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Talking Point

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लॉकडाउन में निर्मल होने लगीं नदियां
एके सिंह
देश में चल रहे लॉकडाउन की वजह से जहाँ लोग अपने घरों में रहने को मजबूर हैं और देशभर की फैक्टरियां बंद पड़ी हैं, वहीँ इसी लॉकडाउन की वजह से प्रकृति अपने असली स्वरूप में आ गई है। जहां एक ओर देश के सभी राज्यों व शहरों की वायु गुणवत्ता में सुधार हुआ है, वहीं गंगा और यमुना जैसी बेहद प्रदूषित हो चुकी नदियां भी साफ दिखने लगी हैं। जहां पहले इनका पानी काला-गंदा दिखता था, वहां अब यह पानी स्वच्छ और निर्मल दिखाई देता है। इस दौरान, जल प्रदूषण के स्तर में लगातार गिरावट देखने को मिल रही है। पर्यावरणविदों के अनुसार, 22 मार्च के बाद से मेरठ सहित वेस्ट यूपी से होकर गुजरने वाली गंगा समेत अन्य नदियों के प्रदूषण में कमी आई है। मेरठ, बागपत, बिजनौर, अलीगढ़, मुजफ्फरनगर जैसे वेस्ट यूपी के शहरों में औद्योगिक कचरे को नदियों में फेंका जाता है। फिलहाल, औद्योगिक इकाइयों का कचरा नहीं गिरने से अब गंगा निर्मल हो रही है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अभी जो गंगा नदी की गुणवत्ता है उसे नहाने के साथ ही वन्यजीव और मत्स्य पालन के फिट बताया है।
डीएफओ अदिति शर्मा का कहना है कि इंडस्ट्री बंद होने से प्रदूषण कम हो रहा है। लोगों की आवाजाही भी बंद है।उन्होंने  बताया कि गंगा की सहायक नदियों जैसे कि हिंडन और यमुना में भी पानी की गुणवत्ता में सुधार देखा गया है। अदिति शर्मा का कहना है कि लॉकडाउन की अवधि के आने वाले दिनों में गंगा के पानी की गुणवत्ता में और भी सुधार होने की संभावना है। अलीगढ़ और इलाहाबाद के बीच देखना होगा, नरौरा तक गंगा में कोई वैसे भी दिक्कत नहीं है। हालांकि, नदियों के पानी की गुणवत्ता में सुधार के बारे में सरकार की तरफ से अभी तक कोई आधिकारिक रिपोर्ट जारी नहीं किया गया है।
गंगा व यमुना की अविरलता और निर्मलता के लिए सरकार के प्रयास बीते करीब तीन दशकों से बेशक कामयाब न हो सके हों, लेकिन लॉकडाउन के दौरान नदियों ने खुद ही अपने को साफ कर लिया है। नदी का जल नीला होने साथ ही नजदीक जाने पर उसकी तली भी इस वक्त दिख रही है। लॉकडाउन से पहले काले पानी से लबालब यमुना नदी दूर से नाले सरीखी नजर आती थी। यानी यमुना ने खुद को पुनर्जीवित करने का अपना मॉडल पेश कर दिया है। विशेषज्ञ नदी की अपने स्तर पर की जाने वाली साफ-सफाई को भविष्य के मॉडल के तौर पर देख रहे हैं, जिसके सहारे सभी नदियों को पुनर्जीवित करना संभव हो सकेगा। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर केंद्र व राज्य सरकारों ने लॉकडाउन के दौरान नदी के इस नैसर्गिक मॉडल को समझ लिया और उसके अनुसार योजनाएं बनाईं तो बगैर बड़े पैमाने पर मानवीय व वित्तीय संसाधन लगाए नदियों को साफ-सुथरा रखा जा सकेगा। इससे देश की बड़ी आबादी की जल संकट की समस्या भी दूर होगी। उधर, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) और दिल्ली जल बोर्ड इस तरह के बदलावों का अध्ययन करने की योजना तैयार कर रहा है। सीपीसीबी के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक ने बताया कि बोर्ड जल्द ही नदी से सैंपल लेगा। इसके आधार पर देखा जाएगा कि लॉकडाउन का नदी की सेहत पर असर क्या रहा है। हालांकि, इस तरह की एक स्टडी बोर्ड वायु की गुणवत्ता पर पहले से कर रहा है। दूसरी तरफ, दिल्ली जल बोर्ड के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि नदी से सैंपल लिया जाएगा। इसके आधार पर बोर्ड भविष्य में नदी को स्वच्छ रखने का खाका तैयार करेगा।
फैयाज खुदसर, इंचार्ज, यमुना बॉयोडायवर्सिटी पार्क के अनुसार इस वक्त औद्योगिक वेस्ट शून्य है। फिर, बाजार बंद होने से सीवर का लोड भी कम हुआ है। साथ ही, नदी के जल में इंसानों का दखल कम है। इससे नदी अपनी गाद को तली तक छोड़ बह रही है। इसका मिला-जुला असर साफ-सुथरे पानी के तौर पर दिख रहा है। नदी के खुद को पुनर्जीवित करने के नैसर्गिक मॉडल का भविष्य में इस्तेमाल किया जा सकता है। नजफगढ़ और शाहदरा ड्रेन में कॉस्ट्रक्टिव वेटलैंड बनाकर दिल्ली में नदी की बड़ी समस्या दूर की जा सकेगी। एसके माहेश्वरी, उद्यमी, पटपड़गंज इंडस्ट्रियल एरिया का कहना है कि दिल्ली के 33 औद्योगिक क्षेत्रों में एक लाख से ज्यादा फैक्टरियां हैं। हालांकि यहां सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) लगे हुए हैं, लेकिन बड़ी मात्रा में औद्योगिक कचरा सीधे नालों में छोड़ दिया जाता है। इससे नदी प्रदूषित होती है। इस वक्त औद्योगिक कचरा एकदम नहीं निकल रहा है। इससे नदी की सेहत बेहतर हुई है। प्रशांत गुंजन, महासचिव, ईकोस्फेयर के अनुसार करीब तीन दशक पहले यमुना को साफ करने के लिए यमुना एक्शन प्लान लागू हुआ था। इस बीच करोड़ों-करोड़ रुपये इस पर खर्च भी किए गए, लेकिन नदी बद से बदतर होती गई। पिछले दस दिन के लॉकडाउन ने इसे साफ-सुथरा कर दिया है। सरकारों व उसकी एजेसियों के लिए यह 21 दिन बेसलाइन की तरह हो सकते हैं। केवल यमुना ही नहीं, पूरे देश की नदियों का पानी इस बीच साफ हुआ है।
केवल गंगा, यमुना ही नहीं, ब्यास और सतलुज का पानी भी काफी साफ नजर आने लगा है। ब्यास, सतलुज और रावी के संगम हरिकेपत्तन के निर्मल जल में डाल्फिन अठखेलियां करती नजर आ रही हैं। जल प्रदूषण स्तर में कितना सुधार हुआ इसका पता नहीं चल पाया है। हालांकि पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीपीपीसीबी) ने नदियों के पानी  की सैंपलिंग शुरू की गई है।86 वर्ग किलोमीटर में फैली हरिकेपत्तन बर्ड सेंक्चुअरी जिला तरनतारन, कपूरथला व फिरोजपुर के दायरे में आती है। कर्फ्यू में फैक्टरियां बंद होने से दरिया ब्यास व सतलुज के संगम स्थल हरिके पत्तन का पानी साफ हो गया है। इसी का नतीजा है कि यहां डाल्फिन नजर आने लगी हैं।  गांव करमूवाला के अलावा गगड़ेवाल, धूंदा, घड़का, हरिके पत्तन व चक्क देसल में लगातार तीन दिन से चार से छह डाल्फिन देखी जा रही हैं। भारत पाकिस्तान बंटवारे के बाद दरिया ब्यास व सतलुज के संगम हरिकेपत्तन में  साल 2007 में पहली बार डॉल्फिन दिखाई दी थीं। माना जा रहा था कि विलुप्त प्राय इंडस डॉल्फिन ने यहां बसेरा कर लिया है। इसके बाद मई 2018 में गुरदासपुर की शुगर मिल का शीरा दरिया में गिरने के बाद बड़ी संख्या में मछलियां मर गई थीं। डॉल्फिन भी दिखाई नहीं दी। पानी के थोड़ा साफ होने के बाद ब्यास में सर्वे किया गया तो दो डॉल्फिन दिखाई दीं।  इससे पहले 2011-12 में वन्य जीव विशेषज्ञों ने भी यहां का दौरा किया था। इसके बाद डब्ल्यूडब्ल्यूएफओ द्वारा यहां का सर्वे करवाया गया, जिसमें पता चला कि यहां पर डाल्फिन खुद को प्रजनन के लिए सुरक्षित महसूस करती हैं। पीपीसीबी के चेयरमैन प्रो सतविंदर सिंह मरवाहा ने बताया कि लंबे समय से पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की तरफ से लाखों खर्च करके बुड्ढा नाला की सफाई का काम किया जा रहा था, लेकिन काफी प्रयास करने के बावजूद सार्थक नतीजे सामने नहीं आ रहे थे। अब कफ्यू के दौरान बुड्ढा नाला का पानी भी पहले के मुकाबले काफी साफ नजर आ रहा है। मरवाहा ने बताया कि  कर्फ्यू के कारण फैक्टरियां बंद होने से नदियों व नालों का पानी साफ नजर आ रहा है।

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