Thinking Point
अभिषेक दुबे (पर्यावरणएवं पशुअधिकार कार्यकर्ता, नेचर क्लबफाउंडेशन, गोण्डा(उप्र)
आज जलवायु परिवर्तन, जैव विविधताका विनाश, जल संकट, वनों कीकटाई औरभूमि क्षरणजैसी समस्याएंमानव सभ्यताके सामनेसबसे बड़ेसंकट बनकरउभरी हैं।इन सभीसंकटों केपीछे एकमहत्वपूर्ण लेकिन अक्सर अनदेखा कारणहै — पशुपालन।आधुनिक पशुपालनप्रणाली नकेवल वैश्विकखाद्य आपूर्तिकी असमानताओंको बढ़ावादेती है, बल्कि पर्यावरणको भीगहराई सेक्षति पहुंचारही है।यह लेखविस्तारपूर्वक इस विषय की पड़तालकरता है, वैज्ञानिक आँकड़ों और विश्वसनीय स्रोतोंके साथ।
आज पशुपालन वैश्विकभूमि उपयोगका सबसेबड़ा हिस्सालेता है।फूड एंडएग्रीकल्चर ऑर्गनाइज़ेशन (FAO) की रिपोर्ट केअनुसार, पशुपालनविश्व कीकृषि भूमिका 77% भागउपयोग करताहै, फिरभी यहमानव भोजनमें केवल 18% कैलोरी और 37% प्रोटीन ही प्रदानकरता है।यह भूमिउपयोग इतनाअधिक हैकि यदिपूरी मानवतापौधों परआधारित आहारअपनाए, तोकुल कृषिभूमि कालगभग 75% हिस्सामुक्त होसकता है, जो अमेरिका, चीन, यूरोपऔर ऑस्ट्रेलियाके संयुक्तक्षेत्रफल के बराबर है। इसभूमि कोपुनः वनों, घास केमैदानों औरजैव विविधतासे भरपूरआवासों मेंबदला जासकता हैऔर धरतीकी सारीपर्यावरणीय समस्याएं सुलझाई जा सकतीहैं, धरतीफिर सेरहने लायकस्वर्ग बनसकती है।
पशुपालन जलवायु परिवर्तनमें भीएक प्रमुखभूमिका निभाताहै। यहतीनों प्रमुखग्रीनहाउस गैसों कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂), मीथेन (CH₄) और नाइट्रस ऑक्साइड (N₂O) का उत्सर्जनकरता है। UN FAO की रिपोर्ट के अनुसार, पशुपालनवैश्विक ग्रीनहाउसगैस उत्सर्जनका लगभग 14.5% उत्पन्न करता है, जो किसभी वाहनों, हवाई जहाज़ों, ट्रेनों औरजहाजों सेहोने वालेउत्सर्जन सेअधिक है।मीथेन, जोमुख्यतः गायोंकी पाचनप्रक्रिया से निकलता है, CO₂ कीतुलना में 20 वर्षों के पैमाने पर 80 गुनाअधिक गर्मीको पकड़सकता है।वहीं नाइट्रसऑक्साइड, जोगोबर औररासायनिक उर्वरकोंसे निकलताहै, CO₂ से 300 गुना अधिकशक्तिशाली होता है। पशुपालन केलिए दुनियाभरमें बड़ेपैमाने परजंगल काटेजा रहेहैं जोअप्रत्यक्ष रूप से कार्बन डाइऑक्साइडका उत्सर्जनबढ़ाते हैं।अरबों कीतादात मेंपैदा कराएजाने वालेहरा चाराखाकर पागुर(Rumination) करने वालेपशु जैसेगाय, भैंस, भेड़, बकरीकी पाचनक्रिया सेउत्सर्जित मीथेन वैश्विक मीथेन उत्सर्जनमें करीब 44% का योगदानरखती है।वहीं नाइट्रसआक्साइड केउत्सर्जन काप्रमुख कारणखेती मेंउर्वरकों काप्रयोग हैऔर चूंकि 77% खेती पशुओंके चारे, दाने केलिए कीजा रहीअतः नाइट्रसआक्साइड केकुल वैश्विकउत्सर्जन मेंपशुपालन कायोगदान करीब 53% माना गयाहै। इनआंकड़ों केअतिरिक्त पशुपालनके लिएसदियों सेजो बड़ेपैमाने परजमीन काप्रयोग होरहा है, चूंकि वोजमीन पहलेजंगल हीहुआ करतीथी, अतःउन जंगलोंकी अनुपस्थितिमें धरतीकी कार्बनडाईआक्साइड को सोखने की क्षमतामें जोकमी लगातारजारी है, उससे धरतीके बढ़तेतापमान कीयदि हमगड़ना करेंतो शायदपशुपालन आजदुनिया मेंग्लोबल वार्मिंगका नं 1 कारण सिद्धहो। पशुपालनके लिएधरती केअधिकांश जंगलोंऔर अन्यपर्यावासों का विनाश धरती केप्रत्येक प्राकृतिकचक्र मेंऐसी दीर्घकालीनचोट हैजिससे पर्यावरणका हरअंग हमेशाअसंतुलित रहेगाभले हमकुछ पौधारोपण, वायडलाइफ कंजर्वेशनके प्रयासआदि जारीरखें। औरइस तरहग्लोबल वार्मिंगको बढ़ानेमें पशुपालनकी बहुतबड़ी हिस्सेदारीहै।
पशुपालन विश्व स्तरपर वनोंकी कटाईका प्रमुखकारण है।अमेज़न वर्षावनकी 80% सेअधिक कटाईपशुओं कीचराई औरचारे (मुख्यतःसोया) केउत्पादन केलिए कीगई है।और नसिर्फ अमेजनके जंगलबल्कि उष्णकटिबंधीयक्षेत्र केअधिकांश वनोंकी कटाईमें मांस, डेयरी, अंडाउद्योग केलिए बढ़ाईजाती पशुओंकी संख्याको खिलानेके लिएबड़े पैमानेपर खेतके लिएजंगलों कीकटाई जिम्मेदारहै। भारतमें भीबड़े पैमानेपर पशुओंके आहारके लिएमक्का, गेंहू, ज्वार, बाजरा, सोयाबीन, हराचारा आदिके उत्पादनमें बड़ेपैमाने परकृषि भूमिका प्रयोगहो रहाऔर मांस, दूध, अंडेकी बढ़तीमांग केलिए इसकीमांग औरज्यादा बढ़रही जिससेवन, गांवमें बागबगीचे, घासके मैदान, झाड़ियां तेजीसे नष्टकी जारहीं औरकरोड़ों कीतादात मेंपैदा कराएजाने वालेगाय, भैंस, बकरी, भेड़आदि कीअतिचराई सेभी गांव, जंगल कहींभी हरियालीबढ़ नहींपा रही।इस वनोंकी कटाईके कारणन केवलजलवायु असंतुलनबढ़ता है, बल्कि जैवविविधता काभारी नुकसानहोता है।दुनिया भरमें प्रजातियाँतेजी सेविलुप्त होरही हैंऔर वैज्ञानिकइस समयको "छठामहाविलुप्तीकरण" (Sixth Mass Extinction) मानते हैं, जिसकाप्रमुख कारणप्राकृतिक पर्यावासों का नाश औरपशुपालन सेजुड़ी गतिविधियाँहैं। हरसाल लगभग 10,000 प्रजातियाँ मानव गतिविधियोंके कारणविलुप्त होरही हैं।
जल संकट मेंभी पशुपालनकी भूमिकाअत्यधिक चिंताजनकहै। एककिलो मांसके उत्पादनमें औसतन 15,400 लीटर पानी, 1 किलो दूध केउत्पादन मेंकरीब 10,000 लीटर पानी लगता हैजबकि एककिलो दालमें लगभग 1,800 लीटर और गेहूं में केवल 1,500 लीटर। कुल मिलाकर पशुपालन मानवउपभोग योग्यमीठे जलका एकतिहाई सेअधिक उपयोगकरता है।जलवायु परिवर्तनऔर जनसंख्यावृद्धि केइस युगमें, यहजल संसाधनोंपर एकअसहनीय दबावडालता है।
मत्स्य आखेट भीजल पारिस्थितिकतंत्र कोबर्बाद कररहा है। FAO के अनुसार, दुनिया कीलगभग 90% मछलियाँया तोअधिकतम दोहनकी स्थितिमें हैंया उसकाभी अतिक्रमणकर चुकीहैं। महासागरोंमें "बायकैच" — यानी अनजाने मेंपकड़ी गईमछलियाँ, डॉल्फ़िन, समुद्री कछुए — अरबों कीसंख्या मेंहर सालमारे जातेहैं। तटीयपारिस्थितिक तंत्र, प्रवाल भित्तियाँ, समुद्रीघास केमैदान औरजलीय खाद्यश्रृंखलाएं गंभीर संकट में हैं।मीठे जलकी मछलियाँभी स्थानीयरूप सेकई क्षेत्रोंमें विलुप्तहो चुकीहैं। इसकेसाथ हीमत्स्य पालनके कारणविदेशी औरहाइब्रिड मछलियोंका पालनभी तालाबों, झीलों कीजैवविविधता खत्म कर रहा औरमत्स्य पालनमें भारीमात्रा मेंभूजल सेतालाबों कोभरना भीआज गांवोंमें जलसंकट काबड़ा कारणबन रहाहै।
पशुपालन से उत्पन्नअपशिष्ट जलस्रोतों मेंजाने सेशैवाल कीअत्यधिक वृद्धि (Algal Bloom) होती है, जिससेजल मेंऑक्सीजन कीभारी कमीहो जातीहै और "Dead Zones" का निर्माण होताहै। अमेरिकामें अकेले 500 से अधिकऐसी मृतजल क्षेत्रहैं जहाँजीवन लगभगसमाप्त होचुका है।वहीं महासागरोंमें अत्यधिक CO₂ के घुलनेसे उनका pH गिर रहाहै — इसेमहासागर अम्लीकरणकहा जाताहै — जिससेप्रवाल भित्तियाँऔर शेलधारीजीव नष्टहो रहेहैं। यहसमुद्री जैवविविधता परसीधा हमलाहै। भारतमें गांवोंमें पशुओंके मल, मूत्र बहतेहुए आसपासके तालाबों, गड्ढों, नदियोंमें जातेहैं औरइसीकरण उनमेंसे अधिकांशमें हरेरंग कीकाई, जलकुंभीका प्रकोपभी बढ़ताहै, पानीमें घुलीआक्सीजन कमहोती हैऔर वेसभी जलराशियां मररही हैं।
अत्यधिक चराई सेहरियाली भीनष्ट होरही है।संयुक्त राष्ट्र (UNCCD) के अनुसार, विश्व की 25% भूमिपहले सेही क्षरणकी अवस्थामें हैऔर इसकाएक प्रमुखकारण अत्यधिकपशु चराईहै। मिट्टीकी उर्वरताघट रहीहै, मरुस्थलीकरणबढ़ रहाहै औरजलवायु अनुकूलनक्षमता घटरही है।अत्यधिक चराईसे हरियालीभी नष्टहो रहीहै। संयुक्तराष्ट्र (UNCCD) के अनुसार, विश्व की 25% भूमि पहलेसे हीक्षरण कीअवस्था मेंहै औरइसका एकप्रमुख कारणअत्यधिक पशुचराई है।मिट्टी कीउर्वरता घटरही है, मरुस्थलीकरण बढ़ रहा है औरजलवायु अनुकूलनक्षमता घटरही है।
पशुपालन से जुड़ेऔर भीगंभीर खतरेहैं — ज़ूनोटिक (पशुजन्य) बीमारियाँ। जैसे COVID-19, स्वाइन फ्लू, बर्डफ्लू, एंथ्रेक्स, इबोला, HIV आदि सभी बीमारियाँ पशुओंसे इंसानोंमें आईहैं। जानवरोंमें अत्यधिकएंटीबायोटिक प्रयोग से "सुपरबग्स" काखतरा भीबढ़ रहाहै — जोसामान्य दवाओंको बेअसरबना सकतेहैं। इसकेअलावा, जबवन्यजीवों के आवास नष्ट होतेहैं, तोवे संक्रमितक्षेत्र मेंआ जातेहैं औरबीमारियाँ तेजी से फैलती हैं।
भारत की बातकरें तोस्थिति औरभी चिंताजनकहै। भारतदुनिया कासबसे बड़ादूध उत्पादकऔर दूसरासबसे बड़ामांस उत्पादकदेश है।यहाँ कीलगभग 60% कृषिभूमि अप्रत्यक्षरूप सेपशुपालन (दूध, मांस, अंडा) के लिएउपयोग होतीहै। भारतमें भूजलका लगभग 85% कृषि मेंउपयोग होताहै, जिसमेंसे बड़ीमात्रा चाराउत्पादन केलिए है।गेहूं, दलहनकी फसलोंमें तो 2-4 बार हीसिंचाई करनापड़ता हैजबकि पशुओंके हरेचारे केउत्पादन मेंएक फसलमें 10-15 बार सिंचाई की जातीहै। गंगाजैसी नदियोंमें पशुपालनअपशिष्ट औरमांस उद्योगके कारणभारी प्रदूषणहै। वनोंकी कटाईऔर चराईके दबावसे बाघों, हाथियों औरअन्य वन्यजीवों केआवास लगातारसिकुड़ते जारहे हैं।जलवायु परिवर्तनके प्रतिभारत अत्यधिकसंवेदनशील है और पशुपालन इसकाएक प्रमुखकारण है, जिसे अक्सरनजरअंदाज कियाजाता है।
यदि मानवता पौधोंपर आधारितआहार कोअपनाए, तोन केवलसभी लोगोंको पोषणमिल सकताहै, बल्किपर्यावरणीय दबाव भी कई गुनाकम होगा।पौधों परआधारित आहारअपनाने सेग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 50% सेअधिक, जलउपयोग में 70% और भूमिउपयोग में 76% तक कीकटौती कीजा सकतीहै। महासागरोंसे मत्स्यआखेट कोसमाप्त करनेसे जलीयपारिस्थितिकी तंत्र स्वयं को तेजीसे पुनःस्थापितकर सकतेहैं — जैसेकई अध्ययनोंने लॉकडाउनके दौरानदेखा किमछलियों औरडॉल्फ़िन कीआबादी मेंवृद्धि हुई।और सबसेअहम बातयह हैकि हमविशाल क्षेत्रोंको पुनःवनों मेंबदल सकतेहैं, जिससेजलवायु संकट, जैव विविधताक्षरण औरपारिस्थितिक असंतुलन जैसे कई मुद्देस्वतः हलहो सकतेहैं।
आज धरती परमनुष्य कीआबादी करीब 8 अरब हैऔर हमहर वर्षकरीब 70 अरबसे ज्यादागाय, भैंस, भेड़, बकरी, सूअर, मुर्गियांआदि पशुओंको जबरनपैदा करातेहैं, धरतीकी अधिकांशकृषि उनकेलिए करतेहैं, औरफिर उन्हेंमार देतेहैं। धरतीके सभीस्तनधारी प्राणियोंका यदिबायोमास(भार) देखें तोआज कुलस्तनपाई प्राणियोंके बायोमासका 62% फार्मके पशुहैं, 34% मनुष्यहैं औरअन्य करीब 6000 प्रजातियों के वन्य स्तनधारी जीवोंका कुलबायोमास सिर्फ 4% रह गयाहै।
कृत्रिम नस्लोंके जानवरोंकी यहअतिजनसंख्या मनुष्य की अतिजनसंख्या कीतरह हीसबसे गंभीरसमस्या है।मनुष्य केद्वारा हीजबरन बढ़ाईजाने वालीये अतिजनसंख्याआज धरतीपर जंगल, वन्यजीव, नदी, तालाब, समुद्रआदि सभीको निगलरही हैऔर इसनाते इसेनजरंदाज करनामहज एकमूर्खता हीकही जासकती है।
निष्कर्षतः यदि हमेंएक स्थिर, समृद्ध औरसुरक्षित भविष्यचाहिए, तोपशुपालन कोचरणबद्ध रूपसे समाप्तकरना, वैश्विकखाद्य प्रणालीको पौधोंपर आधारितटिकाऊ खेतीकी ओरमोड़ना, औरव्यक्तिगत स्तर पर पौधों परआधारित आहारको अपनानाअनिवार्य है।यह केवलएक जीवनशैलीविकल्प नहीं, बल्कि यहपृथ्वी, पर्यावरणऔर संपूर्णजीवन केलिए एकनैतिक औरवैज्ञानिक जिम्मेदारी है।
पृथ्वी को बचानेकी शुरुआत हमारीथाली से होती है।
Leave a comment