A First-Of-Its-Kind Magazine On Environment Which Is For Nature, Of Nature, By Us (RNI No.: UPBIL/2016/66220)

Support Us
   
Magazine Subcription

Tidbit

TreeTake is a monthly bilingual colour magazine on environment that is fully committed to serving Mother Nature with well researched, interactive and engaging articles and lots of interesting info.

Tidbit

Tidbit

Tidbit

ऐसे लाएं अपनें यहाँ गुलाब की बहार
अपने गार्डन में गुलाब के पौधे को लगाना कोई मुश्किल काम नहीं है, बस इस बात का ध्यान रखें कि उन्हें सूरज की पर्याप्त रोशनी मिलती हो। घर में गुलाब लगाएं तो कुछ छोटेकृछोटे टिप्स पर अमल करें। पौधे को लगानाः टिप्स की शुरुआत गुलाब के पौधे को लगाने से ही शुरू होती है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप इसे कैसे लगाते हैं। अगर आप इसे गमले में लगा रहे हैं तो पौधे को लगाने से पहले मिट्टी में जैविक खाद मिला लें। वहीं अगर जमीन पर गुलाब का पौधा लगा रहे हैं तो दो पौधों के बीच में पर्याप्त दूरी जरूर रखें। पौधों को सिर्फ उसी जगह लगाएं जहां पर उसे सूरज की पर्याप्त रोशनी मिलती हो। पानी देनाः पौधे के अच्छे विकास के लिए जरूरी है कि उसे पर्याप्त मात्रा में पानी दिया जाए। अगर पौधा गमले में लगा है तो बहुत ज्यादा पानी न दें। सुबह के समय पौधों को पानी देना सबसे अच्छा रहता है। मल्चिंगः चूंकि गुलाब को बहुत अधिक पानी की जरूरत नहीं होती है, इसलिए मल्च का इस्तेमाल करें। इससे मिट्टी में पर्याप्त नमी बनी रहेगी और पौधे का अच्छे विकास भी होगा। गुलाब के पौधे की जड़ में दो से चार इंच मोटी बारीक पत्ती या घास की परत बिछा दें। इसे तने से कम से कम एक इंच की दूरी पर रखें। खादः जहां तक हो सके रसायनिक खाद से दूर रहें। ऐसे कई घरेलू खाद भी हैं जो गुलाब के विकास में काफी मदद करता है। अंडे का खाल, सब्जियों का अवशेष और टी ग्राउंड काफी फायदेमंद होता है। अगर आप रसायनिक खाद का प्रयोग कर रहे हैं तो इस बात को सुनिश्चित करें कि आप इसका इस्तेमाल सही समय पर करते हों। ऐसे खाद का इस्तेमाल करें, जिनमें फास्फोरस हो। छंटाईः गुलाब के पौधे को लगाने का एकमात्र उद्देश्य होता है अपने गार्डन में खूबसूरत फूलों को देखना। अगर आप ज्यादा से ज्यादा फूल पाना चाहते हैं तो पौधों की नियमित रूप से कटाईकृछंटाई भी करें। इससे पौधे के विकास को बढ़ावा मिलता है। बाहर की तरफ निकलने वाली कोंपलों को काट दें। साथ ही मरे, टूटे या बीमारी से ग्रस्त हिस्से को भी हटाना न भूलें।
असली रूद्राक्ष की पहचान करें
प्राचीन काल से ही हिन्दू धर्म में रुद्राक्ष की महिमा का वर्णन मिलता है। भारतीय जन मानस में रुद्राक्ष के प्रति अनन्य श्रद्धा है। संस्कृत गुजराती हिंदी और मराठी एवं कन्नड़ में इसे रुद्राक्ष के नाम से जाना जाता है। लैटिन में इसे इलियोकार्पस  गैनीट्रसश् कहा जाता है। रुद्राक्ष स्वाद में खट्टा रुचिवर्धक वायुकफ नाशक है। शहद के साथ घिसकर देने से यह मधुमेह में लाभ पहुंचाता है। गले एवं हाथ में बांधने से यह रक्तचाप को नियंत्रित रखता है। सोने चांदी या ताम्बे के संसर्ग से इसके गुणों में वृद्धि होती है। रुद्राक्ष के पेड़ एशिया खंड में विषुवत रेखा के प्रदेश प्रशांत महासागर के टापुओं एवं आस्ट्रेलिया के जंगलों में पाये जाते हैं। मलाया जावा सुमित्रा बोर्नियो में रुद्राक्ष के पेड़ बहुतायत से प्राप्त होते हैं। नेपाल बर्मा(म्यांमार) में भी इसके पेड़ हैं। भारत में सह्याद्रि पर्वतमाला में कहीं -कहीं ये दृष्टिगोचर होते हैं। रुद्राक्ष का पेड़ लगभग पचास -साठ फुट ऊँचा होता है। शाखाएं सीधी एवं लंबी होती हैं। पत्ते नागरबेल के पत्तों से मिलते -जुलते लंबवर्तुलाकार स्पर्श में कुछ रूक्ष होते हैं। पके पत्तों का रंग लाल होता है एवं फलों का गहरा आसमानी। फल पकने को आते हैं तब नीचे गिर जाते हैं। ऊपर का आवरण निकल देने पर अंदर से जो बीज निकलता है उसे ही रुद्राक्ष कहते हैं। मुख्यतः इसकी दो जातियां होती हैं। छोटे आकार में एवं बड़े आकार में। बेर की तरह छोटे आकार के रुद्राक्ष की कीमत अधिक होती है ।रुद्राक्ष के बीज पर लकीरें अंकित होती हैं जो सामान्यतः पांच होती हैं। इन्हें रुद्राक्ष के मुखों के नाम से जाना जाता है। छोटे आकार के रुद्राक्ष पर ये लकीरें स्पष्ट नहीं होतीं। एकमुखी रुद्राक्ष से लेकर चैदह मुखी रुद्राक्ष तक का  वर्णन मिलता है। कहा जाता है कि कई प्रमुख हस्तियों  ने रुद्राक्ष  को धारण  करने के बाद अभूतपूर्व सफलता अर्जित की एवं उनका व्यक्तित्व भी प्रभावशाली बना । एकमुखी रुद्राक्ष का मिलना बहुत कठिन है। रुद्राक्ष की पहचान न होने से बहुत से लोग नकली रुद्राक्ष को ही असली समझ कर ले लेते हैं। बेर की गुठली को भी थोड़ा आकर - प्रकार  देकर रुद्राक्ष में खपा दिया जाता है । इसके अलावा रासायनिक मिश्रण से भी नकली रुद्राक्ष तैयार किया जाता है। भद्राक्ष नाम कफल और रुद्राक्ष में नाम के साथ -साथ रूप में भी साम्यता होने से लोग भद्राक्ष को भी रुद्राक्ष समझ लेते हैं। रुद्राक्ष की सामान्य पहचान यह है कि वह पानी में डूब जाता है। दो ताम्बे की प्लेटों के बीच में रखने पर वह घूम जाता है। रुद्राक्ष के ३२ मनकों की माला गले में धारण करने पर सर्दी से दुखते गले को आराम मिलता है व ज्वर आदि उतर जाता है। गले की अन्य बिमारियों एवं टॉन्सिल्स में भी लाभदायक माना जाता है । ऐसा लगता है कि साधु -संतों और योगियों ने इसकी चमत्कारिक शक्तियों के वशीभूत होकर ही इसे अपनाया था । रुद्राक्ष में या तो कोई औषधीय गुण सन्निहित है या कोई अदृश्य एवं चुंबकीय शक्ति लेकिन इनमें कोई शक्ति अवश्य है इससे इंकार नहीं किया जा सकता।  
चिलगोजा है काजू, बादाम की टक्कर का
चिलगोजा भारत में एक मेवे के रूप में  जाना जाता है। चिलगोजा पाइन के पेड़ के बीज होते हैं । चिलगोजा का रंग लाल भूरा होता है। इसकी गिरी सफेद रंग की होती है। इसकी तासीर गर्म होती है! यह धातुवर्धक होता है  तथा भूख को बढाता है! चिलगोजा का प्रसंस्करण बहुत ही मेहनत का काम है पर इसका पोषण मूल्य बहुत अधिक है। चिलगोजे की 5 मुख्य प्रजातियां हैं। साइबेरियाई चीड़, कोरियाई चीड़, इतालवी पत्थर चीड़, चिलकोजा चीड़, एकल पत्ती और कोलोराडो। भुने हुए चिलगोजे सबसे स्वादिष्ट  लगते हैं । चिलगोजे, कुरकुरे मीठे और स्वादिष्ट होते हैं । चिलगोजे की फसल पंद्रह माह में तैयार होती है और इसकी विशेषता यह है कि अलगे साल कितनी फसल चिलगोजे के पेड़ पर तैयार होगी, इस बात का पता पहली फसल के तोड़ने से पहले ही टहानियों में तैयार हो रहे कोण से पता चलता है। कार्बोहाईड्रेट और प्रोटीन युक्त चिलगोजा भारत में हिमाचल प्रदेश के किन्नौर और चंबा के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर में भी पाया जाता है।चिलगोजा में ओइलिक एसिड मोनेा असंतृप्त वसा अम्ल को अच्छा स्त्रोत है जो रक्त में एच डी एल (अच्छा कोलेस्ट्रॅाल ) के स्तर को बढ़ाने और एल डी एल (खराब कोलेस्ट्रॅाल)  के स्तर को कम करने में मदद करता है। जिससे कोरोनरी धमरी की बीमारियों को रोकने, स्ट्रोक, दिल का दौरा ओर कोनोनरी धमनियों को सख्त होने से तथा स्वस्थ्य रक्त प्रोफाइल बनाए रखने में सहायता करता है । चिलगोजे में विटामिन ई बहुतायत से पाया जाता है जो शक्तिशाली एंटीआॅक्सीडेंट होने के कारण हानिकारक आॅक्सीजन मुक्त कणों के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करता है। चिलगोजे में विटामिन बी काॅम्लेक्स, नियासिन, राइबोलेविन और थायमिन अधिक होने की वजह से हारमोन टेस्टोस्टेरोन के स्तर को बढ़ाने में मदद करता है, लाल रक्त कोशिकाओं के उत्पादन को बढ़ाता जिससे तनाव और चिंता कम कर , अच्छा मूड बनाने में मदद करता है । चिलगोजे में मौजूद एंटीआॅक्सीडेंट मुक्त कण को बेअसर करके कैंसर और हृदय रोग होने से बचाते हैं । चिलगोजा में पीनोलेईक एसिड होता है जो भूख महसूस करने पर अंकुश लगाता है जिससे ऐसा महसूस होता है कि पेट भरा हुआ है जो कि एक हार्मोन के द्वारा संपादित होता है और व.जन घटाने में बहुत मदद करता है। चिलगोजे में खनिज मैग्नीशियम की मात्रा बहुतायत में पायी जाती है जो तंत्रिका और मांसपेशी के कामकाज के लिए ऊर्जा जो कि शर्करा के रूप के लिए आवश्यक है, साथ ही यह प्रतिरक्षा प्रणाली को सुदृड़ करने में मददगार है। चिलगोजे में कैल्शियम हड्डियों को मजबूत, दांतों को स्वस्थ्य, हृदय और तंत्रिका तंत्र, एवं मांसपेशियों की कार्य क्षमता बढ़ाता है। चिलगोजे में मौजूद आयरन एनीमिया होने से रोकता है तथा लाल रक्त कोशिकाओं के निर्माण एवं कोशिकाओं की मरम्मत में सहायक है। चिलगोजे में मौजूद पोटेशियम खनिज लवण रक्तचाप को नियंत्रित करने तथा दिल की धड़कन की दर को एक सा बनाए रखने में मदद करता है । चिलगोजा में फोलेट स्वस्थ्य गर्भावस्था एवं दुग्ध उत्पादन में सहायक है। चिलगोजा का तेल की मीठी सुगंध तथा नाजुक स्वाद होता है, इसे औषधीय के रूप उपयोग किया जाता है। चिलगोजा खाने से व्यक्ति के शरीर में चुस्ती और फुर्ती के साथ ही साथ अधिक ताकत भी आती है। तथा नपुंसकता दूर होती है।

Leave a comment