A First-Of-Its-Kind Magazine On Environment Which Is For Nature, Of Nature, By Us (RNI No.: UPBIL/2016/66220)

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TreeTake is a monthly bilingual colour magazine on environment that is fully committed to serving Mother Nature with well researched, interactive and engaging articles and lots of interesting info.

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महिलाओं के लिए वरदान है सिंघाड़ा
यह बात तो हम सभी जानती हैं कि बदलते मौसम के कारण होने वाली बीमारियों से बचने के लिए मौसमी फल खाना बहुत फायदेमंद होता है। उन्ही में से एक सिंघाड़ा है। सर्दियों की शुरूआत होने पर सिंघाड़ा बाजारों में मिलने लगता है। सिंघाड़ा ना केवल खाने में बेहद टेस्टी  होता है बल्कि हेल्थ के लिए बहुत फायदेमंद होता है, खासतौर पर यह महिलाओं की हेल्थ के लिए बहुत फायदेमंद होता है। महिलाएं पीरियड्स, प्रेगनेंसी, यूरिन जैसी कई प्रॉब्लम से परेशान रहती है ऐसे में सिंघाड़े का सेवन करने से आराम मिलता है। इसमें भरपूर मात्रा में विटामिन ए, सिट्रिक एसिड, फास्फोरस, प्रोटीन, निकोटीनिक एसिड, विटामिन सी, मैग्नीज, कार्बोहाइड्रेट्स, एनर्जी, फाइबर, कैल्शियम, जिंक, आयरन, पोटैशियम, सोडियम, आयोडीन, मैग्निशियम जैसे पोषक तत्व मौजूद होते हैं जो हमारी बॉडी के लिए बेहद फायदेमंद माने जाते है।
जो महिलाएं गर्भवती हैं उनके लिए सिंघाड़ा खाना बहुत ही फायदेमंद होता है। अगर सिंघाड़ा खाया जाए तो इससे ल्यूकोरिया नामक बीमारी भी ठीक हो जाती है। इसके अलावा जिन महिलाओं का गर्भ, गर्भकाल पूरा होने से पहले ही गिर जाता है उन्हें भी सिंघाड़े का सेवन करना चाहिए। सिंघाड़े  से गर्भपात नहीं होता है। इसके उपयोग से भ्रूण को पोषण मिलता है और मां की सेहत भी अच्छी रहती है। सिंघाड़े में पॉलीफेनोलिक और फ्लेवोनॉइड एंटीऑक्सीडेंट पाए जाते हैं। इसके अलावा यह एंटीबैक्टीरियल और एंटीकैंसर के गुणों से भरपूर होता है। जो महिलाएं सिंघाड़े खाती हैं उन्हें नींद ना आने की समस्या से छुटकारा मिलता है और वह रोजाना भरपूर नींद लेती हैं। सिंघाड़े का सेवन गले की कई प्रॉब्लम्स  में राहत पहुंचाता है। इसमें एंटीऑक्सीडेंट गुण पाए जाते हैं जो गले का बैठना, खराश, टॉन्सिल आदि से छुटकारा दिलाने में हेल्प करता है। सिंघाड़ा हेल्थ के लिए ही नहीं महिलाओं के की सुंदरता को बढ़ाने में भी मददगार होता है। जी हां यह खास फल ब्लड प्यूरीफायर के रूप में काम करता है। इसे खाने से ब्लड साफ हो जाता है और स्किन में ग्लो आता है। इसके अलावा बालों के लिए सिंघाड़े खाना बहुत अच्छा होता है, इसमें मौजूद तत्व बालों को खराब होने से रोकते हैं। सिंघाड़े खाने से बालों में मजबूती आती है और उन्हें पोषक तत्व भी प्राप्त होते है। एक उम्र के बाद ज्यादातर महिलाओं की बॉडी में कैल्शियम की कमी पाई जाती है। लेकिन सिंघाड़ा खाने से इस कमी को दूर किया जा सकता है क्योंकि इसमें कैल्शियम भरपूर मात्रा में पाया जाता है। इसे खाने से हड्डियां व दांत मजबूत हो जाते हैं। कैल्शियम के कारण ये हड्डियों के साथ साथ आंखों के लिए भी लाभकारी होता है। अस्थमा के मरीजों के लिए भी सिंघाड़े का सेवन बहुत लाभकारी होता है। प्रतिदिन इसे खाने से अस्थमा की समस्या से आराम मिलता है। इसके अलावा अगर आपके बॉडी में किसी जगह पर दर्द या सूजन की समस्या है तो सिंघाड़े का लेप बनाकर लगाएं। ऐसा करने से सूजन की समस्या दूर हो जाएगी। सर्दियों के मौसम में ज्यादातर महिलाएं कम पानी पीती हैं। ऐसे में बॉडी में डिहाइड्रेशन की समस्या हो जाती है। लेकिन अगर आप रेगुलर सिंघाड़ा खाती हैं तो आप डिहाइड्रेशन की समस्या से बची रह सकती हैं। इसके अलावा इसे खाने से दस्त की समस्या भी दूर होती है।
पाचन प्रणाली के लिहाज से सिंघाड़ा भारी होता है, इसलिए ज्यादा खाना नुकसानदायक भी हो सकता है। रोजाना 5-10 ग्राम ताजे सिंघाड़े खाने चाहिए। पेट में भारीपन व गैस बनने की शिकायत हो सकती है। सिंघाड़ा खाकर तुरंत पानी न पिएं। इससे पेट में दर्द हो सकता है। कब्ज हो तो सिंघाड़े खाने से बचना चाहिए।
गुणों की खान है बथुवा
साग और रायता बना कर बथुवा अनादि काल से खाया जाता  रहा है लेकिन क्या आपको पता है कि विश्व की सबसे पुरानी महल बनाने की पुस्तक शिल्प शास्त्र में लिखा है कि ’हमारे बुजुर्ग अपने घरों को हरा रंग करने के लिए प्लस्तर में बथुवा मिलाते थे’ और हमारी बुढ़ियां ’सिर से ढेरे व फांस (डैंड्रफ) साफ करने के लिए बथुवै के पानी से बाल धोया करती थीं।’ बथुवा विटामिन ठ1ए ठ2ए ठ3ए ठ5ए ठ6ए ठ9 और विटामिन ब् से भरपूर है तथा बथुवे में कैल्शियम, लोहा, मैग्नीशियम, मैगनीज, फास्फोरस, पोटाशियम, सोडियम व जिंक आदि मिनरल्स हैं। 100 ग्राम कच्चे बथुवे यानि पत्तों में 7.3 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 4.2 ग्राम प्रोटीन व 4 ग्राम पोषक रेशे होते हैं। कुल मिलाकर 43 ज्ञबंस होती हंै। जब बथुवा शीत (मट्ठा, लस्सी) या दही में मिला दिया जाता है तो यह किसी भी मांसाहार से ज्यादा प्रोटीन वाला व किसी भी अन्य खाद्य पदार्थ से ज्यादा सुपाच्य व पौष्टिक आहार बन जाता है’ और साथ में बाजरे या मक्के की रोटी, मक्खन व गुड़  हो तो इस खाने के लिए देवता भी तरसते हैं। जब हम बीमार होते हैं तो आजकल डॉक्टर सबसे पहले विटामिन की गोली ही खाने की सलाह देते हैं। गर्भवती महिला को खासतौर पर विटामिन बी, सी व लोहे की गोली बताई जाती है और बथुवे में वो सबकुछ है ही, कहने का मतलब है कि ’बथुवा पहलवानो से लेकर गर्भवती महिलाओं तक, बच्चों से लेकर बूढों तक, सबके लिए अमृत समान है।’ यह साग प्रतिदिन खाने से गुर्दों में पथरी नहीं होती। बथुआ आमाशय को बलवान बनाता है, गर्मी से बढ़े हुए यकृत को ठीक करता है। बथुए के साग का सही मात्रा में सेवन किया जाए तो निरोग रहने के लिए सबसे उत्तम औषधि है। बथुए का सेवन कम से कम मसाले डालकर करें। नमक न मिलाएँ तो अच्छा है, यदि स्वाद के लिए मिलाना पड़े तो काला नमक मिलाएँ और देशी गाय के घी से छौंक लगाएँ। बथुए का उबाला हुआ पानी अच्छा लगता है तथा दही में बनाया हुआ रायता स्वादिष्ट होता है। किसी भी तरह बथुआ नित्य सेवन करें। बथुवै में जिंक होता है जो कि शुक्राणुवर्धक है मतलब किसी को पुरुषत्व की कमजोरी हो तो उसको भी दूर करता है बथुवा। बथुवा कब्ज दूर करता है और अगर पेट साफ रहेगा तो कोइ भी बीमारी शरीर में लगेगी ही नहीं, ताकत और स्फूर्ति बनी रहेगी। जब तक इस मौसम में बथुए का साग मिलता रहे, नित्य इसकी सब्जी खाएँ। बथुए का रस, उबाला हुआ पानी पीएँ और तो और यह खराब लीवर को भी ठीक कर देता है।

Nasturtiums are not just a pretty face

Nasturtium plants are best known for their intensely bright yellow, orange, and red flowers, but their lush, round leaves are also edible and incredibly delicious. The plant first arrived in Spain in 1569 thanks to Spanish botanist Nicolás Monardes, who wrote extensively about all of the plans and animals he discovered during his trip to South America. The name Tropaeolum majus was given to the plant by Swedish botanist Carl Linnaeus. Linnaeus named them as such because he vibrant petals reminded him of an ancient Roman customer, where they would set up trophy poles (tropaeum, which stems from he Greek word tropaion) on which the armor and weapons of those the Roman army defeated were hung. To Linnaeus, the leaves looked like shields, and the red flowers looked like blood-stained helmets. When it came to eating these plants, nasturtiums weren’t consumed until it was taken to the East, where they were eaten and used for tea. Nasturtium carries a mildly peppery flavor with an aroma reminiscent of mustard. For some time, it was also known as ‘Indian cresses’ due to the similar flavor profile between nasturtium and watercress, and because they were introduced from the Americas (then known as ‘The Indies’). Now, they are a great way to kick up your salads, adding a brilliant punch of color. As well, more chefs around the world are using it to create absolutely stunning plates of art. Many wedding cakes now are also decorated with nasturtiums, giving them some beautiful life. Both the leaves and petals of the nasturtium plant are packed with nutrition, containing high levels of vitamin C. It has the ability to improve the immune system, tackling sore throats, coughs, and colds, as well as bacterial and fungal infections. These plants also contain high amounts of manganese, iron, flavonoids, and beta carotene. Studies have shown that the leaves also have antibiotic properties, and suggest that they are the most effective prior to flowering. Nasturtium is used in traditional medicine, treating a wide range of illnesses and conditions, such as hair loss.

 

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