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कोरोना वायरस से चमगादड़ क्यों बीमार नहीं हुए?
चमगादड़ों को खत्म करने का अभियान बहुत ही मूर्खतापूर्ण बात होगी
एके सिंह
जिस कोरोना वायरस से लाखों लोग इन्फेक्ट हुए हैं, वो एक जूनोटिक वायरस है यानी जानवरों से इंसानों तक आया है। लेकिन किस जानवर से और कहां? इसके लिए शुरुआती केसेस को ट्रेस करना होगा। इस वायरस के शुरुआती केस चीन के वुहान शहर में दिसंबर 2019 में सामने आए। शुरुआती कुछ केसेस में एक सिमिलेरिटी थी, ये लोग वुहान के सीफूड मार्केट होकर लौटे थे। फिलहाल कोई भी वैज्ञानिक कोरोना के एग्जैक्ट ओरिजिन को लेकर श्योर नहीं है लेकिन उनसे किसी एक जानवर की तरफ इशारा करने को कहा जाए तो ज्यादातर की उंगली चमगादड़ों की तरफ होगी। ऐसा क्यों? इसके लिए हमे कोरोना की कहानी पता करनी होगी। ये कहानी वरिष्ठ एपिडेमियोलॉजिस्ट जॉनॉथन एप्स्टीन ने बताई है।
यह चमगादड़ का सूप पीने से तो नहीं हुआ है। जब खाद्य उत्पादों को उबाला जाता है, तो वायरस नष्ट हो जाता है। प्रारंभ में, यह अनुमान लगाया गया था कि वायरस चमगादड़ से मनुष्यों में पहुँचा है। लेकिन, हाल ही में हुए जीनोम के अध्ययन से पता चलता है कि इनसानों में पहुँचने से पहले इसे किसी मध्यस्थ प्रजाति तक जाना चाहिए था। एक अन्य अध्ययन से संकेत मिलता है कि वायरस का एक वंश बीमारी फैलने से पहले मनुष्यों में मौजूद था। मनुष्यों में पहुँचने से पहले ै।त्ै-ब्वट-2 या तो किसी जंतु मेजबान में वायरल रूप के प्राकृतिक चयन या फिर जूनोटिक ट्रांसमिशन के बाद मनुष्यों में वायरल रूप के प्राकृतिक चयन से उभरा है। केवल अधिक अध्ययन से पता चलेगा कि दोनों में से कौन-सा तथ्य सही है।
2002 में चीन के गुआंगडोंग से कोरोना वायरस फैला। वैज्ञानिकों ने इसका सोर्स पता करने की कोशिश की। पता चला कि ये वायरस गुआंगडोंग के एनिमल मार्केट में सिवेट्स सप्लाई करने वालों को शिकार बना रहा है। सिवेट्स को हिंदी में कस्तूरी बिलाव कहते हैं। जब सिवेट्स की टेस्टिंग हुई तो उनमें भी ये वायरस पाया गया। इसलिए सिवेट्स को इस वायरस का सोर्स समझ लिया गया। लेकिन बाद में एक स्टडी में सामने आया कि फार्म वाले सिवेट्स में इस वायरस का कोई निशान नहीं था। इसका मतलब ये था कि सिवेट्स भी मार्केट में किसी और जानवर से इंफेक्ट हो रहे थे, इंसानों की तरह। सार्स इन्फेक्शन की खबर फैलने के बाद बिलावों को मारा जाने लगा। बाद में कई स्टडीज हुईं और ये पता चला कि ये वायरस चमगादड़ों में पनपता है। और सिर्फ यही नहीं इससे मिलते-जुलते कई सारे वायरस चमगादड़ों में पनपते हैं। 2013 में वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरॉलजी में रीसर्चर्स ने ऐसे ही एक वायरस की पहचान की थी। और ये वायरस इंपॉर्टेंट इसलिए है, क्योंकि जो नया वाला कोरोना वायरस है, उसका जेनेटिक सीक्वेंस 2013 वाले वायरस से 96ः मैच करता है। जैसे अपने देश में पहचान के लिए आधार कार्ड देखा जाता है, वैसे ही बायॉलजी में जेनेटिक सीक्वेंस देखा जाता है। जेनेटिक सीक्वेंस के बारे में अच्छी बात ये है कि जिन दो ऑर्गेनिज्म्स का जेनेटिक सीक्वेंस मेल खाता है, उनकी बनावट एक जैसी होती है। और उनके पुरखे भी एक ही होते हैं। चमगादड़ वाले कोरोना वायरस का जेनेटिक सीक्वेंस ै।त्ै-ब्वअ-2 से 96ः मेल खाता है, इसलिए इनके सोर्स को एक ही मान लेना ठीक ठाक गेस है। और वैसे भी चमगादड़ कई सारे वायरसेस के लिए रिजर्वॉयर का काम करते हैं। तो अगला सवाल ये होना चाहिए कि अगर चमगादड़ों में बहुत सारे वायरस होते हैं, तो उनसे चमगादड़ इन्फेक्ट क्यों नहीं होते? इसका एक लाइन का जवाब ये होगा कि चमगादड़ उन गिने-चुने मैमल्स (स्तनधारी जीव) में से हैं, जो उड़ भी सकते हैं। और उड़ना उनके इम्यून सिस्टम को बहुत तगड़ा बना देता है। बहुत स्पेसिफिक होकर बात की जाए तो इस चीज को क्छ। सेंसिंग कहा जाता है। 2018 में छपे एक रीसर्च पेपर से इस बात का पता चलता है।
उड़ते वक्त चमगादड़ों को एनर्जी की बेहद जरूरत होती है। इस जरूरत को पूरा करते-करते कई सेल्स टूट जाते हैं। और इस टूटे सेल का क्छ। और बाकी का मलबा उनके शरीर में तैर रहा होता है, जहां उसे नहीं होना चाहिए। इस मलबे से लड़ने के लिए शरीर में इम्यून रिस्पॉन्स एक्टिव हो जाता है। कई बार ऐसा होता है कि इम्यून रिस्पॉन्स भी शरीर को बहुत नुकसान पहुंचा सकता है। लेकिन इवॉल्यूशन के चलते चमगादड़ों में ये रिस्पॉन्स कमजोर हो गया है। तो इसे यूं भी कहा जा सकता है कि चमगादड़ों में ये रिस्पॉन्स एक सही लेवल पर आ गया है। इसलिए चमगादड़ों में वायरस रह भी लेते हैं और उनके शरीर में इससे कुछ होता भी नहीं है। कोरोना वायरस का एक्चुअल सोर्स पता करना क्यों जरूरी है? ताकि हम जरूरी प्रिकॉशन्स बरत सकें और भविष्य में इस तरह का आउटब्रेक दोबारा न हो। लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि प्रिकॉशन के नाम पर चमगादड़ों को खत्म करने का अभियान चलने लगे। ये बहुत ही मूर्खतापूर्ण बात होगी। क्योंकि सभी जीव आपस में निर्भरता के एक जाल में गुथे हुए हैं। किसी भी एक के खत्म होने से बाकियों के ऊपर भी नाश का खतरा मंडराने लगता है। चमगादड़ पर्यावरण के लिहाज से अहम हैं। दुनिया भर में इनकी 1300 प्रजातियां हैं जो समस्त स्तनधारियों का बीस फीसद हैं। इंसानी सभ्यता के शुरुआत से ही यह जीव हमारे निकट रहा है। पौधों की पांच सौ प्रजातियां परागण के लिए चमगादड़ों पर ही आश्रित हैं। पके फलों के बीजों को रात भर में अपनी उड़ान के दौरान बहुत दूर-दूर तक ये तमाम प्रजाति के पौधों के बीजों का प्रसार करते हैं। चमगादड़ के अपशिष्ट बहुत कीमती होते हैं। इन्हें बहुत प्रभावी प्राकृतिक उर्वरक माना जाता है। कीटों को खुराक बनाकर फसल नुकसान और कीटनाशकों से बचत के मद में बड़ी मदद करते हैं। और ऐसा भी नहीं है कि चमगादड़ों से कोरोना वायरस आने में इंसानों का कोई दोष नहीं है। पिछले कई सालों से हमारे रिहायशी इलाकों का दायरा बाकी के जानवरों के घरों में जा घुसा है। जिनमें से एक चमगादड़ भी है। इससे इंसानों द्वारा पाले जाने वाले जानवरों के बीच संक्रमण का खतरा बढ़ा है। मतलब इससे हमारे बीच भी संक्रमण का खतरा बढ़ता है। हमें हमले की नहीं बल्की थमने की जरूरत है।
कोरोना वायरस पैंगोलिन में भी पाया गया है। दुनिया भर में सबसे ज्यादा तस्करी इसी जीव की होती है। इसकी त्वचा से परंपरागत चीनी औषधि तैयार की जाती है। वहीं कुत्तों और पालतू जानवरों के कोरोना वायरस की चपेट में आने की बात एकदम झूठी है। यह सिर्फ अफवाह है जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन को आधार बनाकर फैलाया जा रहा है। अभी तक ऐसे कोई सबूत नहीं मिले हैं जिनसे ये साफ हो कि कोरोना वायरस पालतू जानवरों को भी फैल सकता है। कुत्तों और बिल्लियों में इस वायरस के फैलने के कोई सबूत नहीं हैं। हालांकि यह जरूरी है कि जब भी आप अपने पालतू कुत्ते या बिल्ली को छुएं तो उसके बाद साबुन से अच्छी तरह से अपने हाथों को धोएं, क्योंकि अगर आप ऐसा नहीं करते हैं तो आपको बैक्टीरियल इंफेक्शन हो सकता है। पशु चिकित्सकों की एक संस्था का कहना है कि कुत्तों में दो तरह का कैनेन कोरोना वायरस पाया जाता है जो कि कोविड-19 से अलग है। ये वायरस कुत्तों की आंतों में पाया जाता है, और कुत्ते जब डायरिया के शिकार होते हैं तो इस तरह का वायरस उनमें देखने को मिलता है। लेकिन यह वायरस कुत्ते से इंसानों में नहीं फैलता है।
नोवेल कोरोना वायरस के बारे में कई तरह की बातें सोशल मीडिया, वाट्सऐप और इंटरनेट के माध्यम से फैल रही हैं। इनमें से कुछ सही हैं, तो बहुत-सी बातें बिल्कुल निराधार हैं। ऐसे समय में जब कोरोना वायरस महामारी बनकर दुनियाभर में हजारों लोगों की जान ले चुका है, तो इससे जुड़े कुछ अनिवार्य पहलुओं के बारे में जानना जरूरी है। संक्रमणः वायरस गले और फेफड़ों में उपकला कोशिकाओं को संक्रमित करता है। हालाँकि, त्वचा पर चिपकने के बावजूद वायरस नुकसान नहीं पहुँचाता क्योंकि यह वायरस नाक, आँखों और मुँह से होकर शरीर में प्रवेश करता है। हमारे हाथ इसका मुख्य साधन हो सकते हैं, जो हमारे मुँह, नाक और आँखों तक वायरस को पहुँचा सकते हैं। जितनी बार संभव हो 20 सेकंड तक साबुन के पानी से हाथ धोना संक्रमण को रोकने में मदद करता है। मैकाक बंदर को संक्रमित करने के लिए सात लाख पीएफयू खुराक की आवश्यकता पड़ती है। पीएफयू (प्लाक बनाने की इकाई) नमूना संक्रामकता के मापन की एक इकाई है। हालाँकि, बंदर में कोई नैदानिक लक्षण नहीं देखे गए हैं, नाक और लार के द्रव कणों में वायरल लोड था। मनुष्य को इस वायरस से संक्रमित होने के लिए सात लाख पीएफयू से अधिक खुराक की आवश्यकता होगी। आनुवंशिक रूप से संशोधित चूहों पर एक अध्ययन से पता चला है कि वह केवल 240 पीएफयू खुराक से संक्रमित हो सकता है। इसकी तुलना में, चूहों को नये कोरोना वायरस से संक्रमित होने के लिए 70,000 पीएफयू की आवश्यकता होगी। संक्रामक अवधिः यह अभी पूरी तरह ज्ञात नहीं है कि कोई व्यक्ति कितनी अवधि तक दूसरों को संक्रमण पहुँचा सकता है, लेकिन अब तक यह माना जा रहा है कि यह अवधि 14 दिन की हो सकती है। संक्रामक अवधि को कृत्रिम रूप से कम करना समग्र संचरण को कम करने का एक महत्वपूर्ण तरीका हो सकता है। संक्रमित व्यक्ति को अस्पताल में एकांत कमरे में भर्ती करना, दूसरे लोगों से अलगाव और लॉकडाउन संक्रमण रोकने के प्रभावी तरीके हो सकते हैं। वायरस से संक्रमित कोई भी व्यक्ति लक्षण प्रकट होने से पहले ही दूसरों को संक्रमित कर सकता है। खाँसी या छींक आने पर हमारे मुँह और नाक को ढंकने से संक्रमण को कम करने में मदद मिल सकती है। वायरस पूरी संक्रामक अवधि में संक्रमित व्यक्ति की लार, थूक और मल में मौजूद रहता है। फोन, दरवाजे की कुंडी और दूसरी सतहें वायरस के संचरण का संभावित स्रोत हो सकती हैं, लेकिन इसके बारे में बहुत अधिक जानकारी नहीं है। दरवाजे की कुंडी, लिफ्ट का बटन और सार्वजनिक स्थानों पर काउंटर को छूने के बाद हाथों को सैनेटाइज करना बचाव का सुरक्षित विकल्प हो सकता है।

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