दीमक à¤à¤• अदà¥à¤à¥à¤¤ वासà¥à¤¤à¥à¤•à¤¾à¤°
दीमक का नाम सà¥à¤¨à¤¤à¥‡ ही लोगों के मन में नाजà¥à¤•-सी शारीरिक रचना लेकिन विधà¥à¤µà¤‚सक काम को अंजाम देने वाले जीव की तसà¥à¤µà¥€à¤° सामने आ जाती है। पेड़-पौधों में पाया जाने वाला सेलà¥à¤²à¥‹à¤œ ही दीमक का à¤à¥‹à¤œà¤¨ होता है। इसलिठवे तमाम चीजें दीमक का à¤à¥‹à¤œà¤¨ होती हैं जिनमें सेलà¥à¤²à¥‹à¤œ होता है। बहà¥à¤¤ सी सूखी लकड़ी पर तà¥à¤®à¤¨à¥‡ दीमक का घर बना देखा होगा। लकड़ियों के बने फरà¥à¤¨à¥€à¤šà¤°, कॉपी-किताबों जैसी बहà¥à¤¤ सी चीजों को दीमक चट कर जाती है और फिर वह सामान किसी काम का नहीं रह जाता। दीमक जो सेलà¥à¤²à¥‹à¤œ à¤à¥‹à¤œà¤¨ के रूप में पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करती है उसे पचा पाने की कà¥à¤·à¤®à¤¤à¤¾ उसमें नहीं होती है। इसे पचाने के लिठदीमक को दूसरे जीव की मदद लेना पड़ती है। ये दूसरे जीव पà¥à¤°à¥‹à¤Ÿà¥‹à¤œà¥‹à¤† कहलाते हैं, जो दीमक की आà¤à¤¤à¥‹à¤‚ में रहते हैं। दोनों के बीच सहà¤à¤¾à¤—िता का रिशà¥à¤¤à¤¾ होता है। दीमक लकड़ी को चबाकर निगल जाती है और आà¤à¤¤à¥‹à¤‚ में रहने वाले पà¥à¤°à¥‹à¤Ÿà¥…जोअंस इस लकड़ी की लà¥à¤—दी को à¤à¥‹à¤œà¤¨ में बदल देते हैं। इस à¤à¥‹à¤œà¤¨ से ही दोनों जीव अपना जीवन चलाते हैं। दीमक परà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤°à¤£ में सफाईगार की à¤à¥‚मिका निà¤à¤¾à¤¤à¥€ है पर कई बार यह कीमती सामान को खराब करके नà¥à¤•à¤¸à¤¾à¤¨à¤¦à¤¾à¤¯à¤• à¤à¥€ साबित होती है। दीमक समूह में रहती है और à¤à¥‹à¤œà¤¨ तलाशने में à¤à¤•-दूसरे की मदद à¤à¥€ करती है। ये चींटियों से मिलती-जà¥à¤²à¤¤à¥€ लगती हैं। इसलिठइनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ ‘वà¥à¤¹à¤¾à¤‡à¤Ÿ à¤à¤‚ट‘ à¤à¥€ कहा जाता है। आकार के अलावा चींटियों से इनकी कोई समानता नहीं होती।
इन कोमल शरीर वाले कीटों की नकारातà¥à¤®à¤• छवि बनी हà¥à¤ˆ है। मगर आप इनकी खूबियों पर गौर करें तो पाà¤à¤à¤—े कि ये आला दरà¥à¤œà¥‡ की वासà¥à¤¤à¥à¤•à¤¾à¤° हैं। यहाठहम अफà¥à¤°à¥€à¤•à¥€ दीमक, मेकà¥à¤°à¥‹à¤Ÿà¤°à¥à¤®à¥€à¤¸ बेलीकोसस के बारे में बात करेंगे जो सच में à¤à¤• विसà¥à¤®à¤¯à¤•à¤¾à¤°à¥€ जीव है। ये टरà¥à¤®à¥€à¤Ÿà¤¿à¤¡à¥€ कà¥à¤² और मेकà¥à¤°à¥‹à¤Ÿà¤°à¥à¤®à¥€à¤Ÿà¤¿à¤¨à¥€ उपकà¥à¤² की सदसà¥à¤¯ हैं। ये दीमक अफà¥à¤°à¥€à¤•à¤¾ के सब-सहारा कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° (सहारा का दकà¥à¤·à¤¿à¤£à¥€ à¤à¤¾à¤—), घास के मैदानों (सवाना) और नम जंगलों में पाई जाती हैं और इनकी खासियत है - वातानà¥à¤•à¥‚लित सामà¥à¤¦à¤¾à¤¯à¤¿à¤• आवास बनाने में दकà¥à¤·à¤¤à¤¾à¥¤ चूà¤à¤•à¤¿ इन दीमकों की मौजूदगी का परà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤°à¤£ पर सकारातà¥à¤®à¤• असर होता है इसलिठअफà¥à¤°à¥€à¤•à¥€ लोग इन दीमकों का हमेशा सà¥à¤µà¤¾à¤—त करते हैं। ये दीमक निरà¥à¤œà¥€à¤µ (सड़ी) लकड़ी को खाती हैं और उरà¥à¤µà¤°à¥€à¤•à¤°à¤£ के लिठआवशà¥à¤¯à¤• सामगà¥à¤°à¥€ को छोटे टà¥à¤•à¥œà¥‹à¤‚ में बाà¤à¤Ÿ देती हैं जो दीमक के मल और लार के रूप में बाहर आते हैं। दीमक का आवास टीले की शकà¥à¤² में होता है जहाठवे अपने पूरे समूह के साथ रहती हैं। टीलों को ये अपनी सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾ और जरूरत, दोनों के अनà¥à¤°à¥‚प बनाती हैं। मेकà¥à¤°à¥‹à¤Ÿà¤°à¥à¤®à¥€à¤¸ बेलीकोसस अपने टीले का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ कà¥à¤› इस तरह से करती हैं कि टीले के अनà¥à¤¦à¤° की ऊषà¥à¤®à¤¾ और तापमान का नियंतà¥à¤°à¤£ किया जा सके। मेकà¥à¤°à¥‹à¤Ÿà¤°à¥à¤®à¥€à¤¸ बेलीकोसस की इस अदà¥à¤à¥à¤¤ कà¥à¤·à¤®à¤¤à¤¾ पर बहà¥à¤¤-से अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ हà¥à¤ हैं। सबसे पहले मैं आपको बता दूठकि अफà¥à¤°à¥€à¤•à¥€ दीमक के टीलों के अनà¥à¤¦à¤° के मà¥à¤–à¥à¤¯ हिसà¥à¤¸à¥‹à¤‚ का तापमान 31-31.6 डिगà¥à¤°à¥€ सेलà¥à¤¸à¤¿à¤¯à¤¸ के बीच ही बना रहता है फिर चाहे मौसम सरà¥à¤¦à¥€ का हो या अतà¥à¤¯à¤§à¤¿à¤• गरà¥à¤®à¥€ का। यह इनकी अदà¥à¤à¥à¤¤ कारीगरी का नमूना है। à¤à¤• परिपकà¥à¤µ टीले का अनà¥à¤¦à¤°à¥‚नी à¤à¤¾à¤— हमेशा à¤à¤• निशà¥à¤šà¤¿à¤¤ योजना के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° ही बना होता है जिसमें à¤à¤• या à¤à¤• से जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ पà¥à¤°à¤œà¤¨à¤¨ केनà¥à¤¦à¥à¤° होते हैं जहाठसे मà¥à¤–à¥à¤¯ ककà¥à¤· के लिठबहà¥à¤¤-से मारà¥à¤— जाते हैं। इन मà¥à¤–à¥à¤¯ ककà¥à¤· में खाना, पानी और टीले के निरà¥à¤®à¤¾à¤£ के लिठजरूरी सà¤à¥€ तरह के मिटà¥à¤Ÿà¥€ के कण (जैसे मोटी रेत, महीन रेत, तलछट, चिकनी मिटà¥à¤Ÿà¥€, ऑरà¥à¤—ेनिक कारà¥à¤¬à¤¨ इकटà¥à¤ े किठजाते हैं। दीमक हमेशा नमी वाले गडà¥à¤¢à¥‡ के ऊपर मिटà¥à¤Ÿà¥€ से निरà¥à¤®à¤¾à¤£ करते हैं। वो जमीन के जलसà¥à¤¤à¤° तक कम-से-कम दो लमà¥à¤¬à¥€ सà¥à¤°à¤‚ग खोदती हैं और फिर 3 मीटर चैड़े तलककà¥à¤· का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ करती हैं। यह लगà¤à¤— 1 मीटर गहरा होता है जिसके बीच में à¤à¤• मोटा सà¥à¤¤à¤®à¥à¤ होता है जो टीले के मà¥à¤–à¥à¤¯ à¤à¤¾à¤— को सहारा देता है। इसमें रानी रहती है और यहीं पर बागवानी और फफूà¤à¤¦ की खेती होती है। तलककà¥à¤· की à¤à¥€à¤¤à¤°à¥€ छत पर पतली, वृतà¥à¤¤à¤¾à¤•à¤¾à¤° संघनन नली होती हैं और टीले के चारों तरफ वायà¥à¤¸à¤‚चालन के लिठदरारें होती हैं। हवा टीले के निचले à¤à¤¾à¤— से अनà¥à¤¦à¤° जाती है और ऊपरी à¤à¤¾à¤— से बाहर निकलती है जिससे अनà¥à¤¦à¤° के वातावरण में हमेशा ताजगी बनी रहती है और ऑकà¥à¤¸à¥€à¤œà¤¨ की पूरà¥à¤¤à¤¿ à¤à¥€ होती रहती है। सहारा और घास के मैदान होने के कारण बाहरी तापमान में बहà¥à¤¤ उतार-चà¥à¤¾à¤µ आ सकते हैं (जैसे रात में -1 डिगà¥à¤°à¥€ सेलà¥à¤¸à¤¿à¤¯à¤¸ से नीचे और दिन में 37.7 डिगà¥à¤°à¥€ सेलà¥à¤¸à¤¿à¤¯à¤¸ से ऊपर)। इसलिठठणà¥à¤¡à¥€ रातों के दौरान ताप-कà¥à¤·à¤¤à¤¿ को कम करने के लिठमिटà¥à¤Ÿà¥€ की आड़ का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ करके दरारें बनà¥à¤¦ कर दी जाती हैं और सूरज निकलने के दौरान हवा की आवा-जाही को बà¥à¤¾à¤¨à¥‡ के लिठदरारें पूरी तरह खोल दी जाती हैं। ऊपर खोखली मीनार - चिमनी - होती हैं जो à¤à¥‚तल से 6 मीटर (20 फीट) की ऊà¤à¤šà¤¾à¤ˆ पर होती हैं। ये चिमनियाठहवा और नमी की नियमित आवा-जाही का संचालन करती हैं। à¤à¤¸à¤¾ अनà¥à¤®à¤¾à¤¨ है कि अगर दीमकों ने à¤à¤¸à¤¾ नहीं किया तो रात के वकà¥à¤¤ टीले के अनà¥à¤¦à¤° का तापमान बहà¥à¤¤ घट जाà¤à¤—ा और सूरज निकलने के बाद बहà¥à¤¤ बॠजाà¤à¤—ा। और इससे उनके à¤à¥‹à¤œà¤¨ निरà¥à¤®à¤¾à¤£ में मà¥à¤¶à¥à¤•à¤¿à¤² हो सकती है। दूसरी ओर, नम जंगलों की जलवायॠतà¥à¤²à¤¨à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤• रूप से ठणà¥à¤¡à¥€ होती है। इस वातावरण में मेकà¥à¤°à¥‹à¤Ÿà¤°à¥à¤®à¥€à¤¸ बेलीकोसस के लिठताप-कà¥à¤·à¤¤à¤¿ को रोकना बहà¥à¤¤ जरूरी होता है। इसलिठयहाठके टीले मोटी दीवारों वाले और गà¥à¤®à¥à¤¬à¤¦ के आकार के होते हैं। इसका कारण यह है कि इस तरह के आवासों में विसà¥à¤¤à¤¾à¤°à¤¿à¤¤ नालियों का होना जरूरी नहीं होता कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि इससे ताप-कà¥à¤·à¤¤à¤¿ बॠजाà¤à¤—ी। कà¥à¤› अनà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤œà¤¾à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤ अपने टीले को पानी और धूप से बचाने के लिठमिटà¥à¤Ÿà¥€ की छतरी से ढाà¤à¤• लेती हैं। à¤à¤• और दिलचसà¥à¤ª बात यह है कि वे सतह के नीचे से पानी इकटà¥à¤ ा करती हैं और टीले के अनà¥à¤¦à¤°à¥‚नी à¤à¤¾à¤— में बिखरा देती हैं। इससे आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯à¤œà¤¨à¤• रूप से टीले का अनà¥à¤¦à¤°à¥‚नी तापमान अचà¥à¤›à¥‡ खासे ढंग से संचालित होता है। à¤à¤²à¥‡ ही बाहर का à¤à¤¾à¤— कितना à¤à¥€ गरà¥à¤® कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ न हो, अनà¥à¤¦à¤° का माहौल सà¥à¤¥à¤¿à¤° और आरामदायक रहता है।
टीलों में कवक की खेतीः चींटियों की कà¥à¤› पà¥à¤°à¤œà¤¾à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤ - सबसे पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ लीफकटर चींटियाठ- अपने कोषà¥à¤ में तà¥à¤°à¤¨à¥à¤¤ उपलबà¥à¤§ होने वाले खादà¥à¤¯ पदारà¥à¤¥ के रूप में फफूà¤à¤¦ उगाती हैं। और à¤à¤¸à¤¾ ही गà¥à¤¬à¤°à¥ˆà¤²à¥‹à¤‚ की कà¥à¤› पà¥à¤°à¤œà¤¾à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤ à¤à¥€ करती हैं। लेकिन कोई à¤à¥€ कीट मेकà¥à¤°à¥‹à¤Ÿà¤°à¥à¤®à¥€à¤¸ बेलीकोसस की तà¥à¤²à¤¨à¤¾ में इतनी तकनीक आधारित खेती करता नहीं दिखता। मेकà¥à¤°à¥‹à¤Ÿà¤°à¥à¤®à¥€à¤¸ बेलीकोसस का आहार टरà¥à¤®à¥€à¤Ÿà¥‹à¤®à¤¾à¤¯à¤¸à¥€à¤œ फफूà¤à¤¦ है। वे लकड़ी को चबाती हैं और जो à¤à¥€ पौषà¥à¤Ÿà¤¿à¤• ततà¥à¤µ गà¥à¤°à¤¹à¤£ किठजा सकते हैं उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ पचा लेती हैं। बाकी बचा हà¥à¤† मल के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ निकल जाता है और फफूà¤à¤¦ की बागवानी में इसà¥à¤¤à¥‡à¤®à¤¾à¤² किया जाता है। इन दीमकों का पà¥à¤°à¤¾à¤¥à¤®à¤¿à¤• खादà¥à¤¯ सà¥à¤°à¥‹à¤¤ लकड़ी नहीं बलà¥à¤•à¤¿ फफूà¤à¤¦ होती है। इन टीलों का अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ करते समय पहले-पहल फफूà¤à¤¦ की खेती के विचार को लेकर कà¥à¤› सवाल उठखड़े हà¥à¤à¥¤ कà¥à¤› लोगों का मानना था कि इस फफूà¤à¤¦ की à¤à¥‚मिका टीले में वायà¥-संचालन में रहती होगी। गहरी जाà¤à¤š-पड़ताल से यह समठमें आया कि यह कवक कà¥à¤› मेकà¥à¤°à¥‹à¤Ÿà¤°à¥à¤®à¤¾à¤‡à¤¨ पà¥à¤°à¤œà¤¾à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के लिठà¤à¤• महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ खादà¥à¤¯ सहजीवी है। यह फफूà¤à¤¦ मेकà¥à¤°à¥‹à¤Ÿà¤°à¥à¤®à¥€à¤¸ बेलीकोसस दीमक के टीलों में ही पाई जाती है। अफà¥à¤°à¥€à¤•à¥€ दीमक के मल पर फफूà¤à¤¦ उपजती है। दीमक की पूरी बसà¥à¤¤à¥€ को ये खादà¥à¤¯ सà¥à¤°à¥‹à¤¤ (फफूà¤à¤¦) उपलबà¥à¤§ हो सके इसलिठटीले में फफूà¤à¤¦ उगाने के लिठककà¥à¤· बने होते हैं। इस फफूà¤à¤¦ की वृदà¥à¤§à¤¿ के लिठà¤à¤• तयशà¥à¤¦à¤¾ 31व-31.6व सेलà¥à¤¸à¤¿à¤¯à¤¸ तापमान की जरूरत होती है। नियत तापमान के बारे में à¤à¤• मत है कि यह तापमान 30.5वसेलà¥à¤¸à¤¿à¤¯à¤¸ है। मेकà¥à¤°à¥‹à¤Ÿà¤°à¥à¤®à¥€à¤¸ बेलीकोसस अपने टीलों को इतनी दकà¥à¤·à¤¤à¤¾ से बनाती हैं कि जहाठफफूà¤à¤¦ उगती है वहाठवे 31व-31.6व सेलà¥à¤¸à¤¿à¤¯à¤¸ के बीच का à¤à¤• निशà¥à¤šà¤¿à¤¤ तापमान बनाकर रखते हैं। यह दकà¥à¤·à¤¤à¤¾ इसलिठà¤à¥€ महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ होती है कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि फफूà¤à¤¦ की पैदावार तà¤à¥€ बॠसकती है जब उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ नियत तापमान लगातार मिलता रहे। इसलिठदीमक के टीले की रचना के अनेक पहलू इस तापमान को à¤à¤•à¤¦à¤® à¤à¤¸à¤¾ ही बनाठरखने की à¤à¤• कोशिश का हिसà¥à¤¸à¤¾ हैं।
कृषि में ततैयों का महतà¥à¤µ
ततैया मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ी की à¤à¤¾à¤‚ति उड़ने वाली पà¥à¤°à¤œà¤¾à¤¤à¤¿ का जीव है। इन दोनों में बहà¥à¤¤ जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ अंतर नहीं होता है। ततैया à¤à¥€ मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ी की ही तरह अपना छतà¥à¤¤à¤¾ बनाती हैं, लेकिन यह मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ी की à¤à¤¾à¤‚ति अपने छतà¥à¤¤à¥‡ में कà¥à¤› à¤à¤•à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¤ नहीं करती। यह अपना छतà¥à¤¤à¤¾ पेड़ के साथ-साथ लोगों के घरों की दीवार में à¤à¥€ बना लेती हैं। ततैया का डंक à¤à¥€ मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ी के डंक की तरह जहरीले होता हैं। ततैया के काटने के बाद जलन, दरà¥à¤¦ और सूजन होनी शà¥à¤°à¥‚ हो जाती हैं। ततैया à¤à¤• पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° का कीट होता है। जीववैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤• दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से हायमेनोपà¥à¤Ÿà¥‡à¤°à¤¾ गण और आपोकà¥à¤°à¤¿à¤Ÿà¤¾ उपगण का हर वह कीट होता है जो चींटी या मकà¥à¤–ी न हो। कà¥à¤› जानी-मानी ततैया जातियाठछतà¥à¤¤à¥‹à¤‚ में रहती हैं और जिसमें à¤à¤• अणà¥à¤¡à¥‡à¤‚ देने वाली रानी होती है और अनà¥à¤¯ सà¤à¥€ ततैयें करà¥à¤®à¥€ होते हैं। लेकिन अधिकतर ततैयें अकेले रहते हैं। अकेले रहने वाले बहà¥à¤¤ से ततैयों की मादाà¤à¤ अनà¥à¤¯ कीटों को डंक मारकर उनके जीवित लेकिन मूरà¥à¤›à¤¿à¤¤ शरीरों में अणà¥à¤¡à¥‡à¤‚ देती हैं जिनसे शिशॠनिकलने पर वे उस कीट को खा जाते हैं। इस कारणवश कृषि में कई फसल का नाश करने वाले कीटों की रोकथाम में ततैयों का बहà¥à¤¤ महतà¥à¤µ होता है।
नारियल à¤à¤• बेहद उपयोगी फल
नारियल à¤à¤• बहà¥à¤µà¤°à¥à¤·à¥€ à¤à¤µà¤‚ à¤à¤•à¤¬à¥€à¤œà¤ªà¤¤à¥à¤°à¥€ पौधा है। है। नारियल देर से पचने वाला, मूतà¥à¤°à¤¾à¤¶à¤¯ शोधक, गà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥€, पà¥à¤·à¥à¤Ÿà¤¿à¤•à¤¾à¤°à¤•, बलवरà¥à¤§à¤•, रकà¥à¤¤à¤µà¤¿à¤•à¤¾à¤° नाशक, दाहशामक तथा वात-पितà¥à¤¤ नाशक है। नारियल की तासीर ठंडी होती है। नारियल का पानी हलà¥à¤•à¤¾, पà¥à¤¯à¤¾à¤¸ बà¥à¤à¤¾à¤¨à¥‡ वाला, अगà¥à¤¨à¤¿à¤ªà¥à¤°à¤¦à¥€à¤ªà¤•, वीरà¥à¤¯à¤µà¤°à¥à¤§à¤• तथा मूतà¥à¤° संसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ के लिठबहà¥à¤¤ उपयोगी होता है। सूखे नारियल से तेल निकाला जाता है। इस तेल की मालिश तà¥à¤µà¤šà¤¾ तथा बालों के लिठबहà¥à¤¤ अचà¥à¤›à¥€ होती है। नारियल तेल की मालिश से मसà¥à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤• à¤à¥€ ठंडा रहता है। गरà¥à¤®à¥€ में लगने वाले दसà¥à¤¤à¥‹à¤‚ में à¤à¤• कप नारियल पानी में पिसा जीरा मिलाकर पिलाने से दसà¥à¤¤à¥‹à¤‚ में तà¥à¤°à¤‚त आराम मिलता है। बà¥à¤–ार के कारण बार-बार लगने वाली पà¥à¤¯à¤¾à¤¸ के इलाज के लिठनारियल की जटा को जलाकर गरà¥à¤® पानी में डालकर रख दें। जब यह पानी ठंडा हो जाठतो छानकर इसे रोगी को पीने दें। इससे पà¥à¤¯à¤¾à¤¸ मिटती है। आà¤à¤¤à¥‹à¤‚ में कृमि की समसà¥à¤¯à¤¾ से निपटने के लिठहरा नारियल पीसकर उसकी à¤à¤•-à¤à¤• चमà¥à¤®à¤š मातà¥à¤°à¤¾ का सà¥à¤¬à¤¹-शाम नियमित रूप से सेवन करना चाहिà¤à¥¤ नारियल के पानी की दो-दो बूà¤à¤¦ सà¥à¤¬à¤¹-शाम कà¥à¤› दिनों तक नाक में टपकाने से आधा सीसी के दरà¥à¤¦ में बहà¥à¤¤ आराम मिलता है। सà¤à¥€ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° की चोट-मोच की पीड़ा तथा सूजन दूर करने के लिठनारियल का बà¥à¤°à¤¾à¤¦à¤¾ बनाकर उसमें हलà¥à¤¦à¥€ मिलाकर पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर पटà¥à¤Ÿà¥€ बाà¤à¤§à¥‡à¤‚ और सेंकें। विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ तà¥à¤µà¤šà¤¾ रोगों जैसे खाज-खà¥à¤œà¤²à¥€ में नारियल के तेल में नीबू का रस और कपूर मिलाकर पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर लगाने से लाठमिलता है। हृदय के विकारो के जोखिम कम करने के लिठसूखा नारियल का सेवन करना चाहिà¤à¥¤ सूखा नारियल में अधिक फाइबर होता है। जो हृदय को सà¥à¤µà¤¸à¥à¤¥ बनाये रखने में मदद करता है। सूखे नारियल का सेवन करने से पाचन समà¥à¤¬à¤‚धित सà¤à¥€ समसà¥à¤¯à¤¾à¤“ं से बचने में मदद करता है। वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤•à¥‹à¤‚ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° कà¥à¤°à¥‹à¤¹à¤¨à¥à¤¸ डिजीज के उपचार में पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— किठजाने वाले कॉरà¥à¤Ÿà¤¿à¤•à¥‹à¤¸à¥à¤Ÿà¥‡à¤°à¤¾à¤‡à¤¡à¥à¤¸ के समककà¥à¤· नारियल में फाइटोसà¥à¤Ÿà¥‡à¤°à¤¾à¤²à¥à¤¸ नामक समूह ततà¥à¤µ होता है जो कà¥à¤°à¥‹à¤¹à¤¨à¥à¤¸ डिजीज में मà¥à¤•à¤¾à¤¬à¤²à¤¾ करता है। नारियल हमें मोटापे से à¤à¥€ बचाता है। वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤•à¥‹à¤‚ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° à¤à¤• सà¥à¤µà¤¸à¥à¤¥ वयसà¥à¤• के à¤à¥‹à¤œà¤¨ में पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¦à¤¿à¤¨ 15 मिगà¥à¤°à¤¾ जिंक होना जरूरी है जिससे मोटापे से बचा जा सके। ताजा नारियल में जिंक à¤à¤°à¤ªà¥‚र मातà¥à¤°à¤¾ में होता है। हैजे में यदि उलà¥à¤Ÿà¤¿à¤¯à¤¾à¤ बंद न हो पा रही हों तो रोगी को तà¥à¤°à¤‚त नारियल पानी पिलाना चाहिà¤à¥¤ इससे उलà¥à¤Ÿà¤¿à¤¯à¤¾à¤ बंद हो जाती हैं।
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