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कुहासे की चपेट में एक बार फिर उत्तर भारत

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कुहासे की चपेट में एक बार फिर उत्तर भारत

कुहासा वायु प्रदूषण का एक स्वरुप है जो वातावारण में उस समय होता है जब सूर्य की किरणें वायुमंडल में व्याप्त नाइट्रोजन ऑक्साइड्स तथा कम से कम एक वोलेटाइल ऑर्गेनिक कम्पाउंड से  से क्रिया करती हैं...

कुहासे की चपेट में एक बार फिर उत्तर भारत

Talking Point
ए के सिंह 

पूरा उत्तर भारत इस समय कुहासे की समस्या से जूझ रहा है। यूं तो पिछले कुछ वर्षों से कुहासे जिसे सामान्य भाषा में हम धुंध भी कहते हैं, की समस्या से भारत परिचित हुआ था लेकिन जिस भयावहता से इस समय यह सामने आया है वह खतरे का संकेत है। दिल्ली, कानपुर तथा लखनऊ समेत उत्तर भारत के बड़े शहर इसकी चपेट में हैं जिसमें दिल्ली की हालात काफी गंभीर रुप से खराब है।
कुहासा वायु प्रदूषण का एक स्वरुप है जो वातावारण में उस समय होता है जब सूर्य की किरणें वायुमंडल में व्याप्त नाइट्रोजन ऑक्साइड्स तथा कम से कम एक वोलेटाइल ऑर्गेनिक कम्पाउंड से  से क्रिया करती हैं। जब यह रासायनिक क्रिया होती है तो वायुमंडल में कणों को मुक्त करती है तथा आक्सीजन जमीनी स्तर पर हानिप्रद यौगिकों (ओजोन) को शोषित करती है। यह सभी क्रियाएं धुंध को उत्पन्न करती हैं, जो इस समय मनुष्य जाति को परेशान कर रही है। विश्व स्वास्थय संगढन के एक नवीनतम आंकडे के अनुसार विकासशील विश्व में अधिकांश बड़े शहर विश्व वायु प्रदूषण दिशा निर्देशों का उल्लंघन कर रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आकलन के अनुसार पिछले पांच वर्षों में विश्व स्तर पर 8 प्रतिशत की दर से वायु प्रदूषण मे वृद्धि हो रही है। और इसके कारण प्रतिवर्ष 30 लोगों की अकाल मृत्यु हो रही है। नवीनतम वायु मानक स्तर के आंकड़ों के अनुसार 98 प्रतिशत शहर जिनकी आबादी एक लाख या उससे अधिक है तथा निम्न दृमध्यम आय वाले देश विश्व स्वास्थ्य संगठन के वायु मानक दिशा निर्देशो का पालन नहीं कर रहे हैं।
दिल्ली तथा उत्तर भारत में कुहासे का कारण मानव गतिविधियों के कारण हैं। मानव गतिविधियों में वाहनों के द्वारा निकाला गया धुंआ, उद्योग निर्माण तथा घरेलू ईंधन का जलाया जाना शामिल हैं इनके साथ प्राकृतिक स्त्रोतों जैसे की धूल तथा समुद्री लबण भी महत्वपूर्ण कारक हैं। पश्चिमी हवाओं के कारण पंजाब तथा हरियाणा में किसानों के द्वारा खेत में जलाये जाने वाली पराली (पुआल)  के कारण दिल्ली तथा नजदीकी इलाके कुहासे से बुरी तरह प्रभावित होते हैं। सक्रिय कार्यकर्ताओं के अनुसार एन सी आर में प्रतिदिन 10 हजार टन अवशिष्ट उत्पन्न होता है जिसमें से अधिकांश जलाया जाता है जो वायु में पर्टिकुलेट प्रदूषण को बढा देता है। इसके अतिरिक्त बढ़ते शहरीकरण के कारण हो रहे निर्माण ने भी वायु मंडल को जहरीला करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। यही नहीं दिल्ली की सड़कों में दौड़ रहे एक लाख से अधिक वाहनों का उत्सर्जन स्थिति को भयावाह कर रहा है। पी एम स्तर 17 सामान्य से 17 गुणा अधिक है अस्पतालों में मरीजो की संख्या में अप्रत्याशित रुप से वृद्धि हो रही है। लोग श्वसन में परेशानी तथा आंखो में जलन की शिकायत कर रहे हैं।
चंडीगढ़ से जारी एक रिपोर्ट के अनुसार नासा की एक सेटेलाइट  से उन स्थानों के चित्र मिले हैं जहां जमकर पराली जलाई जा रही है। इसके विपरीत हरियाणा में एक यो दो जगहों पर पराली जलाये जाने के चित्र प्राप्त हुए हैं। हरियाणा की तस्वीर देख कर वैज्ञानिक भी हैरान हैं। ऐसा इसलिये है कि हरियाणा में इस बार काफी सख्ती बरती गयी है 1406 लोगों के खिलाफ कारवाई में लगभग 14 लाख का जुर्माना भी वसूला गया है। सेटेलाइट ,चित्रों में सोनीपत से अम्बाला तक पूरी तरह साफ दिखायी दे रहा है। ऐसा नहीं है कि कुहासे की समस्या दिल्ली के लिये नयी हो। पिछले कुछ वर्षों से दिल्लीवासी इस समस्या के साथ साथ वायु प्रदूषण की समस्या से भी जूझ रहे हैं। वायु प्रदूषण को कम करने के लिए तो दिल्ली सरकार ने कुछ उपाय भी किये जैसे सम तथा विषम नम्बर को मोटर वाहनों के लिये  एक एक दिन निश्चित कर दिया लेकिन कुहासे पर नियंत्रण के लिये कुछ नहीं किया हालांकि एक विशेषज्ञ समिति ने इस सम्बंध में कुछ उपाय भी सुझाये थे।
कुहासा एक तरफ तो लोगों को श्वांस रोग दे रहा है वहीं कही कही पर अपने घनेपन के कारण यह मार्ग दुर्घटना का कारण भी बन रहा है। विश्व के 10 बड़े शहर कुहासे की समस्या से जूझ रहे हैं और इससे निपटने के लिये उन्होने कुछ उपाय भी किये हैं। इस सूची में सबसे पहला स्थान मिलान (इटली) का है जिसने निजी गाड़ियो पर छह घंटे का प्रतिबंध लगा कर उन्हे सड़को पर दौड़ने से रोक दिया था। इन छह घंटो में मिलान में साइकिले ही दिखायी दीं। इसके अतिरिक्त वहां की सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के यातायात को बढा़वा देने के लिये न्यूनतम दर पर सारे दिन का बस का टिकट जारी किया जबकि अन्य दिनों में यह बस किराया दर सिर्फ एक बार की सवारी के लिये होती है। इस क्रम मे दूसरा शहर है सार्जेवो, बोस्निया तथा हर्जेगोविना  का है जहां लोगों से कहा गया कि वे अपने वाहनो का कम स ेकम उपयोग करें, सुबह तथा शाम को अपनी बाह्य गतिविधियों को कम करें- यदि जाना ही पड़े तो मास्क लगा कर बाहर निकले। बीजिंग-चीनी राजधानी में दो बार रेड अलर्ट जारी किया जा चुका है। रेड अलर्ट यहां तब घोषित किया जाता है जब वायु मानक सूचकांक 200 का स्तर  (अति प्रदूषित ) पार कर के तीन या उससे अधिक दिन बने रहने  की भविष्यवाणी हो जाती है। कुछ इलाकों में यह स्तर 900 से उपर पहुंच जाता है। चीन में प्रदूषण का कारण कोयले का ईधन के रुप में अत्याधिक उपयोग किये जाने के कारण है। चीन अपनी विद्युत आवश्यकता का 60 प्रतिशत ताप परियोजनाओं से पूरा करता है। इस प्रदूषण से निपटने के लिये चीन ने एक ठोस रणनीति बनाई है और काफी हद तक इस पर काबू पाया है और अब वह वेंटीलेशन कारीडार बनाने की योजना बना रहा है।
दिल्ली को विश्व स्वास्थ्य संगठन नें सबसे प्रदूषित शहर का खिताब दे दिया है। इसके अलावा देश के 12 शहर और हंै जो विश्व के 20 सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में शामिल हैं। वायू प्रदूषण के कारण लगभग 6 लाख व्यक्ति अकाल मृत्यु के ग्रास में जा रहे हैं। दिल्ली सरकार तथा केन्द्र सरकार ने कुछ उपाय किये है लेकिन वे अपर्याप्त हैं। पश्चिमी हवाओं के कारण दिल्ली से कुहासा प्रदूषण उत्तर प्रदेश के अन्य शहरों में हो गया है जिनमें कानपुर, लखनउ, मेरठ, आगरा, वाराणसी आदि शामिल है। प्रदेश में इस समय रबी की बुवाई हो रही है तथा किसान खेतो को तैय्रार कर रहे है इस प्रक्रिया में वे खेतों का खर पतवार जला रहे है जो वायु प्रदूषण तथा कुहासे के आमंत्रण दे रहे हैं। कुहासे की मार से पशिचमी उत्तर प्रदेश के जिले तथा मध्य उत्तर प्रदेश के जिले हर वर्ष प्रभावित होते हैं लेकिन राज्य सरकारों को प्राथमिकता सूची में इस समस्या से निपटने की कोई ठोस नीति नही है और ना ही इच्छाशक्ति  है। डाक्टर मोहम्मद सिकंदर क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण अधिकारी के अनुसार कुहासे से बचने के लिये वाहन उत्सर्जन कम से कम करने के अलावा खर पतवार तथा अन्य कूड़े को खुले में न जलाया जाना तथा खाली स्थानों पर वनीकरण करना ही इसके सरलतम उपाय हैं। नागरिको  इस कठिन समय में अपना योगदान देना होगा।
गैसो का असर
कार्बन मोनोऑक्साइड-रंग तथा गंधहीन यह गैस कार तथा मोटरसाइकिल वाहनों से उत्सर्जित धुंए में होती है। मानव शरीर पर इसका प्रभाव सिरदर्द, थकान, दृष्टि में कमजोरी तथा हृदय पर पाया गया है।
सल्फरडाई ऑक्साइड-कोयला तथा ईंधन तेल को जलाये जाने पर यह उत्सर्जित होती है।यह अस्थमा के रोगियों के श्वसन तंत्र को संकुचित कर देती है। जिससे पीड़ित को श्वसन में परेशानी होती है। 
नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड-लाल तथा भूरे रंग की यह गैस वायुमंडल में मौजूद आक्सीजन के साथ क्रिया होने पर बनती है तथा इसका दुष्प्रभाव श्वसन तंत्र को प्रभावित करता है। इस गैस की उपस्थिति से कुहासे का असर चार गुणा अधिक तक हो जाता है।
सीसा या लेड-वाहनों से उत्सर्जित सीसायुक्त गैसोलीन धातु रिफाइनरी से काफी मात्रा में उत्सर्जित होती है। इसका प्रभाव गुर्दे तथा फेफड़े पर होता है।
कुहासे के सूचकांक की छह श्रेणियां
गहरा हरा रंग-वायु की अच्छी गुणवत्ता ,कोई विपरीत प्रभाव नहीं, सूचकांक स्तर 1 से 50 के मध्य
हल्का हरा रंग-संवेदनशील लोगों को श्वसन में परेशानी सूचकांक स्तर 51 से 100 के मध्य
गुलाबी रंग- मध्यम स्तर का प्रदूषण ,श्वसन में परेशानी , सूचकांक स्तर 100 से 200 के मध्य
पीला रंग-अस्थमा और हृदय रोगियों को कठिनाई ,सूचकांक स्तर 200 से 300 के मध्य
लाल रंग-सामान्य लोगों में फेफड़े तथा अन्य बीमारियो  का खतरा सूचकांक स्तर 301 से 400 के मध्य
गहरा  लाल रंग-गंभीर, स्वस्थ लोगों पर गंभीर प्रभाव सूचकांक स्तर 401 से 500 के मध्य
कृषि वैज्ञानिक की सलाह
प्रख्यात कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन ने दिल्ली के आस पास के राज्यों में पराली जलाये जाने से बढ़े वायु प्रदूषण को खत्म करने के सुझाव दिये हैं। उनका कहना था कि किसानों को पराली जलाए जाने से आप रोक नहीं सकते क्योंकि उन्हे अगली फसल के लिये खेत तैयार करने हैं लेकिन अगर उसका व्यवसायीकरण कर दिया जाय तो यह जलाना रुक सकता है। पराली का उपयोग पशुचारे, कार्ड बोर्ड तथा अन्य कामों में किया जा सकता है। 

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