A First-Of-Its-Kind Magazine On Environment Which Is For Nature, Of Nature, By Us (RNI No.: UPBIL/2016/66220)

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TreeTake is a monthly bilingual colour magazine on environment that is fully committed to serving Mother Nature with well researched, interactive and engaging articles and lots of interesting info.

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महुआ के फायदे तथा बेहतरीन औषधीय गुण
महुआ के फूल की बहार मार्च-अप्रैल में आती है और मई-जून में इसमे फल आते हैं। इसके पेड़ के पत्ते, छाल, फूल, बीज की गिरी सभी औषधीय रूप में उपयोग की जाती है। इसके पत्ते हथेली के आकार और बादाम के जैसे मोटे होते हैं। महुआ की लकड़ी बहुत वजनदार और मजबूत होती है। इसे खेत, खलिहानों, सड़कों के किनारों पर और बगीचों में छाया के लिए लगाया जाता है। महुआ का फूल सफेद, कच्चे फल हरे रंग के और पकने पर पीले तथा सुखने पर लाल व हलके मटमैले रंग के हो जाते है। महुआ के फलों मे शहद जैसी महक होती है। इस पेड़ की तासीर ठंडी होती है। महुआ का पेड़ वात, गैस, पित्त और कफ को शान्त करता है और रक्त को बढाता है। घाव को जल्दी  भरता है। यह पेट के विकारों को भी दूर करता है। यह खून में खराबी, सांस के रोग, टी.बी., कमजोरी, खाँसी, अनियमित मासिक धर्म, भोजन का अपचन स्तनो मे दुध की कमी तथा लो-ब्लड प्रेशर आदि रोगो को दूर करता है। महुआ में कैल्शियम, आयरन, पोटॅश, एन्जाइम्स, एसिडस आदि काफी मात्रा में होता है। पत्तों में क्षाराभ, ग्लूकोसाइड्स, सेपोनिन तथा बीजों में 50-55 प्रतिशत स्निग्ध तेल निकलता है, जो मक्खन जितना चिकना होता है। इसके फूलों में 60 प्रतिशत शर्करा होती है। इसके फूलो के अंदर अत्यंत मीठा-गाढ़ा, चिपचिपा रस भरपूर होता है। मिठास के कारण मधुमक्खियाँ इसे घेरे रहती हैं। फूलो के अंदर जीरे जैसे कई बीज होते है जो अनुपयोगी है। इसका पेड़ उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, गुजरात तथा महाराष्ट्र में अपने आप ही उग जाता है तथा कुछ लोग इसकी खेती भी करते है। जहाँ महुआ के पेड़ बहुतायत में हैं, वहाँ फूल पर्याप्त मात्र में मिलते हैं। गरीब तथा आदिवासी लोग इनको इकट्ठा कर लेते हैं। सुखाकर भोजन तथा अन्य कई रूपों में इसका इस्तेमाल करते हैं। महुआ के फूलों का अधिक मात्रा मे सेवन करने से या इसके फूलो की महक देर तक सूंघने से मदहोशी, सिरदर्द शुरु हो जाता है। परंतु इस साइड इफेक्ट को दूर करने में धनिया का सेवन करना चाहिए। आयुर्वेदिक चिकित्सा शास्त्रों में महुआ अनेक रोगों के सफल इलाज में कारगर है। कफजन्य रोगों में यह बहुत उपयोगी है। सर्दी की शिकायत में महुए के फूलों का काढ़ा बनाकर सुबह-शाम सेवन करना चाहिए या फूलों को दूध में उबालकर पीना चाहिए, साथ ही फूले हुए फूलों को अच्छी तरह चबाकर खाना चाहिए। महुए के ताजा या सूखे फूल, लौंग, कालीमिर्च, अदरक या सौंठ इन सबको एक जगह पीसकर इसका काढ़ा बनाएँ। हलका गरम काढ़ा पीकर कपड़ा ओढ़कर लेट जाएँ। इससे जुकाम-सर्दी में बड़ी राहत मिलती है। साथ ही सर्दी से होने वाला बुखार भी उतर जाता है। शरीर के किसी भी भाग में दर्द हो, जोड़ों का, वायु का दर्द या मांसपेशियों में दर्द अथवा पसलियों में दर्द हो तो प्रभावित अंग अथवा स्थान पर महुए के तेल की मालिश कुछ दिनों तक करनी चाहिए। किसी भी तेल की मालिश करने के बाद ठंडे स्थान पर न बैठे। जिन स्त्रियों को पीरियड समय पर न आकर आगे-पीछे आता हो अधिक कष्टकारक हो या कम-ज्यादा मात्रा में आता हो तो इसके आने के एक सप्ताह पहले से महुए के फूलों का काढ़ा बनाकर रोजाना सुबह शाम सेवन करना चाहिए। स्तनपान करानेवाली महिलाओं तथा नव प्रसूता स्त्रियों को पर्याप्त मात्रा में दूध न उतरता हो तो महुए के ताजा फूलों का सेवन नियमित रूप से करना चाहिए। ताजा फूल उपलब्ध न रहने पर सुखाए हुए फूल किशमिश की तरह चबाकर खाने चाहिए। पुरानी खाँसी के मरीजों को महुआ के फूल के 15-20 दाने एक गिलास दूध में खूब उबालकर रात में सोने से पहले सेवन करने चाहिए। फूलों के बीच से जीरे जैसे दानो को निकाल देना चाहिए। दो सप्ताह के लगातार सेवन से पुरानी खाँसी भी ठीक हो जाती है। बच्चों को सर्दी की शिकायत होती रहती है। इसमें नाक बहने लगती है। तथा पसलियाँ भी चलने लगती हैं, इसके लिए प्रभावित स्थान या पूरे शरीर की महुए के तेल से मालिश करनी चाहिए। घर में महुए का तेल अवश्य रखना चाहिए। साँप या विषैले कीड़े के काटने पर दंश स्थान पर महुआ के फूलों को बारीक पीसकर लेप कर देना चाहिए। इससे जहर का असर दूर हो जाता है। महुआ के फूलों का शहद (देसी) आँखों में लगाने से आँखों की सफाई हो जाती है। इससे आँखों की रौशनी बढ़ती है। आँखों की खुजली तथा इनसे पानी आना बंद हो जाता है। यह शहद बहुत गुणकारी होता है। जिन बच्चों के दाँत निकल रहे हों, उन्हें यह रोजाना चटाना चाहिए, इससे दाँत आसानी से निकल आते हैं। महुआ की टहनी से दातून करने से दांत का हिलना बंद हो जाता है और मसूडो से खून आना बंद हो जाता है। गठिया के दर्द मे महुआ की छाल को पिसकर, गर्म कर इसका लेप करने पर गठिया रोग ठीक हो जाता है। बीजों से निकाला तेल खाना बनाने तथा साबुन बनाने में उपयोगी है। इसकी खली को अच्छी खाद के रूप में उपयोग किया जाता है। फल का बाहरी भाग सब्जी बनाकर खाया जाता है। अंदर के भाग को पीसकर आटा बना लिया जाता है। इसके फूलों से शराब बनाई जाती है जो एक गैर कानूनी काम है। सभ्यता की शुरुवात से ही सबसे पहले जनजाति के द्वारा महुआ के फूलों से देसी शराब का आविष्कार किया गया था, जो की उनके द्वारा एक औषधी के रुप में लिया जाता रहा है। सूखे फूल किशमिश के समान मिठाइयों, हलवा, खीर आदि व्यंजनों में भी डाले जाते है। फूलों को भिगोकर तथा बारीक पीसकर आटे के साथ गूंध लिया जाता है, फिर इसकी पूड़ियाँ तली जाती हैं, जो बहुत मीठी तथा स्वादिष्ट बनती हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा बिहार में इसका काफी प्रचलन है। महुए से कफ सीरप तथा दूसरी कई दवाइयां बनाई जाती हैं।
दूब घास है एक डिटॉक्सिफायर
चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार दूब स्वाद में कड़वी होती है, लेकिन शरीर को ठंडक देती है। दूब के रस के सेवन से रक्त विकार खत्म होते हैं। दूब घास के रस से शरीर की जलन और गर्मियों में लगने वाली अधिक प्यास का निवारण होता है। गर्भस्राव की समस्या में हरी दूब घास के रस से बहुत लाभ होता है। दूब घास का रस कफ प्रकोप को भी कम करता है। स्त्रियों में श्वेत प्रदर रोग में दूब घास के रस से बहुत लाभ होता है। गुर्दे में पथरी होने से प्रतिदिन दूब का रस सेवन करने से पथरी निकल जाती है। बेचैनी तथा जी मिचलाने में भी हरी दूब के रस से बहुत लाभ होता है। दूब में विटामिन ‘ए’ और ‘सी’ पर्याप्त मात्रा में होता है। दूब के रस के सेवन से आँखों की रोशनी में बहुत लाभ पहुंचता है। हरी मिर्च, टमाटर, प्याज व धनिये के साथ सलाद के रूप में दूब की हरी कोमल पत्तियों का सेवन करने से अत्यधिक पौष्टिक तत्त्व शरीर को प्राप्त होते हैं। दूब घास का रस, कपड़े द्वारा छानकर बूंद-बूंद आँखों में डालने से जलन के होने वाली लालिमा ठीक होती है। जलोदर, मिर्गी, उन्माद, पैत्तिक वमन,अधिक मात्रा में ऋतुस्राव होने पर दूब घास के रस के सेवन से बहुत लाभ होता है। दूब घास शरीर में प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ने में मदद करती हैं। इसमें मौजूद एंटीवायरल और एंटीमाइक्रोबिल गुणों के कारण यह शरीर की किसी भी बीमारी से लड़ने की क्षमता को बढ़ाता है। इसके अलावा दूब घास पौष्टिकता से भरपूर होने के कारण शरीर को एक्टिव और एनर्जीयुक्त बनाये रखने में बहुत मदद करती है। यह अनिद्रा रोग, थकान, तनाव जैसे रोगों में भी प्रभावकारी है। सफेद दूब घास का रस 15 मिलीलीटर और कुशा की जड़ को पीसकर, चावल के धोवन (मांड) के साथ मिलाकर सेवन करने से रक्त प्रदर रोग में बहुत लाभ होता है। गुर्दे में पथरी होने पर दूब घास का रस 15 मिलीलीटर मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से पथरी धीरे-धीरे खत्म होने लगती है। दूब की जड़ को पीसकर दही में मिलाकर सेवन करने से पेशाब में रूकावट की विकृति नष्ट होती है। सफेद दूब और अनार की कली को रात के रखे पानी में भीगे चावलों के साथ पीसकर एक सप्ताह तक सेवन करने से ऋतुस्राव की रूकावट ठीक होती है। दूब घास का रस जलोदर रोग से पीड़ित स्त्री-पुरुष को पिलाने से अधिक मूत्र निष्कासित होने से रोगी को बहुत लाभ होता है। दूब घास के क्वाथ से कुल्ला करने से मुंह के छालों में लाभ होता है। दूब घास एक डिटॉक्सिफायर के रूप में काम करती है जिससे शरीर से जहरीले तत्वों को भी निकालकर एसिड को कम करती है। सिरदर्द में दूब को पीसकर इसे चंदन की तरह माथे पर लगायें काफी आराम मिलेगा। दूब घास के रस में घिसा हुआ सफेद चंदन और मिसरी मिलाकर प्रतिदिन सुबह-शाम सेवन करने से स्त्रियों का रक्त प्रदर रोग नष्ट होता है। दूब घास का रस बूंद-बूंद नाक में टपकाने से नाक से रक्तस्राव की विकृति में बहुत लाभ होता है। दूब के रस में काली मिर्च का चूर्ण मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से शरीर के विभिन्न शोथों (सूजन) में बहुत लाभ होता है। दूब घास का रस तिल के तेल में मिलाकर शरीर पर मलने और कुछ देर रुककर नहाने से खाज-खुजली की बीमारी दूर होती है। दूब घास की जड़ को पीसकर जल में मिलाकर, थोड़ी-सी मिसरी डालकर प्रतिदिन सेवन करने से पथरी नष्ट होने लगती है। नियमित सेवन केवल आपके रक्त में कोलेस्ट्रॉल के स्तर को ही कम नहीं करती है, बल्कि आपके हृदय संबंधी फंक्शन में भी सुधार करती है। करीब 10 ग्राम ताजी दूब घास को पीसकर एक गिलास पानी के साथ मिलाकर पी लेने से शरीर में नयी ताजगी का संचार करती है। हरी दूब कोमल व ताजी ही लेनी चाहिए। हरी दूब हमेशा अच्छी मिट्टी वाली जगह से लेनी चाहिए। जड़ की ओर से हरी दूब को काटकर साफ पानी से धोने के बाद ही सेवन करना चाहिए।

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