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Talking Point

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नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल का गंगा के लिए ऐतिहासिक निर्णय अनन्त शेखर मिश्र नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एन जी टी) का गंगा नदी को प्रदूषण मुक्त करने के लिए अपना ऐतिहासिक निर्णय गत १३ जुलाई को सुनाया तथा प्रशासन के सख्त निर्देश जारी करते हुए कहा कि इन उपायों को लागू किया जाना सुनिश्चित करें। एन जी टी की विशेष पीठ ने हरिद्वार से कानपुर तक गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए राज्य व केन्द्र सरकार को कई सुझाव भी दिये तथा .यह भी कहा कि यदि राज्य सरकार दिशा निर्देशों के अन्तर्गत कार्य करने में विफल रहती है तो यह पीठ स्वंय गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए कार्य को अपने नियंत्रण में ले लेगी। एम सी मेहता बनाम राज्य मुकदमें में निर्णय करने वाली पीठ के सदस्य न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार (अध्यक्ष) न्यायमूर्ति जावेद रहीम , आर एस राठौर ( सदस्य विशेषज्ञ) बिक्रम सिंह सजवान (सदस्य विशेषज्ञ) तथा डाक्टर नागीन नंदा (सद्स्य विशेषज्ञ) थे। पीठ ने लगभग तीन साल की सुनवाई के पश्चात ३१ मई को अपना आदेश सुरक्षित किया तथा १३ जुलाई २०१७ को अपना निर्णय सुनाया। एम सी मेहता सर्वोच्च न्यायालय के एक प्रख्यात अधिवक्ता हैं तथा १९८५ में उन्होने सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दाखिल कर आरोप लगाया था कि कानून होने के बावजूद सरकारी अधिकारियों ने पर्यावरण प्रदूषण रोकने के लिए प्रभावी उपाय नहीं किये हैं। मेहता ने एक परमादेश याचिका (रिट ऑफ मंडामस) दाखिल कर मांग की कि चर्म उद्योग की टेनरियों तथा कानपुर नगर निगम को गंगा नदी में औद्योगिक तथा घरेलू अवशिष्ट प्रवाह करने से रोका जाय। न्यायालय ने बाद में इस याचिका को दो भागों में स्वतः विभाजित कर दिया । पहला भाग कानपुर की टेनरियों से संबंधित था तथा दूसरा कानपुर नगर निगम से संबंधित था। इन दोनो मामलों को मेहता । तथा मेहता ।। का नाम दिया गया। इस याचिका में ८९ प्रतिवादी थे जिसमें जाजमऊ की ७५ टेनरियां थी तथा शेष में केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड तथा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड शामिल थे। कानून की फाइलों मे यह दोनो मामले गंगा प्रदूषण के नाम से जाने गये तथा भारतीय पर्यावरण कानून के छोटे से इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण जल प्रदूषण के मामले बन गये। मेहता के अनुसार एक घटना ने उन्हे यह याचिका दाखिल करने के लिए प्रेरित किया। गंगा में औद्योगिक कचरा तथा विषैले पदार्थ बहाया जा रहा है यह सभी जानते थे लेकिन एक व्यक्ति ने एक बार सिगरेट जला कर जलती हुई माचिस की काड़ी नाले में जो गंगा में गिरता था फेक दी जिस पर लगी आग को ३० घंटे की मेहनत के बाद नियंत्रित किया जा सका था। इस घटना ने उन्हे बूरी तरह व्यथित कर दिया तथा उन्होने इस मामले को सर्वोच्च न्यायलय के समक्ष लाने का निर्णय किया। सर्वोच्च न्यायालय का पहला निर्णय १९८७ में हुआ जब कानपुर की २९ टेनरियों को बंद करने का आदेश दिया। दूसरा महत्वपूर्ण निर्णय आया जब सर्वोच्च न्यायालय ने नगर निगम तथा अन्य स्थानीय निकायों से सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) तथा अवशिष्ट शोधन प्लांट (ईटीपी) स्थापित करने का आदेश दिया लेकिन सरकारी अधिकारियों नें इस पर अमल नहीं किया। वर्ष २०१४ में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के गठन के साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने इन दोनो मामलो के ट्रिब्यूनल को सौप दिया। ट्रिब्यूनल ने पिछले दिनों एक टिप्पणी करते हुए कहा था कि सरकार नें गंगा की सफाई के नाम पर अब तक ४८०० करोड़ खर्च कर दिये लेकिन गंगा मैली की मैली ही रह गयी बल्कि वर्ष २००८ की तुलना में गंगा का प्रदूषण चार गुणा अधिक हो गया। एन जी टी ने अपने ५४३ पृष्ठो के निर्णय में जो कि हरिद्वार से कानपुर तक के लिए है में गंगा तट पर बसे शहरों तथा आबादी को गंगा नदी तथा उसकी सहायक नदियों के प्रदूषण का मुख्य कारण माना है जिसमें कानपुर का टेनरी उद्योग प्रमुख है। जिसका अवशिष्ट तथा रसायन युक्त जल नदी को प्रदूषित कर रहा है इसके अतिरिक्त गंगा नदी में गिरने वाले ८६ निर्दिष्ट नालों की सफाई करने के निर्देश तथा गंगा के तट पर धार्मिक गतिविधियों के लिए दिशा निर्देश जारी करने के निर्देश दिया है। गंगा नदी के दोनो तटों पर ५०० मीटर की दूरी तक हरिद्वार से उन्नाव तक किसी भी अपशिष्ट को रखने तथा भंडारण करने पर प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया है और इस क्षेत्र को कोई निर्माण नही तथा कोई विकास नहीं क्षेत्र घोषित करने का निर्देश दिया है। इसके अतिरिक्त गंगा में अवशिष्ट डालने पर ५०००० रुपये का दंड लगाने का प्रावधान करने का भी निर्देश दिया है। एन जी टी ने अपने निर्णय को कई खंडो में गोमुख से उन्नाव कानपुर तक के प्रमुख प्रदूषकों का उल्लेख करते हुए उन पर नियंत्रण करने तथा दूर करने के सुझाव दिये हैं तथा उनके अनुपालन की बात कही है। उत्तराखंड में गोमुख से हरिद्वार तक ( खंड अ) दृ कचरे का एकत्रतीकरण तथा सीवेज का निस्तारण, उद्योगों के संबंध में दिशा निर्देश, होटल ,धर्मशाला तथा आश्रमों को लिए निर्देश, नगरीय ठोस अपशिष्ट के संबंध में निर्देश, मैदानी इलाकों में बाढ़ के लिए निर्देश, नदी की तलहटी में खनन के संबंध में निर्देश, बायो मेडिकल वेस्ट के संबंध में निर्देश व अन्य सामान्य निर्देश भी दिए हैं। ट्रिब्यूनल ने कानपुर की टेनरियों तथा २३ नालों के संदर्भ में राज्य सरकार से कहा है कि वह उत्तर प्रदेश जल निगम, उत्तर प्रदेश नगर निगम, तथा यूपीएसआईडीसी, नेशनल मिशन फार क्लीन गंगा तथा केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से से विचार विमर्श कर इन दिशानिर्देशो के परिप्रेक्ष्य में एक समय बद्ध कार्यक्रम को आज से छह सप्ताह की अवधि में तैयार करके ट्रिब्यूनल के समक्ष प्रस्तुत करें। उस रिपोर्ट पर इस निर्णय के अनुपालन में चार माह के भीतर कार्य करना प्रारंभ करे तथा दो साल की अवधि में इसको पूरा करे। पीठ ने यह भी स्पष्ट किया है कि यदि उपरोक्त निर्देश सत्य भावना से लागू नही किये गये तो जाजमऊ के टेनरी उद्योग को बंद किया जाने का आदेश पारित किया जा सकता है तथा उसे एक नयी औद्योगिक स्थान पर जो कि पूर्ण रुप से विकसित हो तथा जहां सीईटीपी तथा कॉमन क्रोमियम रिकवरी प्लांट हो स्थापित किया गया हो। कानपुर की सी ई टी पी जो कि जाजमऊ में ७ एम एल डी टेनरी अपशिष्ट तथा २७ एम एल डी घरेलू सीवेज को शोधित करता है के विषय में पीठ ने कहा है कि वह पूरी क्षमता से काम नहीं कर रहा है तथा ६० प्रतिशत प्रदूषित जल सीधा गंगा में प्रवाहित होता है। यह प्लांट कई तरह से नियत मानको के अनुरुप नहीं है तथा इसका उच्चीकरण किया जाना आवश्यक है। तथा इसमें प्रदूषण निरोधक उपकरण लगाये जाने की आवश्यकता है। वर्तमान क्रोमियम प्लांट भी कई संदंर्भो में कई मानक पूरे नहीं करता है।पहला तो यह है कि जाजमऊ की टेनरिया क्रोमियम युक्त अपशिष्ट एकत्रित करके प्लांट में नही भेज रही हैं। दूसरा क्रोमियम रिकवरी प्लांट ना तो ढंग से डिजायन किया गया है और ना ही प्रभावी तरीके से स्थापित किया गया है। प्लांट ना तो प्रभावशाली तरीके से काम कर रहा है ना ही इसका परिचालन प्रभावी तरीके से हो रहा है। अतः क्रोम रिकवरी प्लांट का भी उच्चीकरण किया जाय तथा इसकी प्रभावी देखरेख भी की जाए। जाजमऊ में १३० एमएलडी तथा ५ एमएलडी के दो नये सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट काम कर रहे हैं और ४३ एमएलडी का एक प्लांट निर्माणाधीन है। कार्यरत दोनो एस टी पी संतोषप्रद तरीके से काम नहीं कर रहे हैं तथा मानको की दृष्टि से वे नियत मानकों से काफी पीछे हैं। दोनों एस टी पी की एक संयुक्त टीम जिसके सदस्य नेशनल मिशन फार क्लीन गंगा, केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, उत्तर प्रदेश जल निगम के प्रतिनिधि तथा आई आई टी रूड़की के एक विशेषज्ञ प्रोफेसर हो आदेश की तिथि से चार सप्ताह के भीतर निरीक्षण करें तथा अपनी अनुशंसाएं दे। ४३ एमएलडी के निर्माणाधीन प्लांट का नियत मानको के तहत निर्माण किया जाय। उन्नाव तथा बंथर के ट्रीटमेंट प्लांट( सी ई टी पी) भी मानक के अनुरूप काम नहीं कर रहे हैं। इनका भी निरीक्षण एक संयुक्त टीम करे तथा रिपोर्ट प्रस्तुत करे। कानपुर के २३ नाले जो कि गंगा में गिर रहे हैं के संबंध में पीठ ने निर्देश दिया है कि सभी के मुंह बंद कर दिये जाए तथा उनका प्रवाह जाजमऊ ट्रीटमेंट प्लांट की ओर मोड़ दिया जाय तथा शोधित किये जाने के पश्चात जल को टेनरी उद्योग प्रयोग करे अथवा उसका खेती में उपयोग हो। स्थानीय नगर निगम को निर्देशित किया जाता है कि जाजमऊ ट्रीटमेंट प्लांट की ओर जाने वाले सभी सीवर लाइनों की सफाई करे कि वर्तमान के ३० प्रतिशत की अपेक्षा १०० प्रतिशत प्रवाह बना रहे।

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