A First-Of-Its-Kind Magazine On Environment Which Is For Nature, Of Nature, By Us (RNI No.: UPBIL/2016/66220)

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मेहंदी में हैं औषधीय गुण समाए 

TreeTake is a monthly bilingual colour magazine on environment that is fully committed to serving Mother Nature with well researched, interactive and engaging articles and lots of interesting info.

मेहंदी में हैं औषधीय गुण समाए 

मेंहदी के पेड़ सदाबहार झाड़ियों के रूप में पाये जाते हैं। महिलाएं इसका प्रयोग श्रृंगार शोभा को बढ़ाने के लिए करती हैं

मेहंदी में हैं औषधीय गुण समाए 

Tidbit
मेहंदी एक ऐसा कुदरती पौधा है, जिसके पत्तों, फूलों, बीजों एवं छालों में औषधीय गुण समाए होते हैं। मेहंदी जहां हथेली और बालों की सुंदरता को निखारती है, वहीं स्वास्थ्य के लिये भी अत्यंत लाभदायक है। मेंहदी का इस्तेमाल गर्मी में ठंडक देने के लिए किया जाता है। कुछ लोग अपने सफेद बालों में मेंहदी लगाकर बालों को सुनहरे बनाने की कोशिश करते हैं, इससे दिमाग में ठंडक मिलती है। मेंहदी मानव स्वास्थ्य को बनाये रखती है। यदि आप सिर दर्द से परेशान हैं तो मेंहदी की पत्तियों को पीसकर उनका सिर पर लेप करने से जल्दी आराम मिलता है। मेंहदी के पेड़ सदाबहार झाड़ियों के रूप में पाये जाते हैं। महिलाएं इसका प्रयोग श्रृंगार शोभा को बढ़ाने के लिए करती हैं। यही कारण है कि यह बहुत विश्वसनीय है। मेंहदी की पत्तियों को सुखाकर बनाया पाउडर बाजार में कम कीमत पर आसानी से आकर्षक पैक में मिलती है। मेंहदी के पेड़ की पत्तियां हरे रंग की होती हैं, इसे पीसकर त्वचा पर लगाने से लाल रंग का निखार कई दिनों तक रहता है। इसका स्वाद कषैला होता है। इसके फूल अत्यन्त सुंगन्धित होते हैं तथा फल मटर के समान, गोलाकार होते हैं जिनके भीतर छोटे-छोटे त्रिभुज की आकृति के चिकने अनेक बीज होते हैं। इसमें अक्टूबर-नवम्बर में फूल और उसके बाद फल लगते हैं। मेंहदी की पत्तियों में टैनिन तथा वासोन नामक मुख्य रजक द्रव्य (तरल) पाये जाते हैं। इसके अतिरिक्त मैलिक एसिड, ग्लूकोज मैनिटोल, वसराल और म्यूसिलेज आदि तत्च मेंहदी में पाये जाते हैं। इससे एक गाढ़े भूरे रंग का सुगन्धित तेल भी प्राप्त किया जाता है। इसकी तासीर ठंडी होती है। यह बालों में चमक के साथ-साथ दिमाग को शांत रखती है। उच्च रक्तचाप से पीड़ित व्यक्ति के पैरों के तलुवों और हथेलियों पर मेंहदी का लेप समय≤ पर करने से आराम मिलता है। मेंहदी लगाने से शरीर की बढ़ी हुई गर्मी बाहर निकल जाती है। रात के समय मेंहदी को साफ पानी में भिगो दें और सवेरे के समय छानकर पीयें। इसके पीने से खून की सफाई होने के साथ-साथ शरीर के अन्दर की गर्मी भी शांत होती है। मेहंदी के पत्तों में ऐसे तत्व पाये जाते हैं, जिनसे खाघ पदार्थों को दूषित करने वाले कीटाणु नष्ट हो जाते हैं, इसलिये हाथों में मेहंदी लगाने से कुप्रभावयुक्त शक्ति भोज्य पदार्थों पर अपना कोई प्रभाव नहीं डालती है। शरीर के किसी स्थान पर जल जाने पर मेहंदी की छाल या पत्ते लेकर पीस लीजिए और लेप तैयार किजिए। इस लेप को जले हुए स्थान पर लगाने से घाव जल्दी ठीक होगा। मेंहदी और चुकन्दर के पत्तों की चटनी बनाकर सिर में लगाने से बालों का गिरना बंद हो जाता है तथा नये बाल भी आ जाते हैं। मेंहदी और साबुन को बराबर मात्रा में मिलाकर उसका लेप बनायें, उसे काले दाग पर लगा लें। इससे कुछ ही दिनों में दाग नष्ट हो जाएगा।
चुइंगम चबाने की लत है गलत
बहुत से लोगों को चुइंगम चबाने की लत लग जाती है और फिर यह जल्दी से छूटती नहीं है।  एक रिसर्च से पता चला है कि खासतौर पर मिंट वाली चुइंगम चबाने से आप फल और सब्जियों जैसी स्वास्थ्यप्रद चीजों से दूर रहते हैं। सिर्फ यह ही नहीं, यह आपको जंक फूड खाने के लिए मजबूर भी करती है। जोड़ों के दर्द का कारण बनती है। मुंह की मांसपेशियों का ज्यादा इस्तेमाल भी नुकसानकारी है। लगातार चुइंगम चबाने से एक डिसऑर्डर होता है जिसे मेडिकल की भाषा में टेंपोरोमंडीबुलर डिसऑर्डर कहते हैं। इसमें जबड़े और खोपड़ी को जोडऩे वाली मांसपेशियों में तेज दर्द होता है। चुइंगम चबाने से बहुत सी हवा पैदा होती है, जिससे पेट में सूजन और दर्द हो सकता है। यह अपच और सीने में जलन का कारण भी बन सकता है। यह चुइंगम चबाने का एक दुष्परिणाम है। ज्यादा चुइंगम चबाने से सिरदर्द और एलर्जी होती है। इसका यह कारण है कि चुइंगम में बहुत से प्रिजर्वेटिव्स, आर्टिफिशियल फ्लेवर्स और आर्टिफिशियल शुगर मौजूद होती है जो कि विषाक्तता, एलर्जी और सिर दर्द पैदा करती हैं।  यह सच है कि कभी-कभार चुइंगम चबाना मसूड़ों और दातों के लिए ठीक है। फिर भी इसका ज्यादा इस्तेमाल आपके दांतों को नुकसान पहुंचा सकता है और इससे आपके दांत गिर भी सकते हैं। इसका कारण है कि चुइंगम में मौजूद शुगर कोट दांतों में बैक्टीरिया के प्रवेश के लिए जिम्मेदार है। मैंथोल और सोर्बिटोल जैसे आर्टिफिशियल स्वीटनर्स आंतों में जलन पैदा करते हैं। इससे डायरिया होता है और शरीर का तरल निकलने के कारण डिहाइड्रेशन भी होता है। इससे जहरीला पारा स्त्रावित होता है कुछ लोगों के दांतों के बीच कुछ भरावट होती है जो कि पारे, सिल्वर और टिन की होती है। ज्यादा चुइंगम चबाने से यह पारा दांतों के बीच से निकलकर शरीर में चला जाता है। यह पारा मनुष्य के लिए जहर समान है। यह विकास में बाधित होता है एक अध्ययन से पता चला है कि जो बच्चे और टीनएजर्स ज्यादा चुइंगम चबाते हैं, युवावस्था में उनके चेहरे का सही विकास नहीं होता है। उनका चेहरा सामान्य से बड़ा होता है, क्योंकि ज्यादा चुइंगम से जबड़े और चेहरे की मांसपेशियां उत्तेजित होती हैं। यह भी चुइंगम चबाने का एक बड़ा साइड इफेक्ट है।
जमालगोटा का गलत प्रयोग जान ले सकता है
कुम्भिबीज, जयपाल, चक्रदत्त बीज, जमालगोटा आदि क्रोटन टिगलियम पेड़ के नाम हैं। यह एक झाड़ी है है जो की भारतवर्ष में सूखे जंगलों में पायी जाती है। इसके बीज मुख्य रूप से बहुत तीव्र विरेचक के रूप में प्रयोग किये जाने के लिए मशहूर हैं। बीज देखने में अरंड के बीजों जैसे होते हैं। जमालगोटा विष नहीं है लेकिन कभी कभी यह विष का काम करता है। इसके बीजों को यदि बिना शोधित किये खाया जाये तो यह भयानक उलटी और दस्त होते हैं। आयुर्वेद में इसे शुद्ध करके ही प्रयोग किया जाता है। जमालगोटा दस्तावर, उग्रविराचक, शोथनाशक, कफ नाशक और विषैला है। इसका गलत प्रयोग जान तक ले सकता है। आयुर्वेद में कभी भी बिना शुद्ध किया हुआ जमालगोटा प्रयोग नहीं किया जाता है। शुद्ध का तात्पर्य है, इससे जहरीले पदार्थो को उपयुक्त तरीके से निकाल देना। जमालगोटा कई तरीको से शुद्ध किया जाता है। भारत में जमालगोटा पंजाब, असम, बंगाल व दक्षिण भारत में बाग बगीचों में उगाये जाते हैं ये अपने आप भी उग जाते हैं। यह मूल रूप से चीन में पैदा होता है। इसमें फूल गर्मी के महीने में खिलते हैं और फल सर्दी के महीने में लगते हैं। जमाल गोटा दो किस्म के होते हैं साधारण और जंगली। साधारण जमाल गोटा के पेड़ होते हैं और उन्ही के फल जो अण्डी के समान होते हैं वे जमाल गोटा कहलाते हैं। इससे जुलाब बनाया जाता हैं। इसका दूध भी दस्त पैदा करता है। जमालगोटा का प्रयोग बालों की समस्याओं को दूर करने के लिए भी किया जाता है। इसके शुद्ध बीजों का पेस्ट बनाकर सर में लगाने से गंजापन में सुधार होता है यानी बालों का झड़ना रोकने में जमालगोटा काफी उपयोगी है। जोड़ों का दर्द जिसे गठिया भी कहते हैं, इसके इलाज के लिए भी जमालगोटा का इस्तेमाल किया जाता है। जमालगोटा के बीजों से निकला तेल सूजन, फेफड़े के रोगों, गठिया और क्रोनिक ब्रोंकाइटीस आदि पर लागने से राहत मिलती है। जमालगोटा और क्रोटन के जड़ की बाहरी छाल के पेस्ट को त्वचा के फोड़े पर लगाया जाता है। जमालगोटा इन फोड़ों के फूटने में मदद करता है। इसका बीज एक्जीमा के उपचार में काफी सकारात्मक भूमिका निभाता है। जमालगोटा के बीज के पाउडर से पेस्ट तैयार करें और इस पेस्ट को एक्जीमा जैसे चमड़े से सम्बंधित किसी भी रोग में लगाने पर उसमें सुधार होता है। जमालगोटा के जड़ों का पाउडर और छाछ के पेस्ट का उपयोग बाहरी बवासीर के ऊपर करने से बवासीर सिकुड़कर सूखने लगता है। इससे सुजन में कमी आती है और मरीज राहत महसूस करता है। किसी चिकित्सक की सलाह से ही इसका प्रयोग करें।


 

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