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Thinking Point

TreeTake is a monthly bilingual colour magazine on environment that is fully committed to serving Mother Nature with well researched, interactive and engaging articles and lots of interesting info.

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कोरोना, प्रकृति और रामायण
रमेश गोयल
लेखक चिन्तक, समीक्षक व पर्यावरण एवं जल संरक्षण को समर्पित कार्यकर्ता हैं
तीव्र गति से पूरी दुनिया में फैल गई एक बीमारी, जिसे कोविद-19 के नाम से जाना जा रहा है, बहुत खतरनाक महामारी का रूप ले चुकी है। इसका वायरस एक छूत का रोग है जो रोगी के सम्पर्क में आने वाले व्यक्ति के शरीर में पहुंच जाता है। वैश्विक महामारी के चंगुल में विश्व के विकसित देश भी पूरी तरह आ चुके हैं। जनता द्वारा अपने आप को लाकडाऊन द्वारा बचाव करने के अतिरिक्त कोई सही उपचार अभी तक नहीं आया है यानि किसी भी रोगी के सम्पर्क में आने से बचना ही एकमात्र सुरक्षा है। लोग मानसिक रूप से तनावग्रस्त या रोगी न हों इसलिए भारतीय संस्कृति को समर्पित सर्वाधिक लोकप्रिय धारावाहिक रामायण व महाभारत का प्रसारण आरम्भ किया गया। सैंकड़़ों वर्ष पूर्व रामायण के उत्तरकाण्ड के अन्तिम चरण (सोपान) में तुलसीदास जी ने पूर्ण रूपेण सामाजिकता का वर्णन किया है जैसे दरिद्रता, परोपकार, विपत्ति, रोग, निन्दा, अहंकार आदि। दोहा 120(ख) से आगे चैपाई 14 में चमगादड़ का वर्णन सीधा कोरोना से जोड़ता है क्योंकि प्राप्त जानकारी अनुसार यह महामारी चमगादड़ को खाने के कारण फैली है। गीता प्रैस गोरखपुर द्वारा सम्वत् 2045 (सन 1988) में प्रकाशित श्री राम चरित मानस के 73वें संस्करण के पृष्ठ 1048 व आगे का विवरण निम्न प्रकार है।
सब कै निंदा जे जड़ करहीं। ते चमगादुर होई अवतरहीं ।।
सुनहु तात  अब मानस रोगा । जिन्ह ते दुख पावहिं सब लोगा।।
जो मूर्ख मनुष्य सबकी निन्दा करते हैं, वे चमगादड़ होकर जन्म लेते हैं।  हे तात्! अब मानसरोग सुनिये, जिनमें सब लोग दुःख पाया करते हैं।
मोह सकल व्याधिन्ह कर मूला।  तिन्ह ते पुनि उपजहिं बहु सूला।।
काम बात कफ लोभ अपारा।  क्रोध पित्त नित छाती जारा ।।
सब रोगों की जड़ मोह (अज्ञान) है। उन व्याधियों से फिर और बहुत- से शूल उत्पन्न होते हैं। काम बात है, लोभ अपार (बढ़ा हुआ) कफ है और क्रोघ पित्त है जो सदा छाती जलाता रहता है। ।।15।। ( कोरोना के ये सब लक्षण ही तो हैं।)
प्रीति करहिं जौं तीनिउ भाई। उपजइ सन्यपात दुखदाई ।।
विषय मनोरथ दुर्गम नाना ।  ते सब सूल नाम को जाना ।।
यदि कहीं ये तीनों भाई (वात, पित्त और कफ) प्रीत कर लें (मिल जायें) तो दुखदायक सन्निपात रोग उत्पन्न होता है। कठिनता से प्राप्त (पूर्ण होने वाले जो विषयों के मनोरथ हैं, वे ही सब शूल (कष्टदायक रोग) हैं उनके नाम कौन जानता है (अर्थत वे अपार हैं) ।। 16 ।।
रघुपति भगति सजीवन    मूरी। अनूपान श्रद्धा मति पूरी ।।
एहि बिधि भलेहीं सो रोग नसाहीं । नाहि त जतन कोटि नहिं जाहीं। ।।

श्री रघुनाथ जी की भक्ति संजीवनी जड़ी है। श्रद्धा से पूर्ण बुद्धि ही अनुपान (दवा के साथ लिया जाने वाला मधु आदि) है। इस प्रकार का संयोग हो तो वे रोग भले ही नष्ट हो जाये, नहीं तो करोड़ों प्रयत्नों से भी नहीं जाते ।। 4 ।।
तृषा जाई बरू मृगजल पाना।  बरू जामहिं संस सीस बिषाना ।।
अंधकारू बरू रबहि नसावै ।  राम बिमुख न जीव सुख पावै ।।
मृगतृष्णा के जल को पीने से भले ही प्यास बुझ जाय, खरगोश के सिर पर भले ही सींग निकल आवें, अन्धकार भले ही सूर्य का नाश कर दें, परन्तु श्रीराम से विमुख होकर जीव सुख नहीं पा सकता  ।। 9 ।।
बारि मथें घृत होइ सिकता ते बरू तेल ।
बिनु हरि भजन न भव तरिअ यह सिद्धांत अपेल।।
जल को मथने से भले ही घी उत्पन्न हो जाय और बालू से भले ही तेल निकल आवे,परन्तु श्री हरि के भजन बिना संसार रूपी समुद्र से नहीं तरा जा सकता,यह सिद्धान्त अटल है।।122क।
मसकहिं करइ बिरंचि प्रभु अजहि मसक ते हीन ।
अस बिचारि तजि संसय रामहि भजहिं प्रबीन  ।।
प्रभु मच्छर को ब्रहमा कर सकते हैं और ब्रहमा को मच्छर से भी तुच्छ बना सकते हैं । ऐसा विचार कर चतुर पुरूष सब सन्देह त्यागकर श्रीराम को ही भजते है। ।। 122 (ख) ।।
अनेक चैपाईयों के माध्यम से पूरे प्रसंग को तुलसीदास जी की चेतावनी पूर्ण भविष्यवाणी मानते हुए श्रीराम व श्री हरि के नाम के स्थान पर प्रकृति शब्द को जोड़ लें तो आज की परिस्थिति (कोरोना जैसी महामारी) के संकेत स्पष्ट हो जायेंगे। छोटे छोटे रोग प्रकृति विमुख होने से कैसे बढ़ते हैं और कैसे अनेक प्रकार की विपत्तियां कष्ट आते रहते हैं। चैपाई 15 में खांसी, फेैफड़ों में जलन का संकेत कोरोना के लक्षण तुल्य ही तो हैं। चैपाई 16 में उनका यह कहना है कि यदि ये तीनों भाई यानि वात, कफ, पित्त रोग एक साथ मिलकर आक्रमण कर दें तो जो कष्टदायक रोग होगा उसका नाम कोई नहीं जानता। इनमें से एक ही रोग के वशीभूत लोग मर जाते हैं फिर इनका संगम तो असाध्य महारोग होगा ही। चैपाई 19 में ज्वर (बुखार) का विवरण है और कोरोना में खांसी, फेफड़ों के संक्रमण के साथ ज्वर ही होता है। काम क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, राग, द्वेष, ईष्र्या, तृष्णा आदि सबको विभिन्न रोगों से जोड़ते हुए तुलसीदास जी ने समाज को दर्पण दिखाने का सुन्दर प्रयास किया है परन्तु आधुनिकता व भौतिकता की अन्धी दौड़ में पागल मनुष्य ने इस ओर कभी ध्यान नहीं दिया। उन्होंने कहा है कि रोग के विषय में पता लगने पर उसका प्रभाव क्षीण तो कर पायेंगे परन्तु श्रीराम की कृपा बिना पूर्णरूपेण समाप्त करना सुगम नहीं होगा यानि प्रकृति अनुकूल हुए बिना उपचार सम्भव नहीं जिसके होने में समय लगेगा। नियम, ज्ञान, जप, दान उत्तम आचरण व अन्य उपायों के बाद भी यह रोग आसानी से नहीं जाता। यानि नियमों व कार्य प्रणाली में अत्यन्त परिवर्तन के बाद भी मुक्ति आसान नहीं है। हर चैपाई का सरल भाषा में अर्थ हर व्यक्ति समझ सकता है। उसे इसी द्वष्टीकोण व भाव से समझने का प्रयास करें। उन्होंने उसका उपाय बताते हुए सद्गुरू रूपी वैद्य के वचनों पर विश्वास करने के लिए सुझाव दिया है। वर्तमान में हमारे शासक-नियन्त्रक माननीय प्रधान मन्त्री मोदी जी को इस रूप में मानते हुए हम उनका अनुशरण करें तो समस्या का निदान हो सकता है। संयम और प्रकृतिनिष्ठ होकर कार्य व अनुपालन ही श्रेष्ठ साधन है। मलेरिया ज्वर हेतु प्रयोग की जाने वाली भारतीय दवा हाईड्रोक्सीक्लोरोक्विन ही सार्थक बनी हुई है और पूरा विश्व इसके लिए भारत की ओर ताक रहा है।
उदाहरणों सहित उन्होंने यह भी बताया है कि असम्भव से असम्भव बात भी शायद सम्भव हो जाये जैसे कछुए की पीठ पर भले ही बाल उग आवें, बांॅझ का पुत्र भले ही किसी को मार डाले, आकाश में भले ही अनेकों प्रकार के फूल खिल उठें, मृगतृष्णा के जल को पीने से भले ही प्यास बुझ जाय, खरगोश के सिर पर भले ही सींग निकल आवें, अन्धकार भले ही सूर्य का नाश कर दें, बर्फ से भले ही अग्नि प्रगट हो जाय, यानी ये सब अनहोनी बातें चाहंे हो जायंे परन्तु श्रीहरि (प्रकृति) से विमुख होकर जीव सुख प्राप्त नहीं कर सकता है। उनके अनुसार यह भयंकर रोग किसी छोटे बड़े का भेद भी नहीं करता। मुनि यानी उत्तम पुरूष, जिन्हंें आजकल अति विशिष्ट व्यक्ति (वीआईपी) कहा जाता है, भी इससे बच नहीं पायेंगे। ब्रिटेन के राजकुमार चाल्र्स, प्रधानमन्त्री जानसन, स्वास्थ्य मन्त्री हंैंकोक, कनाडा के प्रधान मन्त्री की पत्नी सोफिया, विख्यात एक्टर ओलिविया, इजराईल के स्वास्थय मन्त्री, अमेरिकन गायक जोहन प्राइन, टर्की फुटबालर रैकबर, गायिका कनिका कपूर, इन्दिरा वर्मा, बुकिन नटस के बास्केट बाल खिलाड़ी, आस्ट्रेलिया के गृहकार्य मन्त्री पीटर, ईरान के उप स्वास्थ्य मन्त्री सहित विश्व के अनेक अतिविशिष्ट व्यक्ति इसकी चपेट में आ चुके हैं और इसकी भयंकरता व समानता के स्पष्ट उदाहरण हैं। उन्होंने कहा है कि केवल प्रभू ही असम्भव को सम्भव बना सकते हैं यानी प्रकृति ही सर्वशक्तिमान है।
विश्व के अनेक देशों में समय समय पर तुफान, भूकम्प, जंगल की आग, बर्फबारी, बाढ़ आदि प्राकृतिक आपदाएं आती रहती हैं जिन्हें हम नजरअन्दाज करते रहे हैं और प्रकृति की चेतावनी को नहीं माना। प्रदूषण का स्तर इतना बढ़ गया कि शुद्ध वायू को तरसने लगे और स्थिति यहां तक पहुंची कि बच्चे विद्यालयों में मास्क लगाकर जाने लगे। पर्वतों की ताजा हवा के नाम पर शुद्ध वायु के सिलेन्डर बिकने लगे। प्रदूषित वातावरण से तापमान इतना बढ़ा कि विश्व भर में अरबों की संख्या में जीव जन्तु मर गये परन्तु मनुष्य ने अपनी गति बढ़ाने की होड़ में सारी सीमाएं पार दी। एक शताब्दी पूर्व 50 प्रतिशत भूभाग पर जगंल थे जो अब 10 प्रतिशत से भी कम हैं। लाखों तालाब कुए बावड़ी तथा हजारों नदियां सुख गए हैं या अतिक्रमण के शिकार हो गए हंै। अन्ततः प्रकृति रूपी भगवान ने मनुष्य को उसकी औकात बताई है और एक छोटे से किटाणु के माध्यम से सबको नानी याद दिला दी है। सकारात्मक सोच के साथ इसे हम आपदा की बजाय यह मानें कि प्रकृति ने हमें पर्यावरण शुद्धिकरण के साथ साथ स्वयं को पहचानने, स्वस्थ रखने, फास्ट फूड व ऊट पटांग वस्तुएं न खाने, बिना कारण यात्रा न करने, बाहर झांकने की बजाय अन्दर झांकते हुए मन मन्दिर में जाकर घर एक मन्दिर की कहावत को चरितार्थ करने का सुअवसर प्रदान किया है, तो श्रेष्ठ रहेगा।

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