A First-Of-Its-Kind Magazine On Environment Which Is For Nature, Of Nature, By Us (RNI No.: UPBIL/2016/66220)

Support Us
   
Magazine Subcription

TidBit

TreeTake is a monthly bilingual colour magazine on environment that is fully committed to serving Mother Nature with well researched, interactive and engaging articles and lots of interesting info.

TidBit

TidBit

TidBit

जौ के हैं अनेक स्वास्थ्य लाभ
जौ में विटामिन बी कॉम्प्लेक्स, लोहा, कैल्शियम, मैग्नीशियम, मैंगनीज, सेलेनियम, जस्ता, तांबा, प्रोटीन, अमीनो एसिड, आहार फाइबर, बीटा ग्लूकॉन और विभिन्न एंटीऑक्सीडेंट में समृद्ध है। आप इस बहुमुखी अनाज के स्वास्थ्य लाभ का फायदा न केवल इसे अपने दैनिक आहार में शामिल करके उठा सकते हैं, अपितु स्वास्थ्यवर्धक जौ के पानी का सेवन करके भी अपनी सेहत में सुधार ला सकते हैं। नियमित रूप से जौ के पानी का सेवन करने से शरीर को पोषण तो मिलता ही है, साथ ही में यह शरीर को बीमारियों से कोसों दूर भी रखता है। इसे पीने के साथ-साथ आप अपने सूप-सलाद एवं उबली हुई सब्जियों या फिर खिचड़ी में भी मिला सकते हैं। वैसे तो जौ का पानी बाजार में बहुत ही आसानी से मिल जाता है परंतु वह पानी घर के बनाये हुए जौ-पानी की तुलना में कम स्वास्थ्यवर्धक होता है। ऐसा इस वजह से क्योंकि रासायनिक प्रक्रियाओं द्वारा निर्मित जौ के पानी में परिरक्षक और उच्च मात्रा में चीनी मिली होती है। जौ का पानी बनाने की विधि: जौ को ठन्डे पानी की मदद से अच्छे से धो लें और फिर कम से कम 4 घंटे के लिए पानी में भिगो दें। उसके पश्चात इसे अच्छे से छान लें और एक कप भिगोये हुए जौ में 3 से 4 कप पानी मिलायें। इसे गैस पर उबालने के लिए चढ़ा दें और कम आंच पर 1 घंटे या फिर 45 मिनट के लिए ढक कर पकने दें। जब जौ पक कर नर्म हो जाए, गैस बंद कर दें। प्राप्त मिश्रण को ठंडा होने दें। छलनी की मदद से इसे एक कप में छान लें। अच्छी सेहत पाने के लिए रोजाना 1 से 2 कप जौ का पानी पियें। इसके स्वाद में सुधार लाने और अपने स्वास्थ्य लाभ को बढ़ाने के लिए आप इसमें एक छोटे-से नींबू का रस और शहद की मिठास मिला सकते हैं। आप बचे हुए जौ के पानी को तीन दिन तक फ्रिज में रख सकते हैं। यही नहीं जौ के पानी को छानने के बाद जो जौ बच जाए, आप वो अपने सूप या फिर खिचड़ी में भी डाल सकते हैं। जौ का पानी मूत्र मार्ग में संक्रमण के लिए एक उत्तम प्राकृतिक उपाय है। यह प्राकृतिक और सुरक्षित उपाय है और इसलिए इसका सेवन बच्चों एवं गर्भवती महिलाओं में भी मूत्र पथ के संक्रमण का इलाज करने के लिए किया जा सकता है। एक प्राकृतिक मूत्रवर्धक होने के नाते, यह विषाक्त पदार्थों के निकास में मदद करता है और संक्रमण कारक बैक्टीरिया को बाहर का रास्ता दिखता है। साथ ही में, यह मूत्र प्रणाली के लिए एक अच्छे एंटी-इंफ्लेमेटरी (सूजन को कम करने) के रूप में कार्य करता है और गुर्दों को को साफ रखने में मदद करता है। इस प्रकार से, यह मूत्राशयशोध, गुर्दे की पथरी और उच्च क्रिएटिनिन का स्तर जैसे विकारों के इलाज के लिए भी प्रयोग किया जाता है। जौ का पानी वजन कम करने का प्रयास कर रहे लोगों के लिए एक उत्तम स्वास्थ्य पेय है। इसमें उच्च मात्रा में निहित फाइबर और बीटा ग्लूकन्स आपके पेट को एक लंबे समय के लिए तृप्त रखता है ताकि आप अनावश्यक खाकर अपने वजन में बढ़ोतरी ना करें। इसके अलावा, जौ का पानी पाचन के लिए अच्छा है और वसा के चयापचय को उत्तेजित करता है। अघुलनशील फाइबर उच्च मात्रा में सम्मलित होने की वजह से, जौ का पानी रक्त में कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने के लिए सहायक है, जिससे हृदय रोग विकसित होने का खतरा भी कम हो जाता है। जौ में निहित फाइबर और बीटा ग्लूकन्स पेट और आंतों में भोजन द्वारा कोलेस्ट्रॉल के अवशोषण को रोकने में भी मददगार है। कोलेस्ट्रॉल कम करने के अलावा, जौ का पानी धमनियों के सख्त होने से बचाव में भी मदद करता है। घुलनशील के साथ ही अघुलनशील फाइबर की मात्रा में समृद्ध और क्षारीय होने के कारण, जौ का पानी आपके पेट के स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा है। यह पाचन को बढ़ावा देता है और कब्ज, बवासीर और गैस्ट्राइटिस सहित कई और पाचन समस्याओं के इलाज के लिए फायदेमंद है। आप दस्त (डायरिया) लगने पर भी अपने शरीर में खोए हुए तरल प्रदार्थों की पूर्ति के लिए जौ के पानी का सेवन कर सकते हैं। चूँकि यह डाइटरी फाइबर का एक प्रचुर स्रोत है, यह कोलोरेक्टल कैंसर होने की संभावना को भी कम करता है। यह बाइल एसिड के उत्पादन को नियंत्रित कर पित्त पथरी से बचाव करने में भी सक्षम है। क्योंकि यह रक्त शर्करा के स्तर को स्थिर करने में मदद करता है, जौ का पानी शुगर रोगियों के लिए अच्छा है। जौ में निहित बीटा ग्लूकन्स (घुलनशील फाइबर का एक प्रकार), भोजन के बाद ग्लूकोज के अवशोषण को धीमा करता है और शरीर में ग्लूकोज और इंसुलिन में वृद्धि को कम करता है। इसका ज्यादा सेवन करने से आपके ब्लड शुगर का स्तर बहुत हद तक कम हो सकता है, इसलिए इसका सेवन पयाप्त मात्रा में ही करें और अपने ब्लड-शुगर की जांच नियमित रूप से करते रहें। चूँकि जौ का पानी शरीर से विषाक्त पदार्थों के निकास में मदद करता है, यह आपको स्पष्ट और चमकदार त्वचा को पाने में मदद करता है। इसके अलावा, जौ में एजेलिक एसिड नामक यौगिक होता है जो मुँहासों के इलाज के लिए अत्यंत फायदेमंद है। यह मुहांसों की वजह से हो रही जलन व सूजन को कम करने में भी सहायक है। इसके अलावा जौ के पानी में निहित अच्छे एंटी-ऑक्सीडेंट फ्री-रेडिकल से लड़ते हैं और उम्र सम्बंधित त्वचा के बदलावों एवं विकारों पर रोक लगाते हैं। जौ के पानी का सेवन करने के अलावा, आप इसे अपने चेहरे पर भी लगा सकते हैं। प्रति सप्ताह कुछ दिन इसे अपने चेहरे पर लगाएं, दस मिनट के लिए छोड़ दें और फिर पानी से धोकर साफ एवं चमकदार त्वचा पाएं।
हींग की औषधीय विशेषता
भारतीय खाने में असाफोटीडा, जिसे हम हींग भी कहते हैं, की एक खास जगह है। हींग की तेज खुशबू व्यंजन में एक अलग जायका लाती है। यह दाल तड़का व मसालेदार शाकाहारी व्यंजन में इस्तमाल किया जाता है। हींग की औषधीय विशेषता भी है। प्राचीन समय से हींग को अपच दूर करने के लिए इस्तमाल में लाया जाता रहा है। आधा कप पानी में हींग के कुछ दाने डाल कर पीने से बदहजमी से छुटकारा मिल जाता है। मासिक धर्म के दौरान होने वाली परेशानियां जैसे पेट में दर्द और मरोड़ या अनियमित मासिक धर्म में हींग का सेवन करने से फायदे होते हैं। सांस वाली नाली में हुए संक्रमण को हटाने के लिए हींग का इस्तमाल औषधि के रूप में काफी समय पहले से किया जाता रहा है। इससे छाती में फंसे बलगम और छाती दर्द से निजात पाया जा सकता है। सूखी खांसी, अस्थमा, काली खांसी के लिए हींग और अदरक में शहद मिलाकर लेने से काफी आराम मिलता है। हींग की मदद से शरीर में ज्यादा इन्सुलिन बनता है और ब्लड शुगर का स्तर नीचे गिरता है। ब्लड शुगर के स्तर को घटाने के लिए हींग में पका कड़वा कद्दू खाना चाहिए। हींग में कोउमारिन होता है जो खून को पतला करने में मदद करता है और इसे जमने से रोकता है। हींग बढ़े हुए ट्राइग्लीसेराइड और कोलेस्ट्रोल को कम करता है और उच्च रक्तचाप को भी घटाता है। यह औषधि विचार शक्ति को बढ़ाती है और इसलिए उन्माद, ऐंठन और दिमाग में खून की कमी से बेहोशी जैसे लक्षण से बचने के लिए भी हींग खाने की सलाह दी जाती है। पानी में हींग मिलाकर पीने से माइग्रेन और सरदर्द से आराम मिलता है। नीम्बू के रस में हींग का एक टुकड़ा डाल कर रखने से दांत दर्द दूर हो जाता है। अफीम के असर को कम करने में हींग मदद करता है। इसलिए इसे विषहरण औषधि भी कहा जाता है। शोध के अनुसार हींग में वह शक्ति होती है जो कर्क रोग को बढ़ावा देने वाले सेल को पनपने से रोकता है। कई चमड़े पर लगाए जाने वाले पदार्थों में हींग का इस्तमाल होता है क्योंकि यह चमड़े की बीमारी में औषधि की तरह काम करता है। चेहरे के दाग धब्बों से निजात पाने के लिए इसे सीधे चेहरे पर भी लगाया जा सकता है।
चांदी का वर्क नहीं शाकाहारी
किसी भी शुभ कार्य में चांदी के वर्क लगी मिठाई, चांदी का वर्क लगा पान आदि जरूर लाया जाता है और लोग इसे शाकाहारी मानते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि चांदी के वर्क को बनाने में जानवरों की आंत का इस्तेमाल होता है। हालांकि फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने चांदी के ऐसे वर्क पर रोक लगा रखी है, इसके बावजूद पूरे देश में ये धड़ल्ले से बिक रहा है। इतना ही नहीं, चांदी के असली वर्क के नाम पर बाजार में एल्युमिनियम के वर्क भी बिक रहे हैं। इससे कैंसर, फेफड़े और दिमाग की बीमारियां हो सकती हैं। ऐसा इसलिए है कि हमें चांदी के वर्क के बारे में जानकारी ही नहीं होती कि यह क्या है और कैसे बनाया जाता है। चांदी का वर्क बनाने के लिए गाय को मारा जाता है और उसके पेट से आंत निकालकर उसके अंदर चमकीली चांदी जैसी धातु का टुकड़ा परत-दर-परत आंत में लपेट कर रखा जाता है, कि उसका खोल बन जाए। उसके बाद लकड़ी के हथौड़े से जोर-जोर से पीटा जाता है, जिससे आंत फैल जाती है और और आंत के साथ धातु का टुकड़ा वर्क के रूप में पतला होता चला जाता है। चांदी का वर्क गाय की आंत में ही बनाया जाता है क्योंकि उसकी आंत पीटने पर फटती नहीं है। चांदी के वर्क बनाने के लिए हर वर्ष 116000 गायों की हत्या की जाती है। चांदी के वर्क के बारे में लखनऊ के  इंडियन इंस्टीटयूट आफ टाक्सकोलॉजी रिसर्च (आईआईटीआर) के अध्यनन के मुताबिक बाजार में उपलब्ध चांदी के वर्क में निकल, लेड, क्रोमियम और कैडमियम बहुतायत मात्रा में पाया जाता है। इसको खाने से कैंसर जैसे घातक रोग हो सकता है।

Leave a comment