तमेमतअम प्ज ।े छंजनतम च्तवकनबमक।  वहीँ सन 2006 में  डाक विभाग  द्वारा पांच रूपए का एक डाक टिकट जारी किया गया था जिसमें मरुस्थल के बीच में एक पेड़ तथा एक पोखर को दर्शाया गया था। सारे देश में गुणवत्तापूर्ण पेयजल सुनिश्चित करने के लिए, जल सुरक्षा और औद्योगिक प्रदूषण को रोकने के ठोस कदम उठाने हेतु भारत सरकार द्वारा सन 2007 को राष्ट्रीय जल वर्ष  ;छंजपवदंस ॅंजमत ल्मंत.2007द्ध घोषित किया गया था तथा इस उपलक्ष्य पर भारतीय डाक विभाग द्वारा पांच रूपए का एक स्मारक डाक टिकट तथा एक प्रथम दिवस आवरण कोलकाता से जारी किया था। यहाँ एक बात बहुत ही महत्वपूर्ण है कि जल के प्रभावी प्रबंधन की आवशयक्ता को उजागर करने के लिए पहली बार इस तरह का डाक टिकट भारत सरकार द्वारा जारी किया गया था। 
हालाँकि इसके अलावा भी भारतीय डाक विभाग द्वारा विभिन्न महत्वपूर्ण आयोजनों तथा राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर के वेटलैंड, बर्ड सैंक्चुअरी और बावरियों पर कई विशेष आवरण तथा प्रथम दिवस आवरण जारी किये गए है-  उदाहरण के तौर पर सन 2004 में कोइमबटोर से कोवैपेक्स .2004 ;ज्ञव्ट।प्च्म्ग्.2004द्ध के अवसर पर ैंअम ॅमजसंदके. ैंअम क्तपदापदह ॅंजमत का सन्देश देते हुए एक विशेष आवरण जारी किया गया था।् इसके अलावा हैदरपुर वेटलैंड सहारनपुर- उत्तर प्रदेश, सिंगानाल्लुर झील, कोइमबटोर-तमिल नाडू, प्रवासी पक्षियों के लिए विश्व प्रसिद्ध चिल्का झील-ओडिशा, रंजीतसागर तालाब, भीलवारा- राजस्थान, उत्तर प्रदेश के प्रसिद्ध आद्रभूमि, घराना आद्रभूमि -जम्मू, सुखना झील, चंडीगढ़- पंजाब, केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान, भरतपुर -राजस्थान तथा ध्रुवीय क्षेत्रों तथा हिमनदियों के संरक्षण इत्यादि पर भी  डाक टिकट के अलावा विशेष आवरण तथा प्रथम दिवस आवरण जारी किये गए है।
भारतीय डाक टिकट में बावरियां
प्राचीन भारत के लोग जल के संरक्षण के लिए काफी सजग और प्रयत्नशील थे। जल के संरक्षण के प्रति इसी वैज्ञानिक चेतना एवम सोच का परिणाम है की भारत के विभिन्न हिस्सों में निर्मित किये गए बावरियां या स्टेपवेल ;ैजमचूमससेद्ध। वस्तुतः बावरी प्राचीन भारत की स्थापत्य प्रतिभा का एक उत्कृष्ट मिसालें हैं। बावरी या वाव वास्तव में दैनिक उपयोग में लाये जाने वाले साधारण कुआं होते थे जिनका स्थापत्य कला उच्च कोटि का होता था जो समय के थपेड़ो को झेलने के बावजूद आज भी निर्विरोध बेमिसाल कृतियाँ  हैं्। भारत में अधिकांश बावरियाँ  गुजरात, राजस्थान, दिल्ली, उत्तर प्रदेश तथा कर्नाटक राज्यों में मिलते हैं जिन्हें अलग अलग नामों से जाना जाता है, जैसे गुजरात में वाव, राजस्थान में बावरी तथा कर्नाटक में पुष्कर्णी इत्यादि। जल संरक्षण में बावरियों के महत्व को दर्शाने के लिए  सन  2017 में विभिन्न मूल्यों के भारत के प्रसिद्ध सोलह  बावरियों पर डाक टिकटो का एक सेट जारी किया गया था जिसमें प्रमुख रूप से दर्शाए गए थे अग्रसेन की बावरी दिल्ली, नगरसागर कुंड- बूंदी, नीमराना बावरी -अलवर, पन्ना मियां की बावरी- जयपुर, पुष्कर्णी बावरी -हम्पी, राजाओं की बावरी -दिल्ली, रानी की वाव -पतन, शाही बावरी -लखनऊ शामिल हैं। इसके अलावा सन 2017 में ही ताज बावरी विजयपुरा के पुनरूजीवन  पर विजयपुराए कर्नाटक से एक विशेष आवरण भी डाक विभाग द्वारा जारी किया गया था।
हमारे पूर्वज जल का संरक्षण तथा प्रबंधन बहुत ही बुद्धिमत्ता से एवम वैज्ञानिक ढंग से करते थे। हमारे देश में वर्षा के जल का भीं भण्डारण परंपरागत तरीकों से किया जाता था तथा पारिस्थिक दशाओं के अनुकूल तकनीकों का निर्माण किया जाता था। जब अंग्रेज भारत आये तो यहाँ के जल-प्रबंधन को देखकर वे हैरान रह गए तथा उन्होंने भारतीय समाज को “हाइड्रोलिक सोसाइटी“ कहा था। परन्तु आज की वर्तमान स्थिति बिलकुल ही उलट हो गयी है। आज  हमारे देश को प्रति व्यक्ति जल की कमी, भूजल संसाधनों का अत्यधिक दोहन, जल की गुणवत्ता में कमी आदि चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है जो सुरसा की मुख की तरह निरंतर बढ़ता ही जा रहा है। ऐसी परिस्थति में जल के महत्व ,उपयोग एवम संरक्षण के मद्देनजर भारतीय डाक विभाग द्वारा डाक टिकट निकालकर  बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य किया गया है। आशा है  भारतीय डाक विभाग द्वारा भविष्य में भी ऐसी ही ज्वलंत मुद्दों पर और भी डाक टिकट जारी किये जायेंगे जिससे की आम जनमानस में  वैज्ञानिक संचेतना का विकास संभव होगा तथा वह भी पर्यावरण संरक्षण तथा देश की तरक्की में अपना बहुमूल्य योगदान दे सकेंगे। 
 

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