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दुनिया की सबसे गंदी नदियां

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दुनिया की सबसे गंदी नदियां

मिलों और फैक्ट्रियों का कचरा सीधा नदी में जाता है। यहां मरे हुए जानवर, नाले, सीवेज और प्लास्टिक भी पहुंचते हैं, जो बूढ़ी गंगा को और गंदी कर रहे हैं...

दुनिया की सबसे गंदी नदियां

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दुनिया की सबसे गंदी नदियां

कुयाहोगा (अमेरिका): ओहायो प्रांत में 1950 के दशक में अचानक यह नदी उस वक्त सुर्खियों में आई, जब इसमें आग लग गई। बाद में पता चला कि उद्यगों की वजह से प्रदूषित नदी के तट पर तेल की धार फैली थी, जिसमें आग लगी। इसके बाद पर्यावरण विशेषज्ञों ने इसे साफ करने की योजनाएं शुरू कीं।

मातांजा (अर्जेंटीना): राजधानी ब्यूनस आयर्स के पास बहती यह नदी करीब 35 लाख लोगों की सेवा करती है। लेकिन हाल के दिनों में यह बुरी तरह गंदगी का शिकार हुई है। इसके लिए करोड़ों डॉलर की राशि 1993 में निर्धारित की गई लेकिन सालों बाद पता चला कि इसका कुछ हिस्सा ही सही जगह खर्च हो पाया।

सीटारम (इंडोनेशिया): इसे दुनिया की सबसे गंदी नदियों में गिना जाता है। पिछले 20 साल में इसके आस पास 50 लाख की आबादी बसी है। इसके साथ ही प्रदूषण और गंदगी भी बढ़ी, जिससे निपटने के उपाय नहीं किए गए। इसके संपर्क में आने वाले हर व्यक्ति की सेहत खतरे में बताई जाती है।

बूढ़ी गंगा (बांग्लादेश): बांग्लादेश की राजधानी में करीब 40 लाख लोग रहते हैं। उन्हें हर रोज जल प्रदूषण से निपटना पड़ता है। मिलों और फैक्ट्रियों का कचरा सीधा नदी में जाता है। यहां मरे हुए जानवर, नाले, सीवेज और प्लास्टिक भी पहुंचते हैं, जो बूढ़ी गंगा को और गंदी कर रहे हैं।

गंगा (भारत): भारत की सबसे पवित्र मानी जाने वाली गंगा नदी देश की सबसे प्रदूषित नदियों में गिनी जाती है। धार्मिक कर्म कांड भी इस नदी को काफी गंदा करते हैं।

यमुना (भारत): भारत की दूसरी सबसे पवित्र समझी जाने वाली यमुना नदी की भी वही हालत है, जो गंगा की। राजधानी दिल्ली और ताजमहल के शहर आगरा से होकर गुजरने वाली यमुना तो इतनी गंदी हो गई है कि कई जगहों पर सिर्फ नाले की तरह दिखती है।

जॉर्डन (जॉर्डन): मध्यपूर्व की इस नदी की तुलना आकार में तो नहीं लेकिन महत्व में गंगा से जरूरी की जा सकती है। इस्राएल, फलीस्तीन और जॉर्डन से होकर गुजरने वाली इसी नदी के किनारे ईसा महीस का बपतिस्मा किया गया। लेकिन गंदगी में भी यह गंगा को टक्कर दे रही है।

पीली नदी (चीन): लांझू प्रांत के लोग उस वक्त हक्के बक्के रह गए, जब उन्होंने एक दिन देखा की पीली नदी के जल का रंग लाल पड़ गया है। किसी अनजाने सीवर से आए प्रदूषित पानी ने इसका रंग बदल दिया। चीन ने तेजी से आर्थिक विकास किया है, जिसकी कीमत नदियों को भी चुकानी पड़ी है।

मिसीसिपी (अमेरिका): इस नदी के किनारे प्रदूषण इतना ज्यादा है कि उसे डेड जोन कहा जाता है। नदी का प्रदूषण सागर तक पहुंचता है। यह अमेरिका के 31 और दो कनाडेयाई राज्यों से होकर बहती है।

भूमध्य सागर दुनिया के सबसे प्रदूषित समुद्रों में से एक

वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर की रिपोर्ट में कहा गया है कि भूमध्यसागर ग्रह पर सबसे अधिक प्लास्टिक-प्रदूषित समुद्रों में से एक बन गया है। माइक्रोप्लास्टिक्स का बड़ा संचय भूमध्य सागर पर गंभीर प्रभाव छोड़ रहा है, साथ ही कछुओं, मुहरों और व्हेल सहित 134 प्रजातियों के अस्तित्व को खतरे में डाल रहा है। डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के प्रबंधक एरिक लिंडेबर्ज ने बताया, ‘‘ऐसे संकेत हैं कि संपूर्ण भूमध्यसागरीय पारिस्थितिकी तंत्र व्यावहारिक रूप से प्लास्टिक प्रदूषण से प्रभावित है, और लंबे समय में इसका मानव स्वास्थ्य और मछली पकड़ने पर निर्भर समुदायों की अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।‘‘ रिपोर्ट के अनुसार, भूमध्यसागर उन प्रदूषण हॉटस्पॉट्स में से एक है, जो माइक्रोप्लास्टिक सांद्रता के थ्रेशोल्ड स्तर को पार कर गया है, जिससे ‘‘महत्वपूर्ण पारिस्थितिक जोखिम‘‘ हो सकते हैं। लिंडबजर्ग ने जोर देकर कहा कि भूमध्यसागर में 100 से अधिक प्रजातियां प्लास्टिक प्रदूषण की शिकार हैं, और कहा कि इन सामग्रियों के अंतर्ग्रहण के कारण समुद्री कछुए और समुद्री पक्षी सबसे अधिक प्रभावित जानवरों में से हैं। मछली पकड़ने के उद्योग पर संभावित प्रभावों पर, विशेषज्ञ ने बताया कि हालांकि इस बात का कोई निर्णायक सबूत नहीं है कि भूमध्यसागरीय मछली खाना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, फिर भी पारिस्थितिक तंत्र के विनाश से उन समुदायों के लिए काफी आर्थिक जोखिम पैदा हो गया है जो मछली पकड़ने पर निर्भर हैं। लिंडबर्ज ने कहा, ‘‘प्लास्टिक प्रदूषण के दीर्घकालिक प्रभाव अभी भी अज्ञात हैं, लेकिन जैसा कि सिद्ध किया गया है, समुद्री पारिस्थितिक तंत्र पूरी तरह से पीड़ित है, जो हमें यह सोचने के लिए प्रेरित करता है कि मनुष्यों के लिए व्यावसायिक रूप से महत्वपूर्ण प्रजातियां परिणाम भुगतेंगी।‘‘ डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के आंकड़ों के मुताबिक प्रदूषण मुख्य रूप से फ्रांस, तुर्की, स्पेन, मिस्र और इटली से आता है। अन्य समुद्री पारिस्थितिक तंत्र जैसे मैंग्रोव और प्रवाल भित्तियाँ, जो मनुष्यों और समुद्री प्रजातियों के लिए महत्वपूर्ण तत्व प्रदान करते हैं, को भी गंभीर रूप से खतरा है।

बगिया में लगाएं सुंदर फूलों के पौधे

घर की बगिया में लगाएं मौसमी और सुंदर फूल। गुलदाउदी और डहलिया के साथ-साथ कैलेंडुला, नैस्टर्टियम, सिनेरेरिया आदि पौधे भी कई रंग के फूल लेकर आते हैं। इन फूलों के पौधों को रंग, आकार और रूप की जबरदस्त विविधता का लाभ मिलता है। ये पौधे कम समय में और आसानी से बागीचे में प्रतिस्थापित किए जा सकते हैं। इन्हें घर की क्यारियों, बाउंड्रीवॉल के किनारे, खिड़की पर बर्तन या बॉक्स आदि की मदद से लगा सकते हैं। कैलेंडुला बीज द्वारा उगाया जाता है, जिसे पॉट मैरीगोल्ड भी कहा जाता है। कैलेंडुला पौधे में सुंदर और पीले - नारंगी रंग के फूल खिलते हैं। इस पौधे को सीधी धूप में ही रखें। पानी की आवश्यकता भी इसे कम होती है। केवल कभी-कभी पानी देने पर ये पौधा अच्छी तरह पनपता है और फूल देता है। कैलेंडुला में जो फूल मुरझा जाएं उन्हें हटा दें, जिससे पौधों में और नई कलियां खिलने लगेंगी। नैस्टर्टियम फूल बहुमुखी है। इस पौधे के फूल और पत्तियां खाने योग्य होती हैं। इसके अलावा नैस्टर्टियम फूलों का चमकीला रंग और मनमोहक सुगंध सम्पूर्ण वातावरण को सुखद बना देते हैं। नैस्टर्टियम को गमले और क्यारियों में आसानी से लगाया जा सकता। इसके पौधे को अधिक देखभाल की आवश्यकता नहीं पड़ती। सिनेरेरिया छाया में बढ़ता और इसके चमकीले फूल नीले, गुलाबी, बरगंडी, सफेद, बैंगनी और लाल रंगों में खिलते हैं। सिनेरेरिया जलभराव को सहन नहीं कर सकता इसका ध्यान रखें। गुलदाउदी के फूलों से घर में एक सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है। इसके फूल बड़े और सुवासित होते हैं। गुलदाउदी उगाने के लिए बगिया की मिट्टी सबसे अच्छी होती है क्योंकि इसकी जड़ें काफी छोटी होती हैं। इसमें जो पत्तियां सूख गई हैं, उन्हें छांट दें और खाद पानी का विशेष ध्यान रखें। गमलों में पानी बिल्कुल ना रुकने दें नहीं तो पौधा मर जाएगा। डहलिया को बीज या कंदों दोनों की मदद से लगा सकते हैं। इस पौधे को धूप बहुत भाती है। अधिक धूप मिलने पर इसके फूलों का आकार बढ़ जाता है। डहलिया पर 4 से 6 शाखाओं को ही रखें और ऊपर की  पत्तियों को हाथ से खींचकर हटा दें। जिन्निया को अक्सर बालकनियों और छतों पर कंटेनरों में उगाया जाता है क्योंकि इसके लिए धूप वाली जगह बेहतर होती है। रंगीन फूलों वाले जिन्निया के बीजों को अंकुरित होने के लिए थोड़े गर्म तापमान की आवश्यकता होती है। लगभग 45 से 50 दिनों के बाद जिन्निया के फूल खिलने लगते हैं। कुछ तनों को हाथ से खींचकर हटा दें जिससे ज्यादा फूल आएंगे और पौधा झाड़ीनुमा बनेगा। वहीं सिंचाई के लिए पौधे और पत्तियों पर पानी डालने के बजाय मिट्टी पर पानी डालें। 

 

 

 

 

 

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