A First-Of-Its-Kind Magazine On Environment Which Is For Nature, Of Nature, By Us (RNI No.: UPBIL/2016/66220)

Support Us
   
Magazine Subcription

Tidbit

TreeTake is a monthly bilingual colour magazine on environment that is fully committed to serving Mother Nature with well researched, interactive and engaging articles and lots of interesting info.

Tidbit

Tidbit

Tidbit

मानसून के फल होते हैं फायदेमंद
मानसून का सीजन आते ही प्रकृति के साथ बहुत कुछ बदल जाता है। शरीर में एलर्जी, संक्रमण और अपच की समस्याएं तेजी से पैदा होती हैं। इन समस्याओं की वजह से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता भी कम हो जाती है। ऐसे में फल शरीर के लिए काफी फायदेमंद साबित होते हैं। फलों का राजा कहे जाने वाले आम में में सैचरेटिड फैट, कोलेस्ट्रोल और सोडियम की काफी ज्यादा होती है। इसके साथ ही इसमें फाइबर, विटामिन भी पाई जाती है। बरसात के मौसम में आने वाला जामुन शरीर के लिए काफी फायदेमंद साबित होता है। यह एक तरह से मानसून फल ही होता है। इसमें कैलोरी काफी कम मात्रा में होती है। यह आयरन, फोलेट, पोटेशियम और विटामिन आदि पोषक तत्वों से भरा होता है। मानसून के सीजन में आने वाली लीची काफी स्वादिष्ट होती है।  इसके साथ ही यह शरीर के लिए भी लाभकारी होती है। विटामिन सी से भरपूर यह लीची शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनाती है। केले का कोई एक मौसम नहीं है। यह फल हर सीजन में उपलब्ध होता है, लेकिन बाकी मौसम की अपेक्षा यह बरसात में ज्यादा फायदेमंद साबित होता है। विटामिन मिनरल्स से भरा यह फल पेट के लिए बहुत लाभकारी है। इससे पेट की पाचन क्रिया काफी अच्छी होती है। मानसून के मौसम में नाशपाती का सेवन भी शरीर के लिए बेहतर है। नाशपाती में विटामिन का बड़ी मात्रा में पाई जाती है, जो कि शरीर को संक्रमण आदि से बचाने में मददगार होती है। इस मौसम में लोगों के बीमार होने के चांस ज्यादा होते हैं। ऐसे में सिर्फ मानसून के सीजन में खाई जाने वाली नाशपाती बहुत फायदेमंद होती है।पपीताःपेट के लिए तो पपीता बिल्कुल रामबाण साबित होता है। विटामिन सी से भरपूर पपीता पाचन क्रिया में काफी मददगार होता है। इसमें फाइबर की मात्रा अधिक होती है।
आम का असली सीजन अब हुआ है शुरू
हो सकता है कि आपको मार्केट में आम कुछ समय पहले से ही दिखाई देने लगे हों, लेकिन इसका असली सीजन अब शुरू हुआ है। चाहे सफेदा आम हो या दशहरी या लंगड़ा या चैसा, ये सभी आम जून के आखिरी महीने से मार्केट में आने शुरू होंगे जो जुलाई-अगस्त तक रहेंगे। इनमें दशहरी और चैसा आम मुख्यतः यूपी से आना शुरू होगा। पका हुआ बेस्ट आम डाल का ही माना जाता है। यह आम न केवल सेहत के लिए अच्छे होते हैं, बल्कि काफी मीठे भी होते हैं। ये आम पकने पर अपने-आप डाल से टूटकर गिर जाते हैं। हालांकि इस तरह के पके हुए आम मार्केट में काफी कम मिलते हैं, क्योंकि पेड़ पर इन्हें पकने में कुछ समय लगता है। कच्चे आमों को घर पर कई तरह से पकाया जा सकता है। इन्हें पकाने के लिए सबसे पहले कच्चे आम पूरी तरह परिपक्व होने चाहिए। यानी वे आकार में बड़े हों और दबाने पर कड़े हों। घर पर कच्चे आमों को इस तरह पका सकते हैंः कच्चे आमों को टिश्यू पेपर या अखबार में लपेटकर 3-4 दिन के लिए किसी ऐसी जगह रख दें जो घर के बाकी हिस्सों की अपेक्षा कुछ गर्म हो। यहां ध्यान रहे कि आम रखने की जगह पर अंधेरा भी होना चाहिए। 3-4 दिन पर आम को थोड़ा दबाकर देंगे। अगर वह दब जाए तो समझ लें कि आम पक गया है। इथरेल दवा को पानी में मिलाकर उनमें कच्चे आमों को डुबोया जाता है। करीब पांच मिनट बाद आमों को निकालकर अलग किसी बड़े बर्तन में रख देते हैं। इसके बाद उन आमों को ऐसे ही करीब रातभर छोड़ दिया जाता है। सुबह आम पके हुए मिलते हैं। इस तरह से पके आमों को खाने से सेहत पर कोई बुरा असर नहीं पड़ता। इथरेल दवा और पानी का घोल इतना होना चाहिए कि आम उसमें डूब जाएं। अगर आपके पास एक किलो कच्चे आम हैं और आपको लगता है कि ये दो लीटर पानी में पूरी तरह डूब जाएंगे तो दो लीटर पानी में इथरेल दवा की 1000 उस मात्रा मिलाएं। यह मार्केट में पुड़िया के रूप में आती है। इसमें एक केमिकल पाउडर के रूप में होता है। इसे पानी से भिगोकर कच्चे आमों के बीच में रख दिया जाता है और फिर करीब 20 घंटे के लिए आमों को छोड़ दिया जाता है। इस दौरान ध्यान रहे कि आम पूरी तरह से किसी पुराने अखबार से ढके हों और एसी के संपर्क में न हों। इससे निकलने वाली गैस से आम पूरी तरह पक जाते हैं। इस तरीके से पके आम सेहत के लिए हानिकारक नहीं होते। कमर्शल रूप से ऐसे पकाए जाते हैं आमः आम पकाने के लिए एथिलीन राइपनिंग गैस चैंबर का प्रयोग किया जाता है। इस दौरान कच्चे आमों को एक चैंबर में रखा जाता है। इस चैंबर का तापमान 20 से 22 डिग्री सेल्सियस रखा जाता है और इसमें ऐथिलीन गैस का इस्तेमाल किया जाता है। इस गैस के कारण आम रातभर में ही पक जाते हैं। इस तरह से पके आम सेहत के लिए नुकसानदायक नहीं होते। आमों को पेड़ से कच्चा तोड़ने के बाद उन्हें कैल्शियम कार्बाइड से भी पकाया जाता है। आम पकाने का यह तरीका सेहत के लिए काफी खतरनाक होता है। कैल्शियम कार्बाइड से आर्सेनिक जैसी घातक गैसें निकलती हैं। इस तरीके में कैल्शियम कार्बाइड को एक छोटी पुड़िया में रखकर उसे आमों के बीच में रख देते हैं। इसके बाद इन आमों को करीब 24 घंटे के लिए अंधेरी और सामान्य तापमान वाली जगह रख दिया जाता है। 24 घंटे बाद आम पक जाते हैं। बाद में इस पुड़िया को फेंक दिया जाता है और आमों को मार्केट में बेचने के लिए भेज दिया जाता है। ऐसे करें पके आम की पहचानः आम के ऊपर सफेद धब्बे या पाउडर जैसा कुछ न हो। पका हुआ आम पूरी तरह से मैच्योर नजर आएगा। आम के डाल वाले और उसके निचले हिस्से को थोड़ा दबाकर देखें। अगर ऊपर का हिस्सा सॉफ्ट और निचला हिस्सा ज्यादा टाइट तो इसका मतलब कि उसे सही तरह से पकाया नहीं गया है। सही तरह से पके आम का रंग एक जैसा और थोड़ा सुनहरा होता है। अच्छी तरह से पका आम थोड़ा सॉफ्ट होता है। अधपका आम कहीं से सॉफ्ट और कहीं से ठोस होगा जबकि कच्चा आम पूरा ही ठोस होगा। ऐसे खाएं आमः आमों को नमक मिले गुनगुने पानी में एक-दो घंटे के लिए छोड़ दें। अब आम को साथ से रगड़े और फिर से साफ पानी से धो लें। इसके बाद साफ आम को कपड़े से पौछ लें। इसके बाद आम का डंठल वाला हिस्सा हल्का-सा काट कर कुछ बूदें रस निकाल दें। कई बार लोग आम को छिलके समेत काट लेते हैं और फिर उसे खाते हैं। कई बार खाने का तरीका ऐसा होता है कि आम का छिलका भी मुंह में आ जाता है। इससे बचें, क्योंकि अक्सर आमों पर खतरनाक पेस्टिसाइड का छिड़काव होता है। आम खाना काफी हद तक आपके रुटीन पर निर्भर करता है। अगर मान लें कि एक आम का वजन 300 से 400 ग्राम है और अगर आप बहुत ऐक्टिव नहीं हैं और एक्सरसाइज नहीं करते हैं तो दिन भर में 2 से ज्यादा आम न खाएं। अगर आप ज्यादा आम खाना चाहते हैं तो बाकी चीजें जैसे कि कार्बोहइड्रेट (रोटी, चावल, मैदा, बेसन आदि) कम कर दें। वैसे, अगर कोई बीमारी नहीं है, वजन भी ज्यादा नहीं है और कसरत भी करते हैं तो दिन भर में 3-4 आम तक खा सकते हैं। इससे ज्यादा आम खाना सही नहीं है। डायबीटीज और किडनी के मरीज ध्यान देंः आम में तरबूज और खरबूजा की अपेक्षा अधिक शुगर होती है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि डायबीटीज के मरीज आम नहीं खा सकते। आम का ग्लाइसेमिक इंडेक्स 51 से 55 के बीच होता है। ऐसे में डायबीटीज वाला मरीज एक दिन में 50 से 60 ग्राम आम खा सकता है। हालांकि मरीज को इस दौरान ऐसी दूसरी चीजें खाने की मात्रा कम करनी पड़ेगी। आम में भी पोटेशियम होता है। ऐसे में किडनी के मरीज डॉक्टर की सलाह के अनुसार ही खाएं।
लीची खाएं, लेकिन ध्यान से
लीची कभी भी अधपकी या कच्ची और खाली पेट नहीं खानी चाहिए। पकी और बिना कीड़े वाली लीची को पहले छील लें। अब उसके खाने वाले हिस्से (गूदा) को उसकी गुठली से अलग कर लें। गूदा को भी गौर से देखें कि कहीं उसमें भी कीड़े तो नहीं हैं। अगर गूदा में कीड़े नहीं हैं तो उसे किसी बर्तन में इकट्ठे कर लें। इकट्ठे उतने ही करें जितना आप खा सकें। इसके बाद गूदा को फिर से साफ पीने वाले पानी से दो बार धोएं। अब इस गूदे को खा सकते हैं। यह तरीका आपको लंबा जरूर लग सकता है, लेकिन सेहत के लिए जरूरी है। इस फल में कीड़े मिलने की भी आशंका ज्यादा होती है। लीची का वह हिस्सा जो डंठल से लगा होता है, वहां कीड़े अधिक मिलते हैं। इन कीड़ों का रंग लीची के रंग जैसा होता है, इसलिए ये कई बार दिखाई भी नहीं देते। लीची खाते समय कीड़ों का ध्यान रखें। अगर कीड़े दिखाई दें तो उस लीची को फेंक दें।

Leave a comment