A First-Of-Its-Kind Magazine On Environment Which Is For Nature, Of Nature, By Us (RNI No.: UPBIL/2016/66220)

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Talking Point

TreeTake is a monthly bilingual colour magazine on environment that is fully committed to serving Mother Nature with well researched, interactive and engaging articles and lots of interesting info.

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गंगा के तट को हरा-भरा करना होगाः वन मंत्री
मंत्री, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन, उत्तर प्रदेश, दारा सिंह चैहान एवं राज्य मंत्री, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन, उपेन्द्र तिवारी ने हरिशंकरी रोपित कर वन महोत्सव व वृक्षारोपण योग (च्संदजंजपवद ल्वहं) का शुभारम्भ किया। इस अवसर पर प्रमुख सचिव, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन, कल्पना अवस्थी ने फल्दू, हेड आॅफ फारेस्ट फोर्स/प्रधान मुख्य वन संरक्षक और विभागाध्यक्ष, उत्तर प्रदेश, वन कुमार ने अर्जुन, प्रमुख वन संरक्षक अनुश्रवण एवं कार्य योजना, शैलेश प्रसाद व मिशन निदेशक, विभाष रंजन ने शीशम तथा अन्य उपस्थित विशिष्ट जनों व विद्याार्थियो ं द्वारा विभिन्न प्रजातियों के पौधे रोपित किए गए।
इस अवसर पर कार्यक्रम के मुख्य अतिथि दारा सिंह चैहान ने कहा कि प्रदेश में विद्यमान वनावरण व वृक्षावरण को 9.18 प्रतिशत से बढ़ाकर 15 प्रतिशत तक करने के प्रदेश सरकार के संकल्प को पूर्ण करने हेतु इस वर्ष वृक्षारोपण महाकुम्भ के अन्तर्गत प्रदेश में व्यापक जन सहयोग से स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर एक दिन में 22 करोड़ पौधों का रोपण किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि इस महत्वाकांक्षी लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु ग्राम पंचायत स्तर पर विचार विमर्ष कर माइक्रोप्लान तैयार किए गये हैं तथा मइक्रोप्लान का विष्लेशण कर इनमे ं इंगित प्रजातियों को विभागीय पौधषाला में तैयार किया गया है। वृक्षारोपण को बढ़ावा देने व इसे जन अभियान का रूप देने हेतु हमारी सरकार द्वारा ’वृक्षारोपण महाकुम्भ’ अभियान हेतु निःषुल्क पौध उपलब्ध करवाने का निर्णय लिया गया है।
बढ़ते जल संकट पर प्रधानमंत्री जी द्वारा विष्व के विभिन्न मंचों एवं अकाशवाणी में ’मन की बात’ कार्यक्रम में इस समस्या के प्रति चिंता करते हुए लोगों का ध्यान आकर्षित करते हुए समस्या के निराकण के लिए देश की प्रतिबद्धता व्यक्त करने के क्रम में मंत्री जी ने कहा कि इस समस्या का मूलमंत्र किसानों को शामिल करते हुए अधिक से अधिक वृक्षारोपण कर वृक्षावरण में वृद्धि करना है। चैहान ने प्रयागराज में आयोजित कुम्भ में श्रद्धालुओ ं को गंगा व यमुना में स्वच्छ जल उपलब्ध करवाने का उल्लेख करते हुए कहा कि बिजनौर से बलिया तक व्यापक स्तर पर वृक्षारोपण कर गंगा के तट को हरा-भरा करना एवं गंगा को निर्मल करने हेतु प्रदेश सरकार निरन्तर प्रयासरत है।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि, राज्य मंत्री, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन, उपेन्द्र तिवारी ने विगत वर्ष वन महोत्सव के अवसर पर मुख्यमंत्री द्वारा प्रदेश में 22 करोड़ पौध रोपित किए जाने के निर्देश वन विभाग द्वारा कार्यक्रम में प्रस्तुत करने के लिए विभाग को बधाई देते हुए कहा कि समाज के प्रत्येक वर्ग, विशेषकर विद्यार्थियों, को पौध रोपित करने, रख रखाव तथा सिंचन हेतु प्रेरित कर व रोपित वृक्षों के साथ जुड़ाव महसूस कर वृृक्षावरण विस्तार के लक्ष्य प्राप्त करने में सफलता प्राप्त कर सकते हैं। तिवारी ने कहा कि देश में बरगद, पीपल, आम, नीम, तुलसी, बेल, कुश इत्यादि की पूजा एवं धार्मिक कार्यों मंे इनके विभिन्न अंगों के प्रयोग की समृद्ध परम्परा है। उन्होंने विभिन्न संस्थाओं, संगठनों, विद्यालयों एवं आद्योगिक इकाइयों को आगे आकर रोपित पौधों की सुरक्षा हेतु ट्री गार्ड उपलब्ध करवाने एवं पौधे गोद लेने का आह््वान किया। श्री तिवारी ने कहा कि प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना, उज्ज्वला योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना सहित विभिन्न योजनाओं के लाभार्थियों, किसानों व विद्यार्थियों सहित समाज के समस्त वर्गों की वृक्षारोपण महाकुम्भ में सहभागिता प्राप्त की जाए। उन्होंने जल संरक्षण में वन विभाग के महत्वपूर्ण योगदान, वृक्षारोपण से जल संचयन एवं नदियों के जल को प्रदूषण मुक्त करने व जल स्तर बनाए रखने हेतु वृक्षारोपण की महत्वपूर्ण भूमिका के दृृष्टिगत स्वच्छता अभियान की भांति जल संरक्षण को भी आन्दोलन का रूप देने का आहवान किया। मंत्री जी ने कहा कि शिशु के जन्म के क्षण को अविस्मरणीय बनाने के लिए शिशु के नाम का पौधा लगाए जाने हेतु वृृक्षारोपण कार्यक्रम में चिकित्सकों को भी शामिल करें।
हेड आॅफ फाॅरेस्ट फोर्स/प्रधान मुख्य वन संरक्षक और विभागाध्यक्ष, उत्तर प्रदेश, पवन कुमार ने वृृक्षारोपण योग के विभिन्न चरणों पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि नई सोच, विचार व रणनीति बनाते हुए वृक्षारोपण महाकुम्भ के अन्तर्गत 22 करोड़ पौध रोपण का लक्ष्य प्राप्त करने में सफल हो सकते हैं। पीपल, बरगद व पाकड़ को एक साथ रोपित कर हरिशंकरी की स्थापना पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि ये वृक्ष छाया उपलब्ध कराने के साथ ही प्रेम व सहिश्ष्णुता का सन्देश देते हैं। कुमार ने महान दार्शनिक अरस्तू के स्थिति के प्रभाव के कथन का उल्लेख करते हुए कहा कि वृक्ष लगाना, जल संरक्षण, शुद्ध हवा, भू-गर्भ जल स्रोतों का पुनर्भरण, तापमान न्यून करना एवं जैवविविधता संरक्षण आज की संस्कृृति का अंग है। आक्सी इको कार्ड, डायरेक्ट बेनिफिट ट्रान्सफर के समान निःशल्क पौधों को डायरेक्ट सैपलिंग ट्रान्सफर एवं ग्राम पंचायत स्तर तक माक्रोप्लान तैयार कर इंगित प्रजातियों को प्रदेश की 1490 पौधशालाओं में उगाए जाने का उल्लेख करते हुए उन्होंने वृक्षारोपण महाकुम्भ के विभिन्न आयामों पर विस्तार से प्रकाश डाला। प्रमुख वन संरक्षक, अनुश्रवण एवं कार्य योजना ने कहा कि बढ़ते तापमान को न्यून करने एवं गिरते भू गर्भ जल स्तर को रोकने जैसी विभिन्न पर्यावरणीय समस्याओं का समाधान वृहद स्तर पर वृक्षारोपण किया जाना है। 
अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक, योजना एवं कृषि वानिकी, उत्तर प्रदेश, डा प्रभाकर दूबे ने कहा कि प्रत्येक नागरिक प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण व संवर्धन के संवैधानिक कर्तव्यों व दायित्वों को समझते हुए अनिवार्य रूप से वृक्षारोपण करे। मिशन निदेशक विभाष रंजन ने अभ्यागतों का स्वागत करते हुए वृक्षारोपण महाकुम्भ का परिचय व 15 अगस्त, 2019 को एक दिन में 22 करोड़ पौध रोपण के सम्बन्ध में तैयार की गई रणनीति व कार्य योजना पर प्रकाश डाला। वन महोत्सव के अवसर पर कुकरैल वन में प्रजातियों के अनुसार तैयार किए गए 18 ग्रिडों में शीशम, अर्जुन, फल्दू, बेल, आंवला, नीम, खैर आदि प्रजातियों के एक हजार पौधे रोपित किए गए। अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक, लखनऊ मण्डल, के प्रवीन राव द्वारा धन्यवाद ज्ञापित किया गया। वन महोत्सव के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में विद्यार्थियों, महिलाओं, गैर सरकारी संगठनों के प्रतिनिधियों, पर्यावरण पे्रमियों, वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों एवं वरिष्ठ वनाधिकारियों द्वारा प्रतिभाग किया गया।
वृक्षारोपण योग के विभिन्न चरणः
1. वृक्षारोपण योग का शुम्भारम्भ करते हुए प्रथम चरण के रूप में प्रत्येक गढ््ढे के समीप दो-दो व्यक्ति/छात्र पूर्ण मनोयोग एवं श्रद्धापूर्वक पहुँचें।
2. आप जिस ग्रिड/गढ््ढे के समीप खड़े हैं। वहाॅं की प्रजाति को पहचानें।
3. सावधान की मुद्रा में खड़े हो जायें।
4. विश्राम की मुद्रा में आ जायें।
5. अपने गढ््ढे के पास बैठ जायें।
6. गढ्ढे में आधी गहराई तक इस तरह मिट्टी भर दें कि पौधे की पिण्डी की उँचाई जितनी जगह गढ्ढे में खाली रहे।
7. पौधों की पाॅलीथीन पूरी तरह हटायें।
8. सावधानी पूर्वक पाॅलीथीन हटी पिण्डी सहित पौधों को गढ्ढे के मध्य में रखें और चारों तरफ से मिट्टी को गढ्ढे में पूरी तरह भर दें।
9. पौधे को हल्के हाथों से पकड़ कर काॅलर के बाहर चारों तरफ से मिट्टी को पैर से दबायें, यह सावधानी रखें कि पौधे के साथ लगी मिट्टी की पिण्डी टूटने न पाये।
10. देख लें कि आपका पौधा सीधा खड़ा हो और मध्य में हो।
11. फावड़े से आस-पास की मिट्टी पौधे के तने की तरफ एकत्र करें और पानी एकत्रित होने के लिए थावला बनायें।
12. पौधे की सिंचाई करें।
13. विश्राम की मुद्रा में खड़े हो जायें।
14. अपने चारो तरफ देख लें कि पौधरोपण पूर्ण हो गया है।
15. सावधान की मुद्रा में खड़े हो जायें।
16. विश्राम की मुद्रा में आ जायें।
17. विसर्जित हांे।
 
 

 

 

कैग रिपोर्ट बताएगी कितने कारगार रहे हैं गंगा को निर्मल बनाने के प्रयास

अनंत शेखर मिश्र

गंगा को निर्मल बनाने के सरकारी प्रयास कितने कामयाब हुए है अथवा उनमे कितनी कमियाँ हैं नियँत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट करने जा रही है। कैग ने केन्द्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना नमामि गंगे का आडिट किया है और उसने यह रिपोर्ट तैयार कर ली है तथा संभावना है कि इसे संसद के शीतकालीन सत्र में प्रस्तुत कर दिया जाएगा। वास्तव में नमामि गंगे योजना केन्द्र के जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण के अधीन आती है। इस बात के संकेत भी हैं कि ऑडिट रिपोर्ट पर मंत्रालय की टिप्पणी भी प्राप्त कर ली गयी है। कहा जा रहा है कि कैग ने अपनी रिपोर्ट गत सप्ताह तैयार कर ली थी तथा उस पर महालेखाकार के हस्ताक्षर भी हो गये हैं . यहां यह उल्लेखनीय है कि सरकार ने गंगा को निर्मल करने के लिए नमामि गंगे योजना के तहत २० हजार करोड़ रुपये का आवंटन किया था। इस काम पर अबतक कितनी धनराशि खर्च हुई है उसका सही सही आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। लेकिन जल संसाधन मंत्रालय के अनुसार वित्तीय वर्ष २०११-१२ से वर्ष २०१६-१७ तक केंद्र सरकार ने नेशनल मिशन फार क्लीन गंगा (एन एम सी जी) को कुल ४३२१ करोड़ रुपये जारी किये हैं। सूत्रों के अनुसार कैग ने अपनी रिपोर्ट मे गत तीन वर्षो मे किये गये प्रयासो को अपेक्षानुरुप नहीं माना है। इसका प्रमुख कारण केंद्र के साथ साथ राज्य सरकारों में गंगा की सफाई का समुचित तंत्र तैयार नही हुआ है और ना ही लोगों में गंगा की सफाई के प्रति अपेक्षित जागरुकता आ सकी है। प्रख्यात अधिवक्ता एम सी मेहता जिन्होने गंगा तथा यमुना नदियों की गंदगी से व्यथित होकर सर्वोच्च न्यायालय मे एक याचिका प्रस्तुत की थी जिस पर सर्वोच्च न्यायालय ने केन्द्र सरकार को कुछ निर्देशों के साथ याचिका को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल को स्थानांतरित कर दिया था , का दावा है कि लगभघ ७ हजार करोड़ रूपया गंगा की सफाई के नाम पर खर्च कर दिया गया है लेकिन गंगा मैली की मैली ही रह गयी है। एम सी मेहता सर्वोच्च न्यायालय के एक प्रख्यात अधिवक्ता हैं तथा १९८५ में उन्होने सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दाखिल कर आरोप लगाया था कि कानून होने के बावजूद सरकारी अधिकारियों ने पर्यावरण प्रदूषण रोकने के लिए प्रभावी उपाय नहीं किये हैं। मेहता ने एक परमादेश याचिका ( रिट ऑफ मंदामास ) दाखिल कर मांग की कि चर्म उद्योग की टेनरियों तथा कानपुर नगर निगम को गंगा नदी में औद्योगिक तथा घरेलू अवशिष्ट प्रवाह करने से रोका जाय। न्यायालय ने बाद में इस याचिका को दो भागों में स्वतः विभाजित कर दिया । पहला भाग कानपुर की टेनरियों से संबंधित था तथा दूसरा कानपुर नगर निगम से संबंधित था। इन दोनो मामलों को मेहता । तथा मेहता ।। का नाम दिया गया। इस याचिका में ८९ प्रतिवादी थे जिसमें जाजमऊ की ७५ टेनरियां थी तथा शेष में केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड तथा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड शामिल थे। कानून की फाइलों मे यह दोनो मामले गंगा प्रदूषण के नाम से जाने गये तथा भारतीय पर्यावरण कानून के छोटे से इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण जल प्रदूषण के मामले बन गये। मेहता के अनुसार एक घटना ने उन्हे यह याचिका दाखिल करने के लिए प्रेरित किया। गंगा में औद्योगिक कचरा तथा विषैले पदार्थ बहाया जा रहा है यह सभी जानते थे लेकिन एक व्यक्ति ने एक बार सिगरेट जला कर जलती हुई माचिस की काड़ी नाले में जो गंगा में गिरता था फेक दी जिस पर लगी आग को ३० घंटे की मेहनत के बाद नियंत्रित किया जा सका था। इस घटना ने उन्हे बूरी तरह व्यथित कर दिया तथा उन्होने इस मामले को सर्वोच्च न्यायलय के समक्ष लाने का निर्णय किया। सर्वोच्च न्यायालय का पहला निर्णय १९८७ में हुआ जब कानपुर की २९ टेनरियों को बंद करने का आदेश दिया। दूसरा महत्वपूर्ण निर्णय आया जब सर्वोच्च न्यायालय ने नगर निगम तथा अन्य स्थानीय निकायों से सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट ( एसटीपी ) तथा अवशिष्ट शोधन प्लांट (ईटीपी) स्थापित करने का आदेश दिया लेकिन सरकारी अधिकारियों नें इस पर अमल नहीं किया। वर्ष २०१४ में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के गठन के साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने इन दोनो मामलो के ट्रिब्यूनल को सौप दिया। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ( एन जी टी ) का गंगा नदी को प्रदूषण मुक्त करने के लिए अपना ऐतिहासिक निर्णय गत १३ जुलाई को सुनाया तथा प्रशासन के सख्त निर्देश जारी करते हुए कहा कि इन उपायों को लागू किया जाना सुनिश्चित करें। एन जी टी की विशेष पीठ ने हरिद्वार से कानपुर तक गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए राज्य व केन्द्र सरकार को कई सुझाव भी दिये तथा .यह भी कहा कि यदि राज्य सरकार दिशा निर्देशों के अन्तर्गत कार्य करने में विफल रहती है तो यह पीठ स्वंय गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए कार्य को अपने नियंत्रण में ले लेगी। एन जी टी द्वारा दी गयी छह सप्ताह की अवधि बीत चुकी है और उत्तर प्रदेश सरकार ने अपनी कार्य योजना की रिपोर्ट भी दाखिल कर दी है चैम्बर बैठके एन जी टी में हो रही हैं लेकिन एन जी टी के सुझावों पर कितना अमल हुआ है या किया जा रहा है उसका कोई उल्लेख नही हो रहा है। लेकिन एन जी टी की सख्ती के कारण राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड तथा केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड कुछ सख्त हो गया है। पिछले दिनो गड़बड़ियों के चलते प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने कानपुर की लगभग १५० टेनरियों को बंद करने का आदेश देकर उस पर अमल भी कराया। इसके अतिरिक्त समय समय पर दोनो प्रदूषण नियंत्रण बोर्डो ने समय समय पर टेनरियों का निरीक्षण करना भी शुरू कर दिया है। क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण अधिकारी कुलदीप मिश्र के अनुसार अब वक्त आ गया है कि हमें अपना ढीलढाल वाला रवैया छोडना होगा तथा उचित कारवाई उन लोगों के खिलाफ करनी होगी जो गंगा को प्रदूषित कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि टेनरियो को सरकार द्वारा नियत मानको का अनुपालन करना होगा तथा निर्देशित उपकरणो को अपने उद्यम में स्थापित भी करना होगा तथा उन अपकरणो का परिचालन भी सुनिश्चत करना होगा तभी टेनरियां बच पाएगीं अन्यथा उन्हे गंगा के तट से हटना होगा। गंगा तट पर रहने वालों मे जागरुकता जाग्रत करने तथा गंगा में गंदगी ना जाए तथा कोई अन्य न करे इसके लिए जिला प्रशासन तथा नगर निगम को अभियान चला कर दीक्षित भी करना होगा। निरी कर रही है गंगा के औषधीय गुणों पर शोध जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्रालय के अनुसार गंगा नदी में औषधीय गुण हैं जिसके कारण इसे ‘ब्रह्म द्रव्य’ कहा जाता है और यही इसे अन्य नदियों से अलग करते हैं। यह कोई पौराणिक मान्यता का विषय नहीं है, बल्कि इसका वैज्ञानिक आधार है। गंगा के औषधीय गुणों का अध्ययन राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग शोध संस्थान (निरी) ने किया है। इसकी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी गई है। अब वे इसके स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों के बारे में अध्ययन करने जा रहे हैं। मंत्रालय से प्राप्त जानकारी के अनुसार, राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन ने गंगा की स्वच्छता के संबंध में ४२५ करोड़ रूपये की सात परियोजनाओं को मंजूरी प्रदान की है जà

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