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औषधीय पौधे गुड़मार के महत्व एवं विशेषताएँ

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औषधीय पौधे गुड़मार के महत्व एवं विशेषताएँ

भारी बारिश में पौधों की देखभाल कैसे करें?

औषधीय पौधे गुड़मार के महत्व एवं विशेषताएँ

TidBit
डाँ. योगेश यादवराव सुमठाणे, सहा. प्राध्यापक एवं वैज्ञानिक             
सुनील कुमार, वानिकी सहयोगी
विश्व में पाये जाने वाले अनेकों बहुमूल्य औषधीय पौधे हं। गुड़मार बहुवर्षीय लता हैं। गुड़मार की शाखाओं पर सूक्ष्म रोयें पाये जाते हैं। पत्ते अभिमुखी मृदृरोमेश अग्रभाग की तरफ नोकदार होते हैं। इस पर पीले रंग के गुच्छेनुमा फूल अगस्त-सितम्बर माह में खिलते हैं। गुड़मार के फल लगभग 2 इंच लम्बे एवं कठोर होते हैं तथा बीज छोटे एवं काले भूरे रंग के होते हैं। यह एस्कलपिडेसी कुल का सदस्य है। इसका वानस्पतिक नाम जिमनिया सिलवेस्ट्ररी है। गुड़मार के पत्ते तथा जड़ औषधीय रुप में उपयोग किये जाते हैं। यह भारतवर्ष के विभिन्न भागोें जैसे -मध्यभारत पश्चिमी घाट, कोकण, त्रवकोर क्षेत्र के वनांे में पाया जाता है। गुड़मार मध्यप्रदेश के विभिन्न वन क्षेत्रों में प्राकृतिक रूप से काष्ठीय रोयेंदार लता के रूप में पाये जाने वाली वनस्पति है। गुड़मार की पत्तियों का उपयोग मुख्यत मधुमेह-नियंत्रक औषधीयांे के निर्माण में किया जाता है। इसके सेवन से रक्तगत शर्करा की मात्रा कम हो जाती हैं। साथ ही पेशाब में शर्करा का आना स्वतरू बन्द हो जाता है। सर्पविष से गुड़मार की जड़ को पीसकर या काढ़ा पिलाने से लाभ होता है। पत्ती या छाल का रस पेट के कीड़ मारने में उपयोग करते हैं। गुड़मार यकृत को उत्तेजित करता है और अप्रत्यक्ष रूप् से अग्नाश्य की इन्सुलिन स्त्राव करने वाली ग्रंथियो की सहायता करता है। जड़ांे का उपयोग खंासी, हदय रोग, पुराने ज्वर, वात रोग तथा सफेद छाग के उपचार हेतु किया जाता है।    पत्तियों में मेजिम्नेमिक अम्ल,  फ्वेरसियल,  एन्था्रन्वोनोन,  जिम्नोसाइडस,  सेपेनिन तथा कैल्सियम आक्जेलेट रसायन पाये जाते हैं.     गुड़मार की खेती के लिए उचित जल निकास वाली दोमट मिट्टी अच्छी होती है। गर्मियों में दो बार आड़ी,  खड़ी जुताई कर एवं पाटा चलाकर खेत तैयार कर लेना चाहिए। पाटा चलाकर मिट्टी को भुरभुरी व समतल कर लेना चाहिए। गुड़मार की खेती करने के लिए रोपणी में पौध तैयार करना चाहिए। बीज बोने से पूर्व 3 ग्राम डायथेन एम 45 या बाचेस्टीन नामक फफँूदनाशक सम बीजों को एपचारित करना चाहिए। उपचारित बीजांे को पहले से भरी पाँलीथीन की थैलियो में बो देना चाहिए। बीजों को बोने व रोपणी बनाने का सही समय अप्रैल-मई माह होता है। माह जुलाई-अगस्त तक पौध रोपित करने योग्य हो जाते हैं। गुड़मार की खेती पुराने पौधों की कलम से पौध बनाकर भी की जा सकती है। इसें लिए जनवरी-फरवरी माह उत्तम होता है। पाँलीथीन बैग में पौधे तैयार कर जुलाई-अगस्त माह में खेत में रोपित किया जा सकता है। गुड़मार बहुवर्षीय लता है। यह लगभग 20-30 वर्षो तक उपज देती रहती है। रोपण हेतु 1-1 मी. की दूरी पर तैयार किये गये गड्ढों में बारिश प्रारम्भ होने के पश्चात जुलाई अगस्त माह में रोपित कर दिये जाते हैं। प्रति गड्ढा 5 कि. गा्र. गोबर की पकी खाद एवं 50 ग्राम नीम की खली डालनी चाहिए। गुड़मार की खेती के लिए प्रति हेक्टेयर 10000 पौधों की आवश्यकता होती हैं। गुड़मार एक लता है। आरोहण व्यवस्था के लिए बाँस, लोहे के एंगल एवं तारों का उपयोग करना चाहिए। गर्मी के समय 10-15 दिन तथा सर्दियों में 20-25 दिन के अंतराल में एक बार सिंचाई की जाय तो इसकी बढ़वार के लिए काफी अच्छा रहता है। कभी कभी अधिक बारिश के कारण पौधों में पीलेपन की समस्या आती है। इसके लिए बोनी के समय 10 कि. ग्रा. फेरस सल्फेट का प्रयोग प्रति हेक्टेयर की दर से किया जाना चाहिए। गुड़मार की खेती मुख्य रूप से इसकी पत्तियों के लिए के लिए की जाती है। रोपण के प्रथम वर्ष से ही पत्ते प्राप्त होना प्रारंम्भ हो जाता है। समय के साथ साथ इसकी लताएँ बढ़ती रहती हैं तथा फसल की उपज भी बढ़ती जाती है। गुड़मार की फसल एक बार लगाने के बाद लगभग 20-30 वर्षो तक उपज देती रहती है। सिचिंत अवस्था में दो बार पत्तों की तुड़ाई की जा सकती है। पहली सितम्बर अक्टूबर में तथा दूसरी अप्रैल मई में। गुड़मार की परिपक्व एवं चयनित पत्तियों को तोड़कर उन्हें छायादार स्थान में सुखाना चाहिए। ग्रीष्म ऋतु में पौधों की परिपक्क फल्लियों एकत्र कर सुखाई जाती हैं। फल्लियों का ध्यान रखना चाहिए कि फल्लियां चटक न गई हो अन्यथा बीज उड़ जायेंगे क्योकि इन पर रूई लगी रहती है। इस प्रकार प्रतिवर्ष पत्तियों को दो बार तुड़ाई करने पर तीसरे वर्ष से प्रत्येक पौधे से लगभग 5 कि. ग्रा. गीली पत्तियां अथवा 1 कि. ग्रा. सूखी प्राप्त होती हैं। एक हेक्टेयर में लगभग 4-6 क्विंटल सूखी पत्तियां प्राप्त होती हैं। माह दिसम्बर-जनवरी मे गुड़मार की पत्तियों को चुनकर एकत्र करना चाहिए एवं इनकी जड़ो को ग्रीष्म त्रतु में उखाड़ना चाहिए। माह दिसम्बर-जनवरी मे इसके पत्तों को हाथ से चुनकर एकत्र करना चाहिए। पत्तियाँ एकत्र करने के लिए पौधे को नहीं काटना चाहिए। गुड़मार की खेती से किसान 25 से 30 हजार रू. प्रति हेक्टेयर आय अर्जित कर सकता हैं।
भारी बारिश में पौधों की देखभाल कैसे करें?
बारिश की शुरूआत निश्चित ही ग्रीष्म ऋतु की तपन से राहत दिलाती है, और पेड़-पौधों को भी हरा-भरा बनाती है। लेकिन बारिश के फायदे होने के साथ-साथ पौधों को इससे कुछ नुकसान भी होते हैं जैसे, लगातार बारिश से गार्डन या गमलों में पानी भर जाना, बीज और पौधे लगे गमले की ऊपरी मिट्टी बह जाना, बैक्टीरिया और फंगस के लगने का खतरा रहना, आदि। जब मिट्टी बहुत अधिक गीली या जलभराव वाली होती है, तब उसमें ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है, जिससे पौधों की जड़ों द्वारा न्यूनतम ऑक्सीजन अवशोषित की जाती है। भारी बारिश से गार्डन में लगे पौधों की मिट्टी पूरी तरह से गीली हो जाती है, जिससे मिट्टी के एयर पॉकेट्स बंद हो जाते हैं। इससे पौधे की जड़ों को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाती है और पौधों की जड़ें खराब होने लगती हैं और उनसे बदबू भी आने लगती है। तेज बारिश होने से पौधों में डाले गए उर्वरक या लिक्विड फर्टिलाइजर पानी के साथ बह जाते हैं। इससे पौधे में जरूरी पोषक तत्वों जैसे नाइट्रोजन आदि की कमी हो जाती है, जिसके कारण पौधे मुरझा जाते हैं, और उनकी ग्रोथ भी धीमी हो जाती है। कई दिनों तक लगातार तेज बारिश होने से पौधों के नाजुक तने झुक जाते हैं या टूट जाते हैं, और पौधे की पत्तियों पर पानी जमा होने से पौधा खराब होने लगता है। बरसात के मौसम में गमले या गार्डन में लगे पौधों की मिट्टी तेज बारिश से बह जाती है। भारी बारिश के दौरान मिट्टी का कटाव होने से पौधे की जड़ें मिट्टी के ऊपर आ जाती है, इससे उनको पर्याप्त पोषक तत्व मिलना बंद हो जाते हैं।
मानसून के समय वैकल्पिक रूप से पौधों को पानी देना चाहिए, क्योंकि इस मौसम में पौधों को प्राकृतिक तरीके से पानी की आपूर्ति हो जाती है तथा वातावरण भी आर्द्र होता है, जिसके कारण पौधों को अतिरिक्त पानी की आवश्यकता नहीं होती। कीट नियंत्रण के लिए पौधों पर नीम के तेल या 3 जी पेस्टीसाइड जैसे जैविक कीटनाशक का सम्पूर्ण पौधों पर छिड़काव तथा कवक से बचने के लिए हल्दी पाउडर को मिट्टी की ऊपरी परत पर छिड़का जा सकता है। बारिश के समय पाए जाने वाले केंचुए मिट्टी के वातन को सुधार कर नाइट्रेट मिलाते हैं, जिसके कारण मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ जाती है, इसीलिए मिट्टी से केंचुए अलग नहीं करना चाहिए। प्रूनिंग पौधे में नई वृद्धि और स्वस्थ ग्रोथ को बढ़ावा देने में मदद करती है तथा यह पौधे को किसी भी प्रकार के कीट व रोग संक्रमण को रोकने में भी सहायक होती है। प्रूनिंग करते समय ध्यान दें कि प्रूनिंग टूल्स साफ होने चाहिए और किसी भी संक्रमित भाग को हटाने के बाद फिर से प्रूनर्स को अच्छी तरह साफ करना चाहिए। बरसात में अपने पौधों की ग्रोथ बढ़ाने के लिए उन्हें जरूरी पोषक तत्व नियमित रूप से देते रहना चाहिए, ताकि वे स्वस्थ और बेहतर रूप से ग्रो हो सकें। आप अपने पौधों को पोषक तत्व देने के लिए जैविक खाद, सड़ी हुई गोबर की खाद या धीमी गति से प्राप्त होने वाले जैविक उर्वरकों का उपयोग कर सकते हैं। ग्रोइंग सीजन में पौधों को तुरंत खाद देने के लिए फोलियर स्प्रे फर्टिलाइजर का इस्तेमाल करना चाहिए। समय≤ पर निराई-गुड़ाई करते रहें, ताकि हानिकारक खरपतवारों को हटाया जा सके। मिट्टी के कटाव से बचने तथा मिट्टी को संकुचित होने से रोकने के लिए विशेष रूप से आवश्यक है गमलों को ऐसी जगह ले जाना जहां भारी बारिश से पौधे क्षतिग्रस्त न हों। इसके आलावा आप मल्चिंग करके भी मिट्टी के कटाव और सघनता को रोकने में सफल हो सकते हैं। मानसून के समय तेज हवाओं के कारण कुछ कोमल तथा युवा पौधों को बाहरी सहारे की आवश्यकता होती है, ताकि उन्हें गिरने या टूटने से बचाया जा सके, इसके लिए पौधों को किसी लकड़ी या जालीदार तार या क्रीपर नेट से सहारा देना चाहिए। इसके साथ ही छोटे पौधों और सीडलिंग को तेज बारिश से बचाते हुए पर्याप्त नमी देने के लिए रेन कवर से ढंकना चाहिए, इसके लिए प्लास्टिक शीट कवर के स्थान पर छिद्रित शीटकवर का उपयोग करना एक अच्छा विकल्प है ताकि पौधों को प्राकृतिक रूप से बारिश के पानी में मौजूद हाइड्रोजन पेरोक्साइड व अन्य पोषक तत्व प्राप्त हो सकें।यदि आपके गार्डन में जलभराव हो रहा है तो इसे रोकने के लिए आप खुदाई कर पतली जलनिकासी नाली बना सकते हैं, या फिर गार्डन के गमलों को ड्रेन मेट पर रखकर पानी के ठहराव की समस्या से छुटकारा पा सकते हैं। 
बारिश में कौन कौन से पौधे लगाए जाते हैं? 
गार्डनिंग के शौकीन लोगों के लिए मानसून साल का सबसे अच्छा समय होता है क्योंकि गार्डनिंग शुरू करने का यही सबसे सही समय होता है इस मौसम में अनेक प्रकार के पौधे अपने होम गार्डन में लगाए जा सकते हैं जैसे फलों, फूलों के पौधे, सब्जियां, हर्ब्स व सजावटी प्लांट्स आदि। आइए जानते हैं बारिश के मौसम में उगाए जाने वाले फलों के नामः सीताफल, जामुन, अनार, पपीता, लीची, केला, आलूबुखारा, सेब, नाशपातीए अनानास, चेरी, आडू फल, अमरुद, आंवला, संतरा। कुछ फूल वाले पौधे रैनी सीजन में ही अच्छे से ग्रोथ करते हैं, जिसके कारण आप इन फ्लावर प्लांट्स को बरसात के मौसम में लगा सकते हैं। आइए जानते हैं मानसून या बरसात के दौरान उगाये जाने वाले फूलों के नामः गेंदा, बालसम, सूरजमुखी, कॉसमॉस, कॉक्सकॉम्ब या सेलोसिया, जिन्निया, साल्विया, क्लियोम, एजीरेटम या एजरेटम, पोर्टुलाका, मोगरा, गुड़हल, बोगनविलिया, अडेनियम, लैंटाना, सदाबहार, कनेर, रेन लिली, प्लुमेरिया या चंपा, चमेली। यदि आप बरसात में मार्किट में आने वाली सीजनल सब्जियां घर पर ही उगाना चाहते हैं, तो हम आपको घर पर गमले या ग्रो बैग में उगाई जाने वाली रैनी सीजन वेजिटेबल के नाम बताने जा रहें हैंः टमाटर, चुकंदर, बैंगन, खीरा, लौकी, मूली, पालक, हरी मिर्च, भिन्डी, सेम, करेला, परवल, कद्दू, कंद, गाजर। अगर आप बारिश के मौसम में फ्रेश हर्ब्स प्राप्त करने के लिए अपने होम गार्डन में हर्बल प्लांट्स को लगाना चाहते हैं तो यहाँ हम आपको वर्षा ऋतु में गार्डन में लगाई जाने वाली जड़ी बूटियाँ या हर्ब्स के नाम बताने जा रहे हैं, जो इस प्रकार हैंः धनिया, लहसुन, अदरक, तुलसी, पुदीना, मुलेठी, चाइव्स, पार्सल, रोजमेरी, ओरिगैनो, लेमन बाम, लेमनग्रास, एलोवेरा। क्या आप जानना चाहते हैं कि इस रैनी सीजन गार्डन में कौन से सजावटी पौधे उगाए जा सकते हैं? तो आइये जानते हैं बरसात के मौसम में लगाए जाने वाले सजावटी पौधों के नामः चायनीज एवरग्रीन या एग्लोनेमा, अम्ब्रेला पाम, डाइफेनबैचिया, सुदर्शन, मनी प्लांट, क्रोटन, बोस्टन फर्न, स्नेक प्लांट, एक्जोरा, ऐरेका पाम।

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