A First-Of-Its-Kind Magazine On Environment Which Is For Nature, Of Nature, By Us (RNI No.: UPBIL/2016/66220)

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Talking Point

TreeTake is a monthly bilingual colour magazine on environment that is fully committed to serving Mother Nature with well researched, interactive and engaging articles and lots of interesting info.

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अद्भुत स्तनधारीः भारतीय विशाल उड़न गिलहरी (पेटौरिस्ता फिलिपेंसिस)
डॉ.सोनिका कुशवाहा व डॉ.अखिलेश कुमार
भारतीय जैव विविधता संरक्षण संस्थान, झाँसी
पृथ्वी पर उपस्थित जीवो मे स्तनधारी बड़े ही अद्भुत होते हैं। भारत में स्तनधारियों की मुख्यता 408 प्रजातिया हैं । इनमे से प्रायः बड़े स्तनधारी जैसे बाघ, हाथी और गैंडे सहित अन्य जानवर ही लोगो मे अधिक लोकप्रिय हैं। छोटे स्तनधारी अभी भी रहस्यमय हैं एवम् लोगों को इनके विषय मे अधिक जानकारी नही हैं। भारतीय विशाल उड़न गिलहरी (पेटौरिस्ता फिलिपेंसिस) इन कम जानकारी वाले छोटे स्तनधारियों में से एक है। गिलहरी पारिस्थितिक तंत्र का महत्वपूर्ण घटक हैं एवम् जंगलों में प्रमुख भूमिका का निवर्हन करते हैं जैसे शिकारी-शिकार संबंध, बीजो का प्रकीर्रन और परागण (च्वससपदंजपवद)। घने और ऊँचे वृक्षो ऑर रहने वाला यह प्राणी काफी शर्मिला और सतर्क रहता है. अतः इसका दिखना बेहद कठिन होता है । उड़ने वाली गिलहरी भारत के अलावा रूस, चीन, श्रीलंका, जापान एवं एशिया के अधिकांश भागों - नार्वे, स्वीडन तथा यूरोप के कुछ देशों और अफ्रीका के घाना कांगों, उत्तरी अमेरिका के कुछ भागों में पाई जाती हैं। इसका आकार चूहे से लेकर नेवले तक के आकार  तक का होता है। उत्तरी अमेरिका में पाई जाने वाली उड़न गिलहरी आकार में सबसे बड़ी होती है। इसकी लम्बाई 30 सेंटीमीटर से 60 सेंटीमीटर तथा भार 0.5 किलोग्राम से 7 किलोग्राम तक होता है। उड़ने वाली गिलहरी की आंखें कुछ बड़ी होती हैं। इसके पूरे शरीर पर मुलायम तथा घने बाल होते हैं। अफ्रीका में पाई जाने वाली उड़न गिलहरी की पूंछ के अगले भाग पर तेज धार वाले नुकीले शल्क होते हैं। इन्हें ‘स्केली टेल्ड गिलहरी‘ कहते हैं। अफ्रीकी लोग उड़न गिलहरी को अशुभ और विनाशकारी जीव मानते हैं।
विश्व में उड़न गिलहरी की लगभग 46 प्रजातियाँ हैं पायी जाती हैं, जबकि भारत में कुल 12 प्रजातियाँ पायी जाती हैं जो निम्नलिखित हैंः
कश्मीरी उड़न गिलहरी
रंगबिरंगी उड़न गिलहरी
ट्रैवैन्कोर उड़न गिलहरी
बालदार पैरों वाली उड़न गिलहरी
नमदाफा उड़न गिलहरी
चित्तीदार विशाल उड़न गिलहरी
हॉजसन की विशाल उड़न गिलहरी
भूटानी विशाल उड़न गिलहरी
भारतीय विशाल उड़न गिलहरी
लाल विशाल उड़न गिलहरी
मेनचुका विशाल उड़न गिलहरी
मिशमी पर्वत की विशाल उड़न गिलहरी
लाल विशाल उड़न गिलहरी महाराष्ट्र का राज्य पशु है ।
उत्तर प्रदेश में, अब तक केवल एक प्रजाति की उड़ने वाली गिलहरी रिपोर्ट की गयी है- भारतीय विशाल उड़न गिलहरी जिसे बड़े भूरे रंग की उड़ने वाली गिलहरी (पेटौरिस्ता फिलिपेंसिस) या आम विशाल उड़ने वाली गिलहरी भी कहा जाता है तथा स्थानीय भाषा मे इसे उड़न मूस भी कहते है।
उत्तर प्रदेश के तराई वनमंडल में पहाड़ियों के बीच श्रावस्ती जिले के जंगलों में कीमती वनस्पति और जड़ी बूटियों का खजाना है तथा वहाँ अन्य दुर्लभ प्रजाति के वन्य जीव और पक्षी भी हैं। सन् 2018 में भारतीय जैव विविधता संरक्षण संस्थान व पर्यावरण जीव सेवा संस्थान के सदस्यों द्वारा 15 साल बाद इस दुर्लभ प्रजाति की ‘उड़न गिलहरी‘ को फिर से खोजा गया (थ्पह.1)। इसकी मौजूदगी से श्रावस्ती व सुहेलवा क्षेत्र के जंगल का महत्व और बढ़ गया है। यह उड़ने वाली गिलहरी देश के अन्य जंगलों और अभयारण्यों में बहुत कम संख्या मे ही बची है। सुहेलवा के जंगलों में तेंदुआ, नीलगाय, सियार, हिरण सहित विभिन्न प्रकार के शाकाहारी और मांसाहारी वन्य प्राणी व पक्षी मौजूद हैं। इनके बीच यहां दुर्लभ उड़न गिलहरी भी पाई जाती है। यह दुर्लभ वन्य प्राणी के रूप में जानी जाती है। यह उत्तर प्रदेश में विलुप्त होने की कगार पर है। भारत में मध्य प्रदेश और राजस्थान के सीमावर्ती सीतामाता वन्यजीव अभयारण्य और महुआ व सागौन के सघन जंगलों में भी पायी जाती है। भारत में उड़न गिलहरी हिमालय के आसपास देवदारू के वृक्षों पर ग्लाइडिंग करती देखी गई हैं।
स्तनधारी प्राणियों में  चमगादड़ के अलावा उड़ने वाली गिलहरी ही एक ऐसा प्राणी है, जिसके पक्षियों के समान पंख होते हैं और यह पक्षियों के समान हवा में उड़ सकती है परन्तु जिन प्राणियों को हम उड़ने वाला जीव समझते हैं, वे उड़ते नहीं बल्कि ग्लाइडिंग करते हैं। भारतीय विशाल उड़न गिलहरी भी वास्तव में उड़ती नहीं है बल्कि यह एक पेड़ से दूसरे या नीचे उतरने के लिए ग्लाइड करती है। इनके पैरों के बीच की ढीली व लचीली चमड़ी एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर छलांग लगाते समय पैराशूट के रूप में खुलती व कार्य करती है। इससे वह आसानी से अपने शरीर को नियंत्रित कर हवा में सुरक्षित छलांग लगती है, इसलिए इसे उड़न गिलहरी कहा जाता है। यह 20 से 40 फीट तक संतुलन बनाकर छलांग लगाती है। शारीरिक संरचना के कारण ये ग्लाइडिंग करते हुए सैकड़ों मीटर की दूरी तय कर लेते हैं। इन्हें देखने से ऐसा लगता है मानों ये उड़ रहे हों। उड़न गिलहरी वास्तविक तथ्य में मास्टर ग्लाइडर हैं । इस प्रकार का गमनागमन समय और उर्जा को संरक्षित करने मे सहायक होता है क्योंकि ग्लाइडिंग की अपेक्षा चलने या उड़ने मे ज्यादा उर्जा लगती है।
ये गिलहरियां वृक्षों के सूखे और खोखले तनों में अपना घोंसला बनाकर रहती हैं। सामान्यतः एक बच्चे को जन्म देती हैं जो की जन्म के समय अँधा होता है । प्रायः यह प्राणी निशाचर होता है और रात्रि में भोजन की तलाश में निकलती है (थ्पह.3)। कीड़े-मकोड़ों के अलावा पेड़ के छाल, रेजिन, टहनी, फल-फूल पत्तियों को कुतर-कुतर कर खाती हैं। जामुन, पीपल, गूलर के फल इनका प्रिय भोजन है। इसका जीवनकाल अधिकतम 10 वर्ष है। आई.यू.सी.एन के अनुसार इस प्रजाति की स्थिति लीस्ट क्न्सर्न (कम चिंताजनक) है, लेकिन कुछ अध्ययनों से भारत में प्राकृतिक आवासो का हनन, कृषि अतिक्रमण, शिकार और विभिन्न मानव उत्पन कारणों से इसकी घटती संख्या का संकेत मिलता है। यूरोप और उत्तरी अमेरिका में इसका खूब शिकार किया जाता है। इसकी मुलायम और बालदार खाल सौंदर्य प्रसाधनों के काम में आती है। हाल के मूल्यांकन के अनुसार भारतीय विशालकाय उड़न गिलहरी दक्षिण पूर्व एशिया में और भारत में खतरे के करीब मानी जा रही है। यह भारत के वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची प्प् की प्रजाति है जो इसको पूर्ण सुरक्षा प्रदान करती है अर्थात इसके अंतर्गत आने वाले अपराध को उच्चतम दंड हैं।
दक्षिण भारत और राजस्थान में उड़न गिलहरियों पर कई अध्ययन हुए हैं लेकिन उत्तर प्रदेश में अब तक इस तरह के अध्ययन नहीं हुए हैं। उत्तर प्रदेश के श्रावस्ती जिले में 2018 में गर्मी के मौसम के दौरान भारतीय विशाल उड़न (पेटौरिस्ता फिलीपेंसिस) गिलहरियों के कुछ व्यवहार संबंधी अध्यन पर प्रकाश डाला है। यद्यपि वे व्यवहार में निशाचर हैं, उन्हे ग्रीष्मकाल के दौरान उच्च तापमान पर दिन के समय विभिन्न प्रकार की गतिविधियों को करते देखा गया जिससे की उनको गर्मी मे राहत मिल सके। उत्तर प्रदेश में इनकी संख्या और प्राकृतिक निवासो मंे वितरण पर अध्ययन किया जाएगा जिससे की इनके संरक्षण करने मे सही नीति बनाने मे सहायता मिले।

Rs 234-crore zoo to be built in Gorakhpur

Uttar Pradesh (UP) Chief Minister (CM) Yogi Adityanath led state cabinet on January 7 approved the construction of a massive zoological park in Gorakhpur at a cost of Rs 234 crore. The zoological park has been named after freedom fighter Ashfaqullah Khan as Shaheed Ashfaqullah Khan Zoological Garden and it would be spread over an area of 121.34 acres. As per a press note released by the UP government, the increase in tourist traffic in the city after the completion of the zoological park’s construction will lead to the creation of more employment opportunities in the region. “The government has sanctioned Rs 234.36 for the Ashfaqullah Khan garden. It will be developed on 121.34 acre land. It will give an international identity to Gorakhpur and promote wildlife conservation,” UP government spokesperson and cabinet minister Shrikant Sharma told the media. In another decision, the UP cabinet approved the target of planting 22 crore trees on August 15, for which saplings will be provided across the state free of cost. Shaheed Ashfaqullah Khan was a noted freedom fighter born in Uttar Pradesh in the year 1900. He was sentenced to death along with Ram Prasad Bismil for the Kakori train robbery, commonly known as the Kakori conspiracy of 1925. They were among the youth who were disenchanted with the ploys of the British Raj and Gandhi’s disdain for violent means to attain freedom. After Gorakhpur’s Chauri Chaura incident, when a disheartened Mahatma Gandhi called off the non-cooperation movement, Khan got disappointed with the move and joined the revolutionaries. That’s where he met Bismil and formed the Hindustan Socialist Republican Association to overthrow the British through an armed revolt. “The purpose of the zoological garden is conservation of wildlife. At present, there are two zoological gardens in Uttar Pradesh, one in Lucknow and another in Kanpur. Shaheed Ashfaqullah Khand Zoological Garden was proposed in 2008-2009. With this zoo, Gorakhpur will be developed as a tourist spot and would be recognised internationally with this project,” said Cabinet Minister and government spokesperson Srikant Sharma.

NGT on compliance of waste management

In the order of the National Green Tribunal in the matter of Compliance of Municipal Solid Waste Management Rules, 2016 regarding status of compliance of waste management and other issues in different States/UTs in compliance of earlier orders of the NGT. the green court finds gaps in the December 2019 and January 2020 reports filed by the Central Pollution Control Board (CPCB). The Tribunal said the reports give information about states who have given some information but the nature and extent of information which was required has not been furnished. Available information with regard to sewage generation and treatment shows huge gap. Grading made by the CPCB into ‘good’, ‘average’, ‘poor’ and ‘no information’ is not based on any qualitative analysis but extent of information furnished. The NGT directed information to be furnished on three aspects: (i) solid waste management, including remediation of legacy waste in terms of earlier orders of this Tribunal, (ii) sewage treatment and restoration of 351 polluted river stretches and (iii) air quality management in 102 (122) non-attainment cities. CPCB has been directed to redesign formats and secure relevant quantifiable information from the Chief Secretaries under different heads so that the Chief Secretaries are able to respond to the Tribunal on their appearance as per schedule of appearance already notified. Chairman and Member Secretary, CPCB may remain present on the dates of appearance of Chief Secretaries with relevant data.

Order of NGT on Sai river pollution

In the National Green Tribunal in the matter of T.S. Singh Vs State of Uttar Pradesh regarding prevention of discharge of untreated sewage into Sai River at Pratapgarh in Uttar Pradesh, report filed by the Uttar Pradesh State Pollution Control Board (UPSPCB) and the Uttar Pradesh Jal Nigam mentioned that STP of 8.95 MLD capacity was found to be non-operational and sewage was directly discharged into river Sai. Further, the Uttar Pradesh Jal Nigam, Pratapgarh has informed the committee that “the work of sewer laying etc. cannot be started timely because the funds released for construction was not equivalent to sanctioned amount, and the tender for construction was cancelled six times by competent authority due to different reasons”. The National Green Tribunal (NGT) came down heavily on the Uttar Pradesh government about pollution in the state's Sai river. The tribunal directed action to be taken in the case keeping in mind the directions passed by it in related cases and a compliance report furnished by February 28, 2020. The NGT also asked all the stakeholders looking at steps to prevent and control pollution of the Yamuna river in Delhi, Haryana and Uttar Pradesh to give their suggestions in writing within one week after which, the NGT order would be uploaded upon considering the suggestions / submissions by January 24, 2020. The NGT also directed the National Thermal Power Corporation Limited (NTPC) and the Tehri Development Corporation Limited (TDCL) to take necessary steps to prevent muck disposal in the Dhauliganga river in Uttarakhand's Chamoli district.  The NGT directed the chief secretary of Uttar Pradesh to take action against officers responsible for the three sewage treatment plants at Indirapuram, Ghaziabad, which were not functioning properly, leading to pollution in the area.

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