A First-Of-Its-Kind Magazine On Environment Which Is For Nature, Of Nature, By Us (RNI No.: UPBIL/2016/66220)

Support Us
   
Magazine Subcription

Tidbits

TreeTake is a monthly bilingual colour magazine on environment that is fully committed to serving Mother Nature with well researched, interactive and engaging articles and lots of interesting info.

Tidbits

Tidbits

Tidbits

अधिक चुइंगम चबाने से हो सकती हैं स्वास्थ्य की समस्याएं    
चुइंगम चबाने की आदत बहुत ही आम होती है। जब आप चुइंगम चबाते हैं तो हिप्पोकैम्पस अधिक सक्रिय हो जाता है जो कि मस्तिष्क का वह हिस्सा होता है जो याद्दाश्त में गहरी भूमिका अदा करता है। स्मरण-शक्ति बढ़ाने के साथ ही चुइंगम मस्तिष्क मे रक्त प्रवाह बढ़ाने में मदद करता है। इससे दिल की धड़कन बढ़ जाती है और मस्तिष्क को अधिक ऑक्सीजन मिलती है। चुइंगम चबाने से स्नायु मंडल यानी नर्वस सिस्टम का तनाव कम हो जाता है और आप शांत महसूस करते हैं। इसे तनाव व चिड़चिड़ेपन को कम करने में भी मदद मिलती है। जिन्हे मूंह की दुर्गन्ध से छुटकारा पाना होता है वे भी चुइंगम का सहारा लेते हैं। ऐसा इसलिए होता हैं कि मुंह में अधिक लार बनने लगती है। ऐसा समझा जाता है कि जो लोग चुइंगम चबाते हैं उनके दांतों में कैविटी होने की आशंका भी कम होती है। प्रतिदिन १५ मिनट तक इसे चबाने से चेहरे पर रक्त प्रवाह बढ़ जाता है और  गाल और जबड़े मजबूत होते है। परन्तु क्या चुइंगम सचमुच लाभकारी होती है। हर एक के लिए नहीं क्योंकि इसके भी दुष्परिणाम होते हैं जैसे कि लिवर की खराबी , सीने की जलन , अपच और एलर्जी। अमेरिका में एक शोध द्वारा यह पता चला है कि चुइंगम में पाए जाने वाले तत्त्व खून में मिल कर शरीर को कई प्रकार से हानि पहुंचाते हैं । इसमें एसपारटेम नामक तत्त्व होता हैं को स्वाद बढ़ाने के लिए डाला जाता है लेकिन यह बहुत खतरनाक होता है बल्कि लगभग जहरीला होता है। वहाँ इसपर बैन लगा दिया गया था जो बाद में हटा दिया गया। यह रक्त में मिल कर मस्तिक्ष तक पहुँच कर कोशिकाओं को उत्तेजित करता है जिससे वे नष्ेट होने  लगती हैं।                                                                                                                                                            एक अन्य रिसर्च से पता चला है कि विशेषतया मिंट वाली चुइंगम चबाने से आप फल और सब्जियों जैसी स्वास्थ्यप्रद चीजों से उचाट हो जाते हैं। आपको जंक फूड खाने की भी इच्छा करती है। मुंह की मांसपेशियों का अधिक इस्तेमाल भी हानिकारक है। लगातार चुइंगम चबाने से एक डिसऑर्डर होता है जिसे मेडिकल भाषा में टेंपोरोमंडीबुलर डिसऑर्डर कहते हैं। इसमें जबड़े और खोपड़ी को जोडने वाली मांसपेशियों में तेज दर्द होता है।  गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल की समस्या उत्पन्न होती है। चुइंगम चबाने से मुंह में हवा पैदा होती है जो पेट में जाकर सूजन और दर्द कर सकती हैं। यह अपच और सीने में जलन का कारण भी बन सकता है क्यूंकि इसमें दूध से प्राप्त एक प्रकार का प्रोटीन कैल्शियम कैसीन पेप्टोन कैल्शियम फॉस्फेट मिलाया जाता है जिससे इसको सफेदी मिलती है पर यह बहुत हानिकारक होता है । टाइटेनियम नामक तत्त्व की कोटिंग से दामे व क्रोहन डिजीज हो सकती हैं । मैंथोल और सोर्बिटोल जैसे आर्टिफिशियल स्वीटनर्स आंतों में जलन पैदा करते हैं। इससे जहरीला पारा स्त्रावित होता है  और ज्यादा चुइंगम चबाने से सिरदर्द और एलर्जी भी हो सकती है। इसका यह कारण है कि चुइंगम में बहुत से प्रिजर्वेटिव्स, आर्टिफिशियल फ्लेवर्स और आर्टिफिशियल शुगर मौजूद होती है जो कि विषाक्तता, एलर्जी और सिर दर्द पैदा करती हैं। यह सच है कि कभी-कभार चुइंगम चबाना मसूड़ों और दातों के लिए ठीक है फिर भी इसका ज्यादा इस्तेमाल आपके दांतों को नुकसान पहुंचा सकता है। इसका कारण है कि चुइंगम में मौजूद शुगर कोट दांतों में बैक्टीरिया के प्रवेश के लिए जिम्मेदार है। कुछ लोगों के दांतों के बीच कुछ भरावट होती है जो कि पारे सिल्वर और टिन की होती है। ज्यादा चुइंगम चबाने से यह पारा दांतों के बीच से निकलकर शरीर में चला जाता है। यह पारा मनुष्य के लिए जहर समान है। एक अध्ययन से पता चला है कि जो बच्चे और टीनएजर्स ज्यादा चुइंगम चबाते हैं उनके चेहरे का सही विकास नहीं होता है। उनका चेहरा सामान्य से बड़ा होता है क्योंकि ज्यादा चुइंगम चबाने से जबड़े और चेहरे की मांसपेशियां उत्तेजित होती हैं। इसलिए जरूरी है कि आप चुइंगम चबाने का नफा नुक्सान दोनों समझें।                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                
क्या आप मिट्टी के महत्व को समझते हैं?
मिट्टी दुनिया का सारा मल कूड़ा या हर तरह की गन्दगी को अपने अंदर समा लेती है और खुद अपने आप में शुद्ध हो जाती है। जमीन के अंदर जो कुछ भी दबा दिया जाता है वह मिट्टी बन जाता है। दीमक के टीले की मिट्टी बहुत ही गुणकारी होती है। नहाने और सिर को धोने के लिए मुलतानी मिट्टी बड़ी लाभकारी होती है। मिट्टी कई प्रकार की होती है और हर प्रकार की मिट्टी का इस्तेमाल गुणों के मुताबिक अलग-अलग होता है। मिट्टी के अंदर जहर को खींच लेने की बहुत ज्यादा क्षमता होती है। ये शरीर के अंदर के पुराने से पुराने मल को घुलाती है और बाहर निकालती है। मिट्टी शरीर के जहरीले पदार्थों को बाहर खींच लेती है । त्वचा के रोग जैसे फोड़े-फुंसी सूजन, दर्द आदि होने पर मिट्टी काफी लाभकारी साबित होती है। मिट्टी जलन, स्राव और तनाव आदि को समाप्त करती है। शरीर की फालतू गर्मी को मिट्टी खींचती है। मिट्टी शरीर में जरूरी ठंडक पहुंचाती है। मिट्टी बदबू और दर्द को दूर करने वाली है। ये शरीर में चुम्बकीय ताकत देती है जिससे चुस्ती-फुर्ती पैदा होती है। मिट्टी को शरीर पर अच्छी तरह से मलने से और शरीर पर लगाने से जहरीले तत्व शरीर से बाहर निकल जाते हैं। साबुन की जगह शरीर पर मिट्टी लगाकर नहाने से हर तरह के रोगों में लाभ होता है। मिट्टी पर नंगे पैर घूमने से गुर्दे के रोगों में आराम आता है, आंखों की रोशनी तेज होती है और शरीर को चुम्बकीय ताकत मिलती है।
मिट्टी की पट्टी प्राकृतिक चिकित्सा में बहुत ही महत्त्वपूर्ण है तथा बहुत से रोगों में इसका इस्तेमाल होता है। पेट के हर तरह के रोग में इसका बहुत ही खास स्थान है। इसका इस्तेमाल पेड़ू, पेट, छाती, माथे, आंख, सिर, रीढ़ की हड्डी, गला, पांव, गुदा आदि जहाँ पर भी जरूरत पड़े कर सकते हैं।मिट्टी की पट्टी बनाने की विधि - मिट्टी को बहुत अच्छी तरह से बारीक पीसकर और छानकर इस्तेमाल से १२ घंटे पहले भिगों दें। इस्तेमाल के समय जरूरत के मुताबिक एक बारीक सूती कपड़ा बिछाकर आधा इंच मोटी परत की मिट्टी की पट्टी को फैला दें। शरीर के जिस भाग पर मिट्टी की पट्टी लगानी हो इसे उलटकर लगा दें और ऊपर से किसी गर्म कपड़े से ढक दें। इस पट्टी के लगाने का समय ज्यादा से ज्यादा २० से ३० मिनट तक होना चाहिए नहीं तो मिट्टी द्वारा खींचा गया जहर शरीर में दोबारा चला जाता है। जो मिट्टी एक बार इस्तेमाल कर ली गई हो उसे दोबारा इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। कुदरती उपचार का मतलब ये है कि कुदरत के बनाए हुए नियमों का पालन करना और कुदरत के तत्वों - पृथ्वी (मिट्टी), जल, सूर्य और वायु का ऐसे इस्तेमाल करना जिससे शरीर में जमा हुआ कूड़ा-करकट बाहर निकल जाए, शरीर शुद्ध बना रहे और शरीर के अंदर की चेतना शक्ति ताकतवर बनी रहे, शरीर के सभी रोग दूर हो और शरीर सही तरह से काम करता रहे। मिट्टी में बहुत ज्यादा मात्रा में जंतु मौजूद होते हैं। इसलिए गीली मिट्टी को पेट या शरीर के दूसरे हिस्सों पर रखने को कम ही कहा जाता है।
बालू भी मिट्टी को ही बोला जाता है जो किसी भी मनुष्य के लिए उसी तरह जरूरी है जिस तरह भोजन और पानी। लेकिन बालू मिट्टी के गुणों को केवल प्राकृतिक चिकित्सक ही अच्छी तरह जानते हैं। प्राकृतिक दशा में खाई जाने वाली खाने की चीजें जैसे साग-सब्जी, खीरा, ककड़ी आदि के साथ हमेशा बालू मिट्टी का कुछ भाग जरूर होता है, जिसे हम जानकारी ना होने के कारण गंवा देते है। ये बालू मिट्टी के कण हमारी भोजन पचाने की क्रिया को ठीक रखने मे मदद करते हैं। क्या किसी ने सोचा है कि पहाड़ी झरनों के पानी को स्वास्थ्य के लिए अच्छा क्यों बताया जाता है? इस पानी को पीने से भूख ज्यादा क्यों लगती है और पाचन क्रिया क्यों ठीक होती है? ये सब इसलिए होता है क्योंकि इस पानी में बालू मिट्टी के कुछ अंश मिले हुए होते हैं, जिन्हे पानी के साथ पिया जाता है। ये झरने जो पहाड़ों से बहकर आते हैं और अपने साथ बालू मिट्टी का ढेर लाते हैं, और ये पानी भोजन को पचाने वाले साबित होता है। बालू मिट्टी के अंदर छुतैल जहर को समाप्त करने की ताकत होती है। बालू मिट्टी प्रकृति की ओर से मानो संक्रमण को दूर करने वाली दवा का काम करती है। प्रयोगों द्वारा ये साबित हो चुका है कि बालू मिट्टी मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए बहुत ही लाभकारी है। जिस व्यक्ति को पेट के रोग जैसे - कब्ज, शौच खुलकर ना आना हो वो अगर खाना खाने के बाद ही एक चुटकी समुद्री बारीक बालू मिट्टी दिन में 2-3 बार निगल लें तो दूसरे दिन ही पेट की आंतें ढीली पड़ जाएगी और मल आसानी से निकलने लगेगा तथा आखिर में कब्ज भी दूर हो जाएगी।
दूब घास अमृत है
दूब वर्ष भर पाई जाने वाली घास है जो जमीन पर पसरते हुए या फैलते हुए बढती है। हिन्दू धर्म में इस घास को बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। हिन्दू संस्कारों एवं कर्मकाण्डों में इसका उपयोग बहुत किया जाता है। इसके नए पौधे बीजों तथा भूमीगत तनों से पैदा होते हैं। वर्षा काल में दूब घास अधिक वृद्धि करती है तथा वर्ष में दो बार सितम्बर-अक्टूबर और फरवरी-मार्च में इसमें फूल आते है। दूब सम्पूर्ण भारत में पाई जाती है। यह घास औषधि के रूप में विशेष तौर पर प्रयोग की जाती है। दूब की जड़ों में हवा तथा भूमि से नमी खींचने की क्षमता बहुत अधिक होती है यही कारण है कि चाहे जितनी सर्दी पड़ती रहे या जेठ की तपती दुपहरी हो, इन सबका दूब पर असर नहीं होता और यह अक्षुण्ण बनी रहती है। पशुओं के लिए ही नहीं अपितु मनुष्यों के लिए भी पूर्ण पौष्टिक आहार है दूब। महाराणा प्रताप ने वनों में भटकते हुए जिस घास की रोटियाँ खाई थीं, वह भी दूब से ही निर्मित थी । अर्वाचीन विश्लेषकों ने भी परीक्षणों के उपरांत यह सिद्ध किया है कि दूब में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट पर्याप्त मात्रा में मिलते हैं। दूब के पौधे की जड़ें, तना, पत्तियाँ इन सभी का चिकित्सा क्षेत्र में भी अपना विशिष्ट महत्व है। आयुर्वेद में दूब को महौषधि कहा गया है। आयुर्वेदाचार्यों के अनुसार दूब का स्वाद कसैला-मीठा होता है। विभिन्न पैत्तिक एवं कफज विकारों के शमन में दूब का निरापद प्रयोग किया जाता है। संथाल जाति के लोग दूब को पीसकर फटी हुई बिवाइयों पर इसका लेप करके लाभ प्राप्त करते हैं। इस पर सुबह के समय नंगे पैर चलने से नेत्र ज्योति बढती है और अनेक विकार शांत हो जाते है। दूब घास शीतल और पित्त को शांत करने वाली है। दूब घास के रस को हरा रक्त कहा जाता है, इसे पीने से एनीमिया ठीक हो जाता है। नकसीर में इसका रस नाक में डालने से लाभ होता है। इस घास के काढ़े से कुल्ला करने से मुँह के छाले मिट जाते है। दूब का रस पीने से पित्त जन्य वमन ठीक हो जाता है। इस घास से प्राप्त रस दस्त में लाभकारी है। यह रक्त स्त्राव, गर्भपात को रोकती है और गर्भाशय और गर्भ को शक्ति प्रदान करती है। दूब को पीस कर दही में मिलाकर लेने से बवासीर में लाभ होता है। इसके रस को तेल में पका कर लगाने से दाद, खुजली मिट जाती है।

May 2017
शमी का वृक्ष है शुभ व लाभकारी
शमी एक ऐसा वृक्ष है जिसे कल्प तरु के नाम से भी जाना जाता है। इसके अनेक पौराणिक विवरण मिलते हैं जैसे कहते हैं अग्नि देव इसके कोटर में छिपे थे भृगु महर्षि के क्रोध से बचने के लिए और पांडवों ने अज्ञातवास के समय इसमें अपने शस्त्र छिपाये थे व एक वर्ष पश्चात उन्हें निकालने पर उनमें देवी माता का आशीर्वाद हो गया था और इसीलिए उन्हें जीत मिली तथा श्री राम को भी शमी के पेड़ ने जीत का आशीर्वाद दिया था और यही नहीं शमी के पत्ते श्री गणेश को भी चढाये जाते हैं। परन्तु इससे अधिक इस वृक्ष की औषधीय महत्तवता है। मंझले कद का यह बारहमासी पेड़ प्रतिकूल जलवायु में भी पनप सकता है। इसके फूल बहुत सूंदर होते हैं और बरसात में खिलते हैं। इसकी छाल से कोढ़ अस्थमा पेट के रोग व गहरे घाव की दवा बनती हैं। इसकी छाल या टहनी को महीन पीस कर बुरादा बना कर खराब दुखते गले व दांत में लगाने से आराम मिलता है और ऊपरी अलसर में भी लगाया जा सकता हैं। इसको निगलना नहीं होता। इसकी जड़ एवं पॉड कीटनाशक होते हैं। इसके बीज के सेवन से ब्लड शुगर लेवल कम होता है। आयुर्वेद में शमी से मानसिक बीमारी जैसे शिजोफ्रेनिया और साँस की नली का विकार व शरीर के बढे हुए ताप एलेर्जी घाव दर्द और अन्य जटिल रोग जैसे हर्पीस इत्यादि की दवाएं बनायीं जाती हैं। इसकी छाल को उबाल कर उनके पानी से अत्यधिक तनाव ज्वर पित्त व वत्त के विकार का उपचार किया जाता है। इसकी पत्तियां उबालकर पेट के कीड़ो डायरिया डिसेंट्री पेशाब दोष और कोढ़ तक का इलाज होता है। इसके कुछ पुष्प यदि शक्कर में मिलाकर गर्भवती स्त्रियाँ खाएं तो उनका गर्भपात नहीं होता। छाल का पानी पत्ती का पानी या पुष्प बहुत थोड़ी मिकदार में लेना होता है। यह पेड़ ठंडक प्रदान करता है और इसे लगाने से वातावरण शुद्ध रहता है। शमी लगाने से भूमि की उर्वरक शक्ति में वृद्धि होती है क्योंकि यह मिट्टी में नाइट्रोजन का स्तर बढ़ाता है। यह पेड़ भूमि को बंजर होने से बचाता है और इसलिए जगह जगह लगाया जाना चाहिए। यदि किसी कारणवश जैसे जलवायु परिवर्तन या मानविक हस्तक्षेप से शुष्क उपजाऊ भूमि अपनी उर्वरक शक्ति खोती जा रही है तो उसको रोकने के लिए शमी लगाया जा सकता है। यह वृक्ष रेत के टीलों को यथावत रखने के लिए एवं वायु के वेग को नियंत्रित रखने के लिए भी लगाया जाता है।यह शुभ होने के साथ लाभकारी भी है।
एवोकैडो और खीरे का जूस है बीमारियों का काल
एवोकैडो जूस और खीरे के जूस को एक साथ मिलाकर पीने से कई तरह के स्वस्थ्य लाभ होते हैं। इसे बनाने के लिए आप एक एवोकैडो को लें और एक खीरे को लें, इसे सही से छील लें और थोड़े पानी के साथ मिलाकर पीस लें। इस जूस को हर सुबह पीने से बहुत फायदा मिलता है। आइए जानते हैं कि इस जूस को पीने के प्रमुख फायदों के बारे में।
एसिडिटी भगाए, पाचन सही करे’ः इस जूस को पीने से एसिडिटी खत्म हो जाती है। अगर आपको जलन और एसिडिटी बनने की दिक्कत है तो यह जूस आपके लिए फायदेमंद साबित हो सकती है। इस प्राकृतिक ड्रिंक में ओमेगा-3 फैट्टी एसिड होता है जो शरीर की पाचन क्रिया को दुरूस्त बना देता है।
दिल का स्वास्थ्यः इस जूस को पेय को पीने से शरीर में कोलेस्ट्रॉल नहीं बढ़ता है और ओमेगा-3 होने की वजह से रक्त का संचार भी सही से होता रहता है। ऐसे में दिल के स्वास्थ्य लाभ के लिए यह सबसे अचछा पेय पदार्थ है।
हाइपरटेंशन दूर करनाः उच्च रक्तचाप और हाइपरटेंशन की समस्या से जो लोग परेशान रहते हैं उन्हें इसके सेवन से फायदा होगा क्योंकि इसमें पौटेशियम की भरपूर मात्रा होती है और इसके सेवन से रक्तचाप सही हो जाता है।
कब्ज दूर भगाएंः कब्ज की समस्या को यह पेय कुछ ही समय में दूर कर देता है क्योंकि इà

Leave a comment